प्रसंग: लद्दाख, जो रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र है, वहाँ राज्य का दर्जा और भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के विस्तार की माँग को लेकर विरोध-प्रदर्शन तेज़ हो गए हैं।

  • सरकार द्वारा लोगों की जरूरतों को बार-बार टालने के कारण यह माँगें और अधिक तीव्र हो गई हैं, जिससे जनता में असंतोष बढ़ता जा रहा है।
  • ये शांतिपूर्ण प्रदर्शन, जिनमें शुरूआत में बुजुर्गों की भागीदारी प्रमुख थी, अब युवाओं — विशेष रूप से जेनरेशन-Z (Gen Z) — की सक्रिय भागीदारी के साथ हिंसक झड़पों का रूप लेने लगे हैं।

पृष्ठभूमि: लद्दाख की स्वायत्तता के लिए संघर्ष

  • वर्ष 2019 में अनुच्छेद 370 के निरसन के बाद लद्दाख को एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पुनर्गठित किया गया।
  • इसके परिणामस्वरूप जम्मू-कश्मीर राज्य का विभाजन दो केंद्र शासित प्रदेशों में हुआ: जम्मू और कश्मीर (जिसे एक विधानसभा प्राप्त है),और लद्दाख (जिसे कोई विधानसभा प्राप्त नहीं है)।
  • भारतीय सरकार ने इस कदम को एक प्रशासनिक आवश्यकता के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन लद्दाख के लोगों में यह निर्णय राजनीतिक उपेक्षा की भावना उत्पन्न हुई।
  • भारतीय संविधान की छठी अनुसूची, जो जनजातीय क्षेत्रों को विशेष संवैधानिक संरक्षण प्रदान करती है, लद्दाख के लोगों के लिए उनकी भूमि, संस्कृति और पारंपरिक जीवन शैली की सुरक्षा हेतु अत्यावश्यक मानी जा रही है।

विरोध प्रदर्शन: शांतिपूर्ण से हिंसक तक का सफर

  • लद्दाख में राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची के तहत विशेष दर्जे की माँग को लेकर लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) जैसे संगठनों द्वारा शुरू किया गया
  • आंदोलन शुरू में शांतिपूर्ण भूख हड़तालों के रूप में चला। लेकिन 35 दिनों तक चली हड़ताल के बावजूद कोई ठोस परिणाम न मिलने के कारण 24 सितंबर 2025 को यह प्रदर्शन हिंसक हो गया।
  • लेह स्थित भाजपा कार्यालय के बाहर हुई झड़पों में दो प्रदर्शनकारियों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा, जिससे विशेष रूप से युवाओं में आक्रोश फैल गया, जो अब तक आंदोलन में अपेक्षाकृत शांत थे।
  • प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने हिंसा पर गहरा आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार द्वारा लगातार उपेक्षा किए जाने से युवाओं में बढ़ रही हताशा ने उन्हें अधिक उग्र विरोध के रास्ते पर ला दिया है।

लद्दाख क्यों प्रदर्शन कर रहा है?

  • लद्दाख की आबादी का 90% से अधिक हिस्सा अनुसूचित जनजातियों से संबंधित है, इसलिए इस क्षेत्र को संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत लाने की लगातार मांग उठ रही है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244 की छठी अनुसूची के तहत स्वायत्त प्रशासनिक क्षेत्रों का गठन किया जाता है, जिन्हें स्वायत्त जिला परिषद (Autonomous District Councils – ADCs) कहा जाता है, जो कुछ पूर्वोत्तर राज्यों के जनजातीय बहुल क्षेत्रों का शासन करती हैं।

छठी अनुसूची के फायदे

केंद्र सरकार छठे अनुसूची का दर्जा देने में अनिच्छुक क्यों है:

  • संवैधानिक और कानूनी मिसाल: छठी अनुसूची वर्तमान में केवल पूर्वोत्तर के आदिवासी क्षेत्रों तक सीमित है। इसे एक केंद्र शासित प्रदेश पर लागू करने के लिए बड़े संवैधानिक संशोधनों या पुनर्व्याख्या की आवश्यकता होगी।
  • रणनीतिक और सुरक्षा संबंधी चिंताएं: लद्दाख चीन और पाकिस्तान से सटा हुआ एक संवेदनशील क्षेत्र है। केंद्रीय सरकार सुरक्षा और रक्षा कारणों से कड़ी प्रशासनिक नियंत्रण रखना पसंद करती है।
  • मिसाल बनने का डर: यदि लद्दाख को छठी अनुसूची का दर्जा मिला, तो हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अंडमान जैसे अन्य आदिवासी क्षेत्र या केंद्र शासित प्रदेश भी समान मांग कर सकते हैं, जिससे देशभर में ऐसी मांगों का सिलसिला शुरू हो सकता है।
  • लद्दाख स्वायत्त हिल डेवलपमेंट काउंसिल: केंद्र का तर्क है कि लेह और कारगिल में स्थापित लद्दाख स्वायत्त हिल डेवलपमेंट काउंसिल (LAHDC) स्थानीय प्रशासनिक शक्तियां प्रदान करती हैं। लेकिन स्थानीय लोग दावा करते हैं कि LAHDC कमजोर हैं और उनका संवैधानिक समर्थन नहीं है।

छठी अनुसूची और पांचवीं अनुसूची के बीच अंतर

आगे की राह

  • केंद्र सरकार, लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) के बीच तीन पक्षीय संवाद प्रक्रिया को औपचारिक रूप देना।
  • संविधान में संशोधन के माध्यम से लद्दाख स्वायत्त हिल डेवलपमेंट काउंसिल (LAHDC) को सशक्त बनाना। स्थानीय मामलों में विधान शक्ति वाले प्रतिनिधि निकाय के लिए प्रत्यक्ष चुनाव लागू करना।
  • स्थायी विकास योजना: लद्दाख विजन 2050 दस्तावेज़ तैयार करना जिसमें पारिस्थितिक संरक्षण, हरित ऊर्जा (सौर, जल), सांस्कृतिक पर्यटन (सीमित), और स्थानीय रोजगार सृजन शामिल हों।

निष्कर्ष
सभी क्षेत्रों के लिए एक समान समाधान काम नहीं करेगा। सरकार को प्रतीकात्मक पहल से आगे बढ़कर क्षेत्र-विशेष, अधिकार-आधारित और समावेशी ढांचा तैयार करना होगा। तभी लद्दाख की पहचान, पारिस्थितिकी, लोकतंत्र और रणनीतिक भूमिका को साथ मिलकर सुरक्षित किया जा सकता है।

Shares: