संबंधित पाठ्यक्रम:
सामान्य अध्ययन 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन।
प्रसंग:
तीन दशकों से, कश्मीर के जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में एक प्रमुख प्रजाति, यूरेशियन ऊदबिलाव को घाटी में विलुप्त माना जा रहा था। हालाँकि, हाल ही में दक्षिण कश्मीर में इसके देखे जाने से इसके फिर से जीवित होने की उम्मीदें फिर से जगी हैं।
अन्य संबंधित जानकारी:
- ऊदबिलाव को लिद्दर नदी ( श्रीगुफवारा , दक्षिण कश्मीर) में देखा गया।
- शुरुआत में ग्रामीणों ने इसे मगरमच्छ समझ लिया था, लेकिन वन्यजीव अधिकारियों ने पुष्टि की कि यह यूरेशियन ऊदबिलाव ( लूट्रा) है। ल्यूट्रा ) को वीडियो और फोटोग्राफिक साक्ष्य के माध्यम से प्रमाणित किया गया।
ऐतिहासिक महत्व और पतन
• स्थानीय नाम: कश्मीरी में वुडर के नाम से जाना जाने वाला ऊदबिलाव एक समय निम्नलिखित जल निकायों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता था:

- दाचीगाम धाराएँ
- डल झील फीडर
- रामबियारा धारा (दक्षिणी कश्मीर)
- लिद्दर नदी (पहलगाम)
• गिरावट के कारण:
- जल प्रदूषण से आवासों का क्षरण हो रहा है।
- इसके बहुमूल्य फर के लिए शिकार।
- 25-30 वर्षों तक इनके दर्शन न होने से स्थानीय विलुप्ति की धारणा बनी।
हाल ही में देखे गए दृश्य और पारिस्थितिक निहितार्थ:
• 2023 पुनरुत्थान: यह इस वर्ष का तीसरा दृश्य है:
- गुरेज घाटी (मई 2023)
- हीरपोरा (शोपियां जिला)
- लिद्दर नदी ( श्रीगुफवारा )
• वन्यजीव अधिकारी इन दृश्यों को कश्मीर की जलीय पारिस्थितिकी को बहाल करने के लिए एक सकारात्मक संकेत के रूप में देखते हैं, क्योंकि स्वच्छ जल प्रणालियों के जैव संकेतक के रूप में ऊदबिलाव की भूमिका है ।
चुनौतियाँ:
- आवास पुनर्स्थापन: नदियों और आर्द्रभूमि में प्रदूषण पर अंकुश लगाना।
- अवैध शिकार विरोधी उपाय: अवैध शिकार को रोकना।
- सामुदायिक जागरूकता: स्थानीय लोगों को ऊदबिलाव के पारिस्थितिक महत्व के बारे में शिक्षित करना।