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सामान्य अध्ययन-2: कार्यपालिका और न्यायपालिका की संरचना, गठन और कार्यप्रणाली—सरकार के मंत्रालय और विभाग; दबाव समूह और औपचारिक/ अनौपचारिक संघ औउ राजव्यवस्था में उनकी भूमिका।

संदर्भ: हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य बार काउंसिलों में महिलाओं के लिए 30% सीटें आरक्षित करने का आदेश दिया और इसके लिए इस वर्ष के चुनावों के लिए 20% सीटें प्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से और 10% सीटें सह-योजन (co-option) के माध्यम से भरी जाएंगी।

अन्य संबंधित जानकारी

  • सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह आरक्षण न केवल चुने हुए पदों (elected positions) के लिए मिलेगा, बल्कि प्रत्येक राज्य बार काउंसिल में पदाधिकारियों (office-bearers) के पदों पर भी लागू होगा।
  • न्यायालय ने राज्य बार काउंसिलों को निर्देश दिया कि जब कभी महिला उम्मीदवारों की संख्या अनिवार्य 30% आरक्षण को पूरा करने के लिए अपर्याप्त हो, तो वे सह-योजन (co-opt) के माध्यम से महिला सदस्यों को शामिल करें।
  • इससे पहले मई 2024 में, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के चुनावों के दौरान, न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के पदों में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण अनिवार्य किया था।
  • न्यायालय ने अब लिंग समावेशन के अपने उपायों को केवल स्वैच्छिक संस्थाओं तक ही सीमित नहीं रखा है, बल्कि इनका विस्तार सांविधिक काउंसिलों तक भी कर दिया है। ये सांविधिक काउंसिलें पूरे देश में अधिवक्ताओं के नामांकन, अनुशासनात्मक शक्तियों और नीतिगत निर्णयों को नियंत्रित करती हैं।

निर्णय का महत्त्व

  • सारगर्भित लैंगिक परिवर्तन को बढ़ावा: यह निर्णय सुनिश्चित करता है कि महिलाएँ, जिन्हें बार काउंसिल के नेतृत्व में ऐतिहासिक रूप से हाशिये पर रखा गया है, उन्हें चुने हुए पदों और पदाधिकारी पदों दोनों में सार्थक और लागू करने योग्य प्रतिनिधित्व मिले, जिससे पुरुष-प्रधान पेशे में उनकी चिरकालिक अल्प-प्रतिनिधित्व की समस्या का समाधान हो सके।
  • विविध निर्णय लेने को बढ़ावा: यह निर्णय देश भर में प्रमुख नियामक कार्यों में महिलाओं के दृष्टिकोण को महत्त्व देता है, और अनुच्छेद 14-15 के तहत संवैधानिक समानता के अनुरूप है और पेशेवर सुधारों को बढ़ावा देता है।
    • उदाहरण के लिए, सर्वोच्च न्यायालय के सामने प्रस्तुत किए गए डेटा से पता चला कि 18 राज्य बार काउंसिलों में, 2% यानी 441 निर्वाचित (elected) सदस्यों में से केवल 9 ही महिलाएँ हैं, और 11 बार काउंसिलों में तो एक भी महिला सदस्य नहीं है।
  • संख्या में सुधार और कैरियर में प्रगति: नेतृत्व की भूमिकाओं में अधिक महिलाओं के होने से, संस्थागत संस्कृति अधिक समर्थक बनती है, जिससे उनकी संख्या में सुधार होता है और शुरुआत में ही पेशे से बाहर होने की दरों में कमी आती है।
    • उदाहरण के लिए, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के सर्वेक्षण में पाया गया कि पर्याप्त समर्थन न होने के कारण महिलाएँ 5-6 साल के बाद कानूनी पेशे से बाहर हो जाती हैं।

कार्यान्वयन में बाधाएँ

  • प्रतीकवाद: वरिष्ठ महिला अधिवक्ताओं ने चेतावनी दी है कि स्पष्ट अनुपालन समय-सीमा और पारदर्शी सह-योजन प्रक्रियाओं के बिना, यह सुधार केवल दस्तावेजों तक सीमित रह सकते है, और यह प्रतीकवाद (tokenism) का एक उपकरण बन सकता है।
  • अनुपालन संबंधी समस्या: कुछ राज्य बार काउंसिल चुनाव को स्थगित करने या प्रक्रियात्मक बाधाएँ उत्पन्न करने की कोशिश कर सकते हैं, जिससे विलंब या निर्णय का पालन न करना का जोखिम भी बना रहता है।
  • प्रतीकात्मक उम्मीदवारों का चयन: पुरानी व्यवस्था से जुड़े पुरुष अपने प्रभाव को बनाए रखने के लिए घर की महिलाओं को चुनाव में खड़ा कर सकते हैं, जिससे वे महिलाएँ केवल प्रतीकात्मक प्रतिनिधि बन कर रह जाएँगी और वास्तविक महिला नेतृत्व को स्थान नहीं मिलेगा।

आगे की राह

  • अनुपालन और निगरानी तंत्र को सुदृढ़ करना: सर्वोच्च न्यायालय या बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) विलंब होने या आरक्षण नीति के दुरुपयोग को रोकने के लिए नियमित अनुपालन रिपोर्ट, निश्चित चुनाव समय-सीमा, और निगरानी समितियों को अनिवार्य कर सकता है।
  • महिलाओं के लिए एक वास्तविक नेतृत्व का निर्माण: यह सुनिश्चित करने के लिए कि महिला उम्मीदवार सशक्त हों, न कि केवल प्रॉक्सी (प्रतीकात्मक) बनकर रह जाएँ, इसलिए उनके लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम, मेंटरशिप नेटवर्क, और वित्तीय/प्रशासनिक सहायता शुरू की जाए।

पारदर्शी और मानकीकृत चुनाव प्रक्रियाएं: सभी राज्यों में समान चुनाव नियम लागू किए जाएँ, पारदर्शी सह-योजन प्रक्रियाओं को लागू किया जाए, और प्रक्रिया में हेरफेर को रोकने और जवाबदेही तय करने के लिए, नामांकन तथा प्रकटीकरण के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग किया जाए।

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