संदर्भ:

हाल ही में, भारत के राष्ट्रपति ने उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश वी रामसुब्रमण्यम को तीन साल के कार्यकाल हेतु राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (National Human Rights Commission-NHRC) के 9वें अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया।

अन्य संबंधित जानकारी 

न्यायाधीश रामासुब्रमण्यम के अलावा, प्रियांक कानूनगो और सेवानिवृत्त न्यायाधीश बिद्युत रंजन सारंगी को भी राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया था।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष का पद 1 जून, 2024 (जब न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा का कार्यकाल समाप्त हुआ था) से रिक्त था। 

  • तब से, कार्यवाहक अध्यक्ष विजया भारती सयानी आयोग का कामकाज देखरेख कर रही थी।
  • न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा के बाद, न्यायमूर्ति रामसुब्रमण्यम  अब राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के दूसरे अध्यक्ष होंगे जिन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कभी सेवा नहीं की है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने न्यायाधीश रामसुब्रमण्यम  को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की, लेकिन विपक्ष के दोनों नेताओं ने इस नियुक्ति पर असंतोष व्यक्त किया।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के बारें में  

इसका गठन 12 अक्टूबर, 1993 को मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत एक वैधानिक संगठन के रूप में किया गया था, जिसे भारत में मानवाधिकारों की रक्षा और बढ़ावा देने के लिए मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2006 द्वारा संशोधित किया गया था।

  • मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 2 (1) (d) के अनुसार, मानवाधिकार व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता और सम्मान से संबंधित अधिकार हैं, जिनकी गारंटी संविधान द्वारा दी गई है। यह अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदाओं में सन्निहित हैं तथा भारत में न्यायालयों द्वारा लागू किए जा सकते हैं। 

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की स्थापना पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप है, जिसे अक्टूबर 1991 में पेरिस में एक अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला के दौरान अपनाया गया था और 20 दिसंबर, 1993 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अनुमोदित किया गया था। 

यह मानवाधिकार मानकों की जवाबदेही और पालन सुनिश्चित करने के लिए एक प्रहरी के रूप में कार्य करते हुए मानवाधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने हेतु भारत की प्रतिबद्धता का प्रतीक है।

संरचना: 

  • आयोग में एक अध्यक्ष, पांच पूर्णकालिक सदस्य और सात मानद सदस्य होते हैं। 
  • राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सिफारिश पर की जाती है जिसमें निम्न शामिल हैं: 

1. प्रधानमंत्री (अध्यक्ष)

2. लोकसभा अध्यक्ष

3. गृह मंत्री

4. लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता

5. राज्यसभा के उपसभापति

2019 का संशोधन: 

  • राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का अध्यक्ष या तो उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश या उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश हो सकता है। 
  • इसमें कम से कम एक महिला सदस्य का होना अनिवार्य है। 
  • इस संशोधन के द्वारा राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों के कार्यकाल को 5 वर्ष से घटाकर 3 वर्ष या सत्तर वर्ष की आयु तक, जो पहले है, कर दिया गया है तथा पाँच वर्ष की पुनर्नियुक्ति सीमा को हटा दिया गया है।

कार्य: 

  • मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच करना, न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करना, राज्य-नियंत्रित संस्थानों का दौरा करना, कानूनी सुरक्षा उपायों की समीक्षा करना और उनमें बदलाव की सिफारिश करना, मानवाधिकारों को बाधित करने वाले कारकों का समाधान करना, अनुसंधान और शिक्षा को बढ़ावा देना, गैर सरकारी संगठनों को सहायता करना, मुआवजे की सिफारिश करना और संसद में प्रस्तुति के लिए भारत के राष्ट्रपति को एक वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करना। 
  • इसके पास सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत एक  सिविल न्यायालय  की सभी शक्तियां हैं। 

मान्यता: इसने वर्ष 1999 से अपना ‘A’ दर्जा बरकरार रखा है, लेकिन पहली बार इसकी मान्यता वर्ष 2023 और वर्ष 2024 में लगातार दो वर्षों के लिये निलंबित कर दी गई थी।

Shares: