संदर्भ:

रूस ने भारत के साथ हस्ताक्षर हेतु लॉजिस्टिक समझौते के मसौदे को मंजूरी प्रदान की है।

अन्य संबंधित जानकारी 

  • कई वर्षों के विलंब के बाद, भारत-रूस पारस्परिक लॉजिस्टिक्स समझौता पर अब हस्ताक्षर होने का मार्ग प्रशस्त हुआ है, क्योंकि हाल ही में, रूस ने इस मसौदे को मंजूरी दी है।

समझौते का विवरण

  • इस समझौते का उद्देश्य युद्धाभ्यास, प्रशिक्षण, बंदरगाहों पर आवागमन तथा मानवीय सहायता एवं आपदा राहत (HADR) प्रयासों के लिए सैन्य-से-सैन्य विनिमयों को सुव्यवस्थित करना है।
  • यह भारत द्वारा विभिन्न देशों के साथ हस्ताक्षरित इसी प्रकार के अन्य समझौतों की श्रृंखला के अनुरूप है, जिसकी शुरुआत वर्ष 2016 में संयुक्त राज्य अमेरिका के लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) से हुई थी।

इस विलंबित समझौते के बारे में 

  • इस समझौते को रेसिप्रोकल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक्स एग्रीमेंट (RELOS) के नाम से भी जाना जाता है, तथा यह कई वर्षों से विलंबित है।
  • एक बार समझौता पर हस्ताक्षर हो जाने के बाद यह पाँच वर्षों के लिए वैध होगा और जब तक कोई भी एक देश इसे समाप्त करने के पक्ष में नहीं होता है, उ स्थिति मे यह स्वतः ही नवीनीकृत हो जाएगा।

आर्कटिक क्षेत्र में पहुँच

  • एक बार रेसिप्रोकल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक्स एग्रीमेंट (RELOS) पर हस्ताक्षर हो जाने के बाद भारत को आर्कटिक क्षेत्र में रूस की सुविधाओं तक पहुँच प्राप्त हो जाएगी।
  • आर्कटिक क्षेत्र में नए शिपिंग मार्गों के कारण विश्व के कई देशों की रुचि इस क्षेत्र मे बढ़ रही है।
  • यह रूस के पूर्वी क्षेत्रों में भारत के बढ़ते निवेश को देखते हुए महत्वपूर्ण है।

लॉजिस्टिक्स विनिमय समझौतों के लाभ:

  • यह भारत की तीनों सेनाओं में से भारतीय नौसेना को विभिन्न देशों के साथ इन प्रशासनिक व्यवस्थाओं से सबसे अधिक लाभ हुआ है। इस समझौता से भारतीय नौसेना की परिचालन क्षमता के साथ-साथ समुद्र में अंतर-संचालन क्षमता मे भी वृद्धि होगी।

इस प्रकार के अन्य समझौते पारस्परिक रूप से लाभकारी साबित हुए हैं। उदाहरण के लिए: –

  • भारत के लिए अमेरिका के साथ आधारभूत समझौते, तथा ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ हुए लॉजिस्टिक्स समझौते विशेष रूप से लाभप्रद रहे हैं, क्योंकि वे कई साझा सैन्य मंचों का संचालन करते हैं।
  • इसी प्रकार, यूनाइटेड किंगडम समुद्री सहयोग बढ़ाने के लिए भारत के साथ अपने समझौते का उपयोग कर रहा है।

भारत और रूस के बीच के द्विपक्षीय संबंध 

  • भारत ने वर्ष 1947 में ब्रिटेन से स्वाधीन होने से पहले ही सोवियत संघ के साथ राजनयिक संबंध स्थापित कर लिया था। भारत के प्रारंभिक वर्षों के दौरान इस संबंध ने मैत्रीपूर्ण संबंधों के लिए मंच तैयार किया।
  • वर्ष 2000 में भारत और रूस के बीच की रणनीतिक साझेदारी संबंधी घोषणापत्र पर हस्ताक्षर ने इसमे एक नया अध्याय जोड़ा। इसे वर्ष 2010 में आगे बढ़ाकर “विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी” तक कर दिया गया।
  • मजबूत राजनीतिक भागीदारी: भारत रूस को एक महत्वपूर्ण भागीदार मानता है और रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के भारत की दावेदारी का समर्थन करता है। दोनों देश संयुक्त राष्ट्र, ब्रिक्स, G-20 और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में वैश्विक मुद्दों पर भी एक दूसरे का सहयोग करते हैं।

रक्षा सहयोग: भारत रूस में निर्मित हथियारों का सबसे बड़ा ग्राहक है। यह सहयोग संबंधों  का एक प्रमुख स्तंभ है।

  • परमाणु ऊर्जा: रूस भारत के शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा प्रयासों, विशेष रूप से कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र (KKNP) जैसी परियोजनाओं के माध्यम से, में एक प्रमुख भागीदार है।
  • अंतरिक्ष सहयोग: दोनों देशों ने शांतिपूर्ण अंतरिक्ष प्रयासों में लगभग चार दशकों तक सहयोग किया है। रूस भारत के प्रमुख मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन, “गगनयान” में सहयोग कर रहा है।

आर्थिक संबंधों मे प्रगाढ़ता: दोनों देशों के बीच व्यापार मे वृद्धि हो रही है, जिसका वर्ष 2025 तक 30 बिलियन डॉलर तक पहुँचाने का लक्ष्य है। दोनों देशों के बीच व्यापार का दायरा, विशेषकर रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद, बढ़ रहा है।

  • रूस भारत को तेल और गैस निर्यात करता है, जबकि भारत फार्मास्यूटिकल्स और मशीनरी का निर्यात करता है।

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