
परियोजना के बारे में:
- इसे लगभग ₹8 करोड़ की लागत से सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत उत्तरप्रदेश औद्योगिक विभाग द्वारा स्थापित किया जाएगा।
- इसे अप्रैल, 2026 तक पूरा किया जाना है, जिसमें प्रति वर्ष लगभग 50,000 मीट्रिक टन यार्न की उत्पादन क्षमता का लक्ष्य है।
- परियोजना का महत्व:
- निर्यातकों और किसानों के लिए फायदेमंद: पूर्वांचल क्षेत्र के निर्यातकों को स्थानीय ऊन की आपूर्ति तक पहुँच प्राप्त होगी, जिससे कालीन ऊन के लिए राजस्थान और कश्मीर जैसे राज्यों पर उनकी निर्भरता कम हो जाएगी।
- वे कालीन बुनाई के लिए सस्ती ऊन प्राप्त करेंगे, जिससे कालीनों की कुल लागत कम हो जाएगी।
- भेड़ पालकों को भी उनके ऊन का अच्छा दाम मिलेगा।
- औद्योगिक सुधार: अमेरिकी टैरिफ और न्यूजीलैंड तथा ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से ऊन की बढ़ती आयात लागत से प्रभावित कालीन उद्योग के पास प्रगति का मौका होगा।
- रोजगार सृजन: इस संयंत्र की स्थापना से लगभग दो सौ युवाओं को प्रत्यक्ष रोजगार मिलने का अनुमान है, साथ ही पांच लाख से अधिक भेड़ चरवाहों को अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा।
- प्रस्तावित संयंत्र से सोनभद्र और वाराणसी में निजी कंबल फैक्ट्री संचालकों को भी लाभ होगा, उन्हें सस्ती कीमतों पर ऊन मिलेगा और ऊनी कंबलों की लागत भी कम होगी।

