संदर्भ :

प्लास्टिक ओवरशूट डे (पीओडी) रिपोर्ट, 2024 के अनुसार, भारत वैश्विक स्तर पर  माइक्रोप्लास्टिक के कारण जल निकायों के प्रदूषण में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा प्रदूषक होगा।

अन्य संबंधित जानकारी: 

• रिपोर्ट के अनुसार , चीन, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान सामूहिक रूप से जल निकायों में छोड़े गए कुल माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा में 51% का योगदान करते हैं।

• भारत से लगभग 3,91,879 टन माइक्रोप्लास्टिक उत्सर्जित होने का अनुमान है, जो चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है, जिसके यंहा से  7,87,069 टन माइक्रोप्लास्टिक उत्सर्जित होने का अनुमान है।

• माइक्रोप्लास्टिक्स में मौजूद रासायनिक तत्व जल निकायों में जमा हो जाते हैं और मानव स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालते हैं।

  • माइक्रोप्लास्टिक से निकलने वाले सामान्य योजकों में भारी धातुएं, पॉलीएमिडोमाइन-एपिक्लोरोहाइड्रिन, बिसफेनॉल ए, ब्रोमीनयुक्त अग्निरोधी(ब्रोमिनेटेड फ्लेम रिटार्डेंट्स), तथा पर- और पॉलीफ्लुओरोएल्काइल पदार्थ शामिल हैं।

• अनुमान है कि 2024 तक जल निकायों में रासायनिक योजकों का विमोचन 2,91,071 टन तक पहुंच जाएगा, जिसमें चीन, भारत, रूसी संघ और ब्राजील का कुल मिलकर 40% योगदान होगा ।

• अनुमान है कि भारत में माइक्रोप्लास्टिक से 31,483 टन रासायनिक यौगिक उत्सर्जित होंगे, जो चीन (59,208 टन) के बाद दूसरे स्थान पर है।

• वैश्विक प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार के बावजूद , 2021 के बाद से प्लास्टिक अपशिष्ट के  उत्पादन में 7.11% की वृद्धि हुई है , जो पुनर्चक्रण (रीसाइक्लिंग) और अपशिष्ट प्रबंधन क्षमता से परे प्लास्टिक संकट को संबोधित करने की तात्कालिकता को रेखांकित करता है।

• इस वर्ष विश्व भर में अनुमानित रूप से 220 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्सर्जित हुआ है।

माइक्रोप्लास्टिक्स:

• माइक्रोप्लास्टिक्स, प्लास्टिक सामग्री के छोटे टुकड़े/कण होते हैं, जिनकी लंबाई 5 मिलीमीटर (0.2 इंच) से कम होती है, वे पर्यावरण में पाए जाते हैं।

• माइक्रोप्लास्टिक्स विभिन्न स्रोतों से आ सकते हैं, जिनमें बड़े प्लास्टिक के टुकड़े जो टूटकर छोटे हो जाते हैं, प्लास्टिक विनिर्माण के लिए उपयोग किए जाने वाले राल छर्रे, या स्वास्थ्य और सौंदर्य प्रसाधन  में उपयोग किए जाने वाले छोटे माइक्रोबीड्स  आदि शामिल हैं।

• गौरतलब है कि माइक्रोप्लास्टिक बड़े प्लास्टिक के सामानों, जैसे प्लास्टिक की बोतलों और थैलियों से अलग होते हैं, जिन्हें “मैक्रोप्लास्टिक” कहा जाता है।

माइक्रोप्लास्टिक्स के प्रकार:

  • प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक्स: ये व्यावसायिक उपयोग के लिए बनाए गए छोटे कण होते हैं, जैसे कि कॉस्मेटिक्स में पाए जाने वाले माइक्रोबीड्स। साथ ही कपड़े और अन्य वस्त्रों, जैसे मछली पकड़ने के जाल से निकलने वाले माइक्रोफाइबर भी प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक माने जाते हैं।
  • द्वितीयक माइक्रोप्लास्टिक: ये बड़े प्लास्टिक के सामान, जैसे पानी की बोतलों के टूटने से उत्पन्न कण होते हैं। यह टूट-फूट मुख्य रूप से पर्यावरणीय कारकों, विशेषकर सूर्य के विकिरण और समुद्री लहरों के संपर्क में आने के कारण होता है।

पर्यावरणीय प्रभाव

  • माइक्रोप्लास्टिक्स जैव निम्नीकृत( बायोडिग्रेडेड) नहीं होते हैं , जिससे वे पर्यावरण में जमा होते रहते हैं और बने रहते हैं।
  • वे समुद्री जीवों द्वारा निगले जा सकते हैं, जिससे जलीय जीवन के लिए खतरा पैदा हो सकता है और और माइक्रोप्लास्टिक्स खाद्य श्रृंखला के साथ संलग्न हो सकते हैं।
  • इसके अतिरिक्त, माइक्रोप्लास्टिक्स जहरीले रसायनों और प्रदूषकों को अपने साथ ले जा सकते है, जिससे जीवों और पारिस्थितिक तंत्र को और अधिक खतरा हो सकता है।

सरकारी पहल

भारत की पहल:

  • 2022 तक एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 
  • वैश्विक पहल
  • प्लास्टिक समझौते
  • लंदन अभिसमय 1972
  • समुद्री कचरे पर वैश्विक भागीदारी (जीपीएमएल)

आगे की राह: 

  • 3R’s+E रणनीति : प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने और सतत प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए 3R + E रणनीति अपनाएं: कम करें, पुनः उपयोग करें, पुनर्चक्रित करें और शिक्षित करें। 
  • कानूनी उपाय लागू करें : पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों को प्रोत्साहित करने और प्लास्टिक उत्पादन और निपटान को विनियमित करने के लिए कानून, नीतियां और कराधान लागू करें।
  • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) कार्यक्रम लागू करें : निर्माताओं को उत्पाद जीवनचक्र के लिए जवाबदेह ठहराएँ और प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन के लिए सहयोग को बढ़ावा दें।

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