संदर्भ:

हाल ही मे, गोवा सरकार ने डोडोल (Dodol) नामक गोवा की मिठाई को भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्रदान करने हेतु औपचारिक रूप से आवेदन किया है।

अन्य संबंधित जानकारी  

  • यह आवेदन को ऑल गोवा बेकर्स एंड कन्फेक्शनर्स एसोसिएशन द्वारा किया गया, जिसमें गोवा सरकार के विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अपशिष्ट प्रबंधन विभाग द्वारा सहयोग किया गया है।
  • गत वर्ष गोवा के बेबिंका  मिठाई को GI टैग मिला था।

भौगोलिक संकेतक टैग

  • भौगोलिक संकेतक (GI) टैग किसी उत्पाद को एक विशिष्ट भौगोलिक स्थान के साथ दर्शाता है।
  • इसके उत्पाद के गुण, प्रसिद्धि या विशेषताएँ अनिवार्य रूप से उस स्थान के कारण होती हैं।

प्रमुख बिन्दु 

  • पंजीकरण और संरक्षण: GI टैग भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री द्वारा प्रदान किए जाते हैं।
  • यह भारत में माल के भौगोलिक उपदर्शन (रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 के द्वारा शासित होता है।
  • यह रजिस्ट्री पेटेंट, डिजाइन और ट्रेडमार्क के महानियंत्रक के अंतर्गत आती है, जिसकी देखरेख वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
  • GI टैग प्राप्त कुछ प्रमुख उत्पाद: दार्जिलिंग चाय, कांचीपुरम सिल्क, अल्फांसो आम आदि।

लाभ 

  • भारतीय उत्पादों की प्रतिष्ठा और गुणवत्ता का संरक्षण करता है।
  • उत्पादन क्षेत्रों के आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।
  • उत्पादकों को सशक्त बनाता है और इसके नकल को प्रतिबंधित करता है।

डोडोल मिठाई के बारे में  

  • डोडोल गोवा की एक उत्कृष्ट मिठाई है, जिसकी तुलना अक्सर गोवा की मिठाइयों की रानी के नाम से प्रसिद्ध ‘बेबिंका’ से की जाती है।
  • यह गहरे भूरे रंग का होता है और इसकी बनावट जेली जैसी होती है। इसकी मुख्य सामग्री में चावल का आटा, नारियल पानी और काला ताड़ (पाम) का गुड़ (Jaggery) शामिल है।
  • मूलतः, डोडोल को ईसाई परिवारों द्वारा क्रिसमस के दौरान ‘कॉनसोआडा’ (consoada) यानी, रिश्तेदारों और पड़ोसियों को दी जाने वाली मिठाइयाँ के रूप में तैयार किया जाता था।
  • समय के साथ, यह गोवा के विविध पाककला के इतिहास का एक अभिन्न अंग बन गया है।
  • गोवा के अतिरिक्त, डोडोल के विभिन्न रूप दक्षिण-भारत, श्रीलंका, इंडोनेशिया, थाईलैंड, मलेशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य भागों में भी लोकप्रिय हैं।

गोवा में डोडोल का इतिहास और महत्व

  • डोडोल के बनाने की शुरुआत बहस का एक विषय है। कुछ विद्वानों के अनुसार इस मिठाई का एक पारंपरिक संस्करण 8वीं और 11वीं शताब्दी के बीच इंडोनेशिया के मेडांग साम्राज्य में शाही भोज में परोसा जाता था।
  • एक अन्य स्त्रोत के अनुसार, डोडोल के एक प्रकार का प्रारंभ 20वीं सदी की शुरुआत में इंडोनेशिया में डच औपनिवेशिक शासन के दौरान हुई थी। ऐसा माना जाता है कि गोवा में डोडोल की शुरुआत 17वीं सदी में पुर्तगाली शासन के दौरान हुई थी।
  • गोवा सरकार द्वारा GI टैग के लिए किए गए आवेदन में इस बात का उल्लेख किया गया है कि गोवा के घरों में एक आम धारणा है कि एक कैथोलिक महिला को अपने पहले बच्चे के जन्म के बाद अपने पति के घर (ससुराल) जाने पर डोडोल और केले को “वोजे” (उपहार) के रूप में ले जाना चाहिए। यह परंपरा गोवा के समाज में डोडोल के सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित करती है।
  • इस आवेदन में डोडोल के अनुठें स्वाद का भी वर्णन किया गया है, जिसमें गोवा पिरामिड गुड़  (Jaggery) के मीठे स्वाद और ताजे नारियल पानी की मलाईदार बनावट पर प्रकाश डाला गया है।
  • इसमें बताया गया है कि डोडोल को पारंपरिक रूप से ‘कैल’ नामक एक बड़े बर्तन में तैयार किया जाता है, जो अक्सर दहेज में मिला होता है।
  • एक प्रथा यह भी है कि यदि कोई ‘कैल’ उधार लेता है, तो उसे कृतज्ञता के संकेत के रूप में डोडोल के साथ वापस करना होता है।

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