संदर्भ: 

केंद्र ने आधिकारिक तौर पर माधव राष्ट्रीय उद्यान को देश का 58वां बाघ अभयारण्य घोषित किया।

अन्य संबंधित जानकारी  

  • नवीनतम जोड़ा गया यह राष्ट्रीय उद्यान राज्य में 9वां बाघ अभयारण्य है, जिसे यह मान्यता प्राप्त हुआ है, जो कि किसी भी राज्य में सर्वोच्च है।   
  • पिछले वर्ष दिसंबर में, भारत ने केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से सैद्धांतिक मंजूरी प्राप्त होने के बाद मध्य प्रदेश के रतापानी वन्यजीव अभयारण्य में अपना 57वां बाघ अभयारण्य स्थापित किया। 

माधव राष्ट्रीय उद्यान/टाइगर रिजर्व 

यह उद्यान मुगल सम्राटों और विशेष रूप से सिंधिया वंश के ग्वालियर के महाराजा का शिकार स्थल था। इसका नाम प्रमुख महाराजा माधव राव सिंधिया के नाम पर रखा गया था। 

इसे 1958 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा प्राप्त हुआ। 

चंबल क्षेत्र के शिवपुरी जिले में स्थित इस अभयारण्य में वर्तमान में पाँच बाघ हैं, जिनमें हाल ही में जन्मे दो शावक भी शामिल हैं।

  • राज्य में बाघ पुनर्स्थापन परियोजना के तहत 2023 में माधव राष्ट्रीय उद्यान में तीन बाघों को लाया गया, जिनमें से दो मादा बाघ थीं। 

यह अभ्यारण्य भारत के मध्य उच्चभूमि के उत्तरी किनारे पर स्थित है, जो पठारों और घाटियों के साथ ऊपरी विंध्य पहाड़ियों का हिस्सा है।  

झीलें : सांख्य सागर और माधव सागर उद्यान के दक्षिणी भाग में स्थित हैं, जो स्थलीय जीवों के लिए एक महत्वपूर्ण जल स्रोत हैं।

नदियाँ: उद्यान का अपवाह तंत्र उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा में प्रवाहित होता है, जिससे अमरनदी नदी का जलग्रहण क्षेत्र बनता है। यह सिंध नदी के जलग्रहण क्षेत्र का भी हिस्सा है, जो उद्यान की पूर्वी सीमा के साथ प्रवाहित होती है।  

सांख्य सागर झील में दलदली मगरमच्छ (क्रोकोडाइल) बड़ी संख्या में पाए जाते हैं।

  • इसी वजह से यह झील “मगरमच्छ (क्रोकोडाइल) सफारी” जैसी दिखती है और पर्यटकों के लिए खास आकर्षण का केंद्र बनी रहती है।           

मड़ीखेड़ा बांध उद्यान के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में स्थित है।

बाघ अभयारण्य (टाइगर रिजर्व) क्या होता है?

भारत में बाघ अभयारण्य एक संरक्षित क्षेत्र होता है, जिसे प्रोजेक्ट टाइगर प्रोग्राम के तहत बाघों और उनके पर्यावास के संरक्षण के उद्देश्य से स्थापित किया गया है। 

इसका उद्देश्य बाघों की आबादी की रक्षा करना, जैव विविधता को संरक्षित करना और पारिस्थितिक संतुलन को पुनर्स्थापित करना है । 

बाघ अभयारण्य दो मुख्य क्षेत्रों से मिलकर बना होता है: कोर क्षेत्र और बफ़र क्षेत्र।   

  • कोर क्षेत्र एक राष्ट्रीय उद्यान या अभयारण्य होता है, जहाँ वन्यजीवों को कड़े संरक्षण में रखा जाता है।
  • बफ़र क्षेत्र में वन और गैर-वन्य भूमि दोनों शामिल होते हैं, जहाँ वन्यजीव भी आवागमन कर सकते हैं और मानव गतिविधियाँ भी संचालित हो सकती हैं, अर्थात जानवरों को यहाँ स्वतंत्र रूप से विचरण करने की अनुमति होती है।       

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के अनुसार, वर्तमान में भारत में 57 बाघ अभयारण्य हैं, जो लगभग 82,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत हैं, जो देश के कुल क्षेत्रफल का 2.3% से अधिक है।       

बाघ अभयारण्य बनाने की प्रक्रिया

क्षेत्र की पहचान: राज्य सरकार बाघों की उपस्थिति, उनके शिकार आधार, वनस्पति और पर्यावास के आधार पर उपयुक्त क्षेत्र की पहचान करती है।

प्रस्ताव तैयार करना: राज्य एक विस्तृत प्रस्ताव तैयार करता है, जिसमें मानचित्र, पारिस्थितिक अध्ययन और प्रबंधन योजनाएँ शामिल होती हैं। इस प्रस्ताव को समीक्षा और अनुमोदन के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, जिसके बाद इसे केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को भेजा जाता है। 

प्रारंभिक अधिसूचना: अनुमोदन मिलने के बाद, राज्य सरकार न्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत एक प्रारंभिक अधिसूचना जारी करती है,  जिसमें क्षेत्र को बाघ अभयारण्य घोषित किया जाता है।

अंतिम अधिसूचना: आपत्तियों का समाधान करने के बाद, अधिनियम की धारा 38V के तहत अंतिम अधिसूचना जारी की जाती है, जिससे बाघ अभयारण्य औपचारिक रूप से स्थापित हो जाता है।

  • एक बार यह प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद, अभयारण्य को केवल जनहित में ही निरस्त किया जा सकता है, जिसके लिए बाघ संरक्षण प्राधिकरण और राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्वीकृति आवश्यक होती है (धारा 38W)।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA)      

यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन एक वैधानिक निकाय है, जिसे वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के अंतर्गत प्रदत्त प्रावधानों के तहत बाघ संरक्षण को सशक्त बनाने के उद्देश्य से गठित किया गया है, और इसे इसी अधिनियम के तहत सौंपे गए अधिकारों एवं कार्यों के अनुसार संचालित किया जाता है। 

यह बिग कैट प्रजाति के जीवों की संख्या को ट्रैक करने के लिए प्रत्येक चार वर्षों पर अखिल भारतीय बाघ आकलन करता है।

  • 2022 की पांचवें चक्र की एक सारांश रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कम से कम 3,167 बाघ हैं और यह विश्व के कुल जंगली बाघ आबादी के 70% से अधिक का पर्यावास है।   
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