संदर्भ:

भारत में 16 जनवरी, 2025 को पहला लोकपाल स्थापना दिवस मनाया गया।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • इस दिन (16 जनवरी) लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा 3 के लागू होने के साथ ही भारत के लोकपाल की स्थापना हुई।
  • भारत में लोकपाल शब्द का शाब्दिक अर्थ “जनता का रक्षक” है। इसे वर्ष 1963 में एल.एम. सिंघवी द्वारा गढ़ा गया था। 
  • पहली बार वर्ष 1809 में स्वीडन में इस संस्था का गठन हुआ था।  
  • भारत में प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) (1966-1970) ने सांसदों सहित लोक पदाधिकारियों के विरुद्ध शिकायतों की जाँच हेतु दो स्वतंत्र प्राधिकरणों – एक संघ स्तर पर (लोकपाल) और एक राज्य स्तर पर (लोकायुक्त) – की सिफारिश की थी। 
  • लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक, 2011 को संसद द्वारा 17 दिसम्बर, 2013 को पारित किया गया। 
  • यह अधिनियम 16 जनवरी, 2014 को लागू हुआ तथा अधिसूचना के बाद से वर्ष 2016 में इसमें एक बार संशोधन किया गया। 

लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की मुख्य विशेषताएँ: 

  • लोकपाल की संरचना: इसमें एक अध्यक्ष और आठ सदस्य होते हैं, जिनमें से 4 सदस्य न्यायिक क्षेत्र से संबंद्ध होते हैं तथा अन्य 4 सदस्य अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं में से होते हैं।
  • लोकपाल के वर्तमान अध्यक्ष (10 मार्च, 2024 से वर्तमान में) न्यायमूर्ति अजय माणिकराव खानविलकर हैं।  
  • उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश पिनाकी चंद्र घोष को भारत का पहला लोकपाल नियुक्त किया गया था।
  • नियुक्ति: अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा उनके हस्ताक्षर और मुहर वाले अधिपत्र के माध्यम से की जाती है।  
  • अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल: उनका कार्यकाल उनके पदभार ग्रहण करने की तिथि से 5 वर्ष या 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो, होता है। 
  • सदस्यों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा, एक चयन समिति की सिफारिशों पर की जाती है। चयन समिति मे शामिल होते हैं –
  • प्रधानमंत्री
  • लोकसभा के अध्यक्ष
  • लोकसभा में विपक्ष के नेता
  • भारत के मुख्य न्यायाधीश या भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश
  • चयन समिति के प्रथम चार सदस्यों की सिफारिशों के आधार पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता को नामित करते है। 
  • लोकपाल की प्रशासनिक शाखा और न्यायिक शाखा के रूप में दो मुख्य शाखाएँ हैं, जो लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 द्वारा सौंपे गए कार्यों का निर्वहन करती हैं।
  • लोकपाल के अध्यक्ष के वेतन और भत्ते भारत के मुख्य न्यायाधीश के बराबर होता हैं तथा अन्य सदस्यों के वेतन और भत्ते उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होता हैं।
    • लोकपाल के अध्यक्ष, सदस्य या सचिव या अन्य अधिकारियों या कर्मचारियों के सभी वेतन, भत्ते और पेंशन भारत की संचित कोष (समेकित निधि) पर भारित होगी तथा लोकपाल द्वारा ली गई कोई भी फीस या अन्य धनराशि उस निधि का हिस्सा होगी। 
  • लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों का निलंबन और पदच्युति: राष्ट्रपति, अध्यक्ष या किसी सदस्य, जैसा भी मामला हो, को उसके पद से हटा सकते है, यदि अध्यक्ष या कोई भी सदस्य –
  • दिवालिया घोषित कर दिया गया हो;
  • अपने पदावधि के दौरान अपने पद के कर्तव्यों के इतर किसी अन्य भुगतान वाली सेवायोजन (रोजगार) में संलग्न होता हो; या
  • राष्ट्रपति की राय में, मानसिक या शारीरिक अक्षमता के कारण पद पर बने रहने का योग्य नहीं हो।
  • लोकपाल के अध्यक्ष या किसी भी सदस्य को राष्ट्रपति द्वारा कदाचार के आधार पर उच्चतम न्यायालय की जाँच के आधार पर हटाया जा सकता है। यह जाँच कम से कम 100 सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित याचिका पर शुरू की जाती है और निर्धारित प्रक्रियाओं के अनुसार संचालित की जाती है। 

लोकपाल अधिनियम, 2013 की खामियाँ

  • स्वतः संज्ञान लेने की शक्ति का न होना: लोकपाल को भ्रष्टाचार और कुप्रशासन के मामलों पर स्वतः संज्ञान लेने की शक्ति नहीं है। 
  • अधिनियम में लोक सेवकों के विरुद्ध झूठी शिकायतों के लिए कठोर दंड का प्रावधान किया गया है, जिससे लोकपाल के समक्ष शिकायत दर्ज कराने पर रोक लग सकती है।
  • अधिनियम मे अनाम (नामरहित) शिकायतों को स्वीकारने का कोई प्रावधान नहीं है जो कि संभावित रूप से प्रतिशोध के डर से व्हिसलब्लोअर को आगे आने से हतोत्साहित करता है।
  • इस अधिनियम में शिकायत दर्ज करने के लिए 7 वर्ष की सीमा अवधि निर्दिष्ट की गई है, जिससे जवाबदेही सीमित हो जाती है।
  • प्रधानमंत्री के लिए अपवाद:
  • यदि प्रधानमंत्री के विरुद्ध लगा आरोप अंतर्राष्ट्रीय संबंध, बाह्य एवं आंतरिक सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष से संबंधित हैं, तो यह अधिनियम लोकपाल को जाँच की अनुमति नहीं देता है। 
  • प्रधानमंत्री के विरुद्ध शिकायतों की जाँच तभी की जा सकती है जब लोकपाल की पूर्ण पीठ जाँच करने पर विचार करे तथा कम से कम दो-तिहाई सदस्य इसका अनुमोदन करें।
  • प्रधानमंत्री के विरुद्ध ऐसी जाँच (यदि होती है) बंद कमरे में करनी होगी और यदि लोकपाल इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि शिकायत खारिज करने योग्य है, तो जाँच के अभिलेख (रिकॉर्ड) को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा या किसी को भी उपलब्ध नहीं कराया जाएगा। 
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