संदर्भ: 

भारत ने वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा, हरित हाइड्रोजन और ईवी सहित स्वच्छ ऊर्जा मूल्य श्रृंखला में 500 बिलियन डॉलर से अधिक के निवेश के अवसरों की घोषणा की है।

अन्य संबंधित जानकारी 

  • वाणिज्य सचिव ने इसकी घोषणा सिंगापुर में आयोजित इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रॉसपेरिटी (Indo-Pacific Economic Framework for Prosperity-IPEF) के क्लीन इकोनॉमी इन्वेस्टर फोरम (Clean Economy Investor Forum) के दौरान की।
  • इस फोरम का उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में टिकाऊ अवसंरचना, जलवायु प्रौद्योगिकी और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश को बढ़ावा देना था।
  • सतत अवसंरचना ट्रैक में, चार भारतीय कंपनियों – रिन्यू पावर, अवाडा एनर्जी, इंडसब्रिज कैपिटल एडवाइजर्स और पावरिका – को ऊर्जा संक्रमण, परिवहन और लॉजिस्टिक्स तथा अपशिष्ट प्रबंधन पर अपनी अवधारणाएँ को वैश्विक निवेशकों के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए चुना गया था।
  • क्लाइमेटटेक ट्रैक (ClimateTech track) में 10 भारतीय स्टार्ट-अप और कंपनियों को जलवायु परिवर्तन को कम करने या उनका अनुकूलन करने में योगदान देने वाले उनके अभिनव योजना, प्रौद्योगिकियों और समाधानों को प्रस्तुत करने के लिए चुना गया।

निवेश के प्रमुख क्षेत्र

  • नवीकरणीय ऊर्जा: भारत का लक्ष्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे कि सौर, पवन और जल विद्युत में अपनी स्थापित क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि करना है।
  • हरित हाइड्रोजन: नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करके उत्पादित हरित हाइड्रोजन परिवहन और औद्योगिक प्रक्रियाओं के लिए एक आशाजनक वैकल्पिक ईंधन है। इस क्षेत्र में अत्यधिक बढ़ोतरी देखने को मिलेगी, जिससे उत्पादन, भंडारण और वितरण प्रौद्योगिकियों में निवेश आकर्षित होगा।
  • इलेक्ट्रिक वाहन (EV): भारत जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता कम करने के साथ-साथ वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए इलेक्ट्रिक गतिशीलता की ओर कदम बढ़ा रहा है।
  • ऊर्जा दक्षता: भवनों, उपकरणों और औद्योगिक प्रक्रियाओं के लिए ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकियों में निवेश से समग्र ऊर्जा खपत और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में मदद करेगा।

महत्व

  • ऊर्जा सुरक्षा: आयातित जीवाश्म ईंधन पर भारत की निर्भरता एक रणनीतिक चुनौती है। स्वच्छ ऊर्जा निवेश ऊर्जा मिश्रण में विविधता लाने के साथ-साथ विदेशी ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता कम करके ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करेगा।
  • जलवायु परिवर्तन का शमन: वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में प्रमुख योगदानकर्ता भारत को स्थायी ऊर्जा पद्धतियों को अपनाने की आवश्यकता है। स्वच्छ ऊर्जा में निवेश से भारत को पेरिस समझौते के तहत जलवायु परिवर्तन संबंधी अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में मदद मिलेगी।
  • आर्थिक विकास: स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में नये रोजगार सृजित करने, विनिर्माण को बढ़ावा देने तथा आर्थिक विकास को गति देने की क्षमता है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रॉसपेरिटी (IPEF) फोरम स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों और अवसंरचना के विकास में अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के साथ सहयोग करने की भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।

चुनौतियाँ और आगे की राह

  • वित्तपोषण: इतनी बड़ी मात्रा में पूँजी जुटाने के लिए नवीन वित्तपोषण तंत्र और विदेशी निवेश को आकर्षित करने की आवश्यकता होती है।
  • अवसंरचना विकास: स्वच्छ ऊर्जा अवसंरचना के विस्तार, विशेष रूप से ग्रिड का एकीकरण और नवीकरणीय ऊर्जा के संचरण, हेतु पर्याप्त निवेश की आवश्यकता है।
  • नीति और विनियमन: नियामक फ़ेमवर्क को सुव्यवस्थित करने के साथ-साथ स्पष्ट और स्थिर नीतियों का निरंतर विकसित करके स्वच्छ ऊर्जा निवेश के लिए अनुकूल वातावरण सुनिश्चित करेगा।

इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रॉसपेरिटी (IPEF)

  • IPEF, मई, 2022 में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा शुरू की गई एक आर्थिक पहल है। इसका उद्देश्य क्षेत्र में विकास, आर्थिक स्थिरता और समृद्धि को आगे बढ़ाने के लक्ष्य के साथ, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका और साझेदार देशों के बीच आर्थिक संबंधों और सहयोग को मजबूत करना है।
  • IPEF के 14 संस्थापक सदस्य देशों में ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई दारुस्सलाम, फिजी, भारत, इंडोनेशिया, जापान, कोरिया गणराज्य (दक्षिण कोरिया), मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम और संयुक्त राज्य अमेरिका है।
  • ये देश विश्व की आर्थिक उत्पादन के 40 प्रतिशत और वैश्विक व्यापार के 28 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस फ्रेमवर्क को चार स्तंभों में विभाजित किया गया है।

आईपीईएफ (IPEF) के स्तंभ:

आईपीईएफ एक पारंपरिक मुक्त व्यापार समझौता नहीं है, बल्कि यह चार प्रमुख क्षेत्रों (स्तंभों) में सहयोगात्मक प्रयासों पर केंद्रित है। आईपीईएफ को लचीला बनाया गया है, जिसका अर्थ है कि आईपीईएफ साझेदारों को सभी चार स्तंभों में शामिल होने की आवश्यकता नहीं है।

1. व्यापार: इस स्तंभ का उद्देश्य सीमा शुल्क प्रक्रियाओं और मानकों को सुव्यवस्थित करने जैसे व्यापार सुविधा उपायों पर आम सहमति स्थापित करना है। (भारत ने इस स्तंभ से बाहर निकलने का विकल्प चुना है।)

2. आपूर्ति श्रृंखला लचीलापन: यह क्षेत्र में आपूर्ति श्रृंखला लचीलापन को मजबूत करने, महत्वपूर्ण सामग्रियों पर विविधीकरण और सहयोग को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।

3. स्वच्छ अर्थव्यवस्था: यह स्तंभ स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों, अवसंरचना के विकास और डीकार्बोनाइजेशन प्रयासों पर सहयोग को प्रोत्साहित करता है।

4. निष्पक्ष अर्थव्यवस्था: यह भ्रष्टाचार-रोधी उपायों, सुशासन को बढ़ावा देने के साथ-साथ निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा और व्यवसायों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने पर जोर देता है।  

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