सामान्य अध्ययन-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन|

संदर्भ:

अखिल भारतीय समकालिक हाथी अनुमान (SAIEE) 2025 के अनुसार भारत में हाथियों की आबादी 18,255 से 26,645 के बीच (औसतन 22,446) है।

अन्य संबंधित जानकारी

• पर्यावरण मंत्रालय, प्रोजेक्ट एलीफेंट और भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा संयुक्त रूप से किया गया 2025 का यह अभ्यास भविष्य में हाथियों की निगरानी और संरक्षण योजना के लिए एक नई वैज्ञानिक आधार रेखा स्थापित करता है।

• सरकार ने 2021 में सर्वेक्षण शुरू होने के लगभग चार साल बाद लंबे समय से विलंबित रिपोर्ट जारी की।

SAIEE के मुख्य बिंदु

• देश की पहली डीएनए-आधारित गणना के अनुसार, भारत में जंगली हाथियों की अनुमानित आबादी 22,446 है, जो वर्ष 2017  (27,312) से कम है।

• विभिन्न क्षेत्रों में हाथियों की आबादी:

  • पश्चिमी घाट: 11,934 
  • उत्तर-पूर्वी पहाड़ियाँ और ब्रह्मपुत्र बाढ़ के मैदान: 6,559
  • शिवालिक पहाड़ियाँ और गंगा का मैदान: 2,062
  • मध्य भारत और पूर्वी घाट: 1,891

• विभिन्न राज्यों में हाथियों की आबादी:  

  • कर्नाटक: 6,013
  • असम: 4,159
  • तमिलनाडु: 3,136
  • केरल: 2,785
  • उत्तराखंड: 1,792
  • ओडिशा: 912

SAIEEE 2025 की क्रियाविधि

• नवीनतम अभ्यास में बाघ-आकलन शैली की विधि का उपयोग किया गया, जिसमें 20 राज्यों के वन क्षेत्रों को छोटे-छोटे खंडों में विभाजित करके हाथियों के चिह्न, वनस्पति, अन्य वन्यजीव और मानव गतिविधि को रिकॉर्ड किया गया।

• भारत के वनों को 100 वर्ग किलोमीटर के खंडों में विभाजित किया गया, जिन्हें आगे 25 वर्ग किलोमीटर और 4 वर्ग किलोमीटर के ग्रिड में विभाजित किया गया। यह 2006 से उपयोग किए जा रहे बाघ आकलन कार्यक्रम से प्रेरित एक डिज़ाइन है।

• नई गणना में ज़मीनी सर्वेक्षण, उपग्रह-आधारित मानचित्रण और आनुवंशिक विश्लेषण को मिलाकर तीन-चरणीय प्रक्रिया का उपयोग किया गया।

  • पहले चरण में, वन विभाग की टीमों ने व्यापक पैदल सर्वेक्षण के दौरान हाथियों की उपस्थिति दर्ज करने के लिए M-Stripes ऐप का इस्तेमाल किया।
  • दूसरे चरण में उपग्रह डेटा का उपयोग करके आवास की गुणवत्ता और मानव पदचिह्न का आकलन किया गया।
  • तीसरे चरण में 4,065 विशिष्ट हाथियों की पहचान करने के लिए गोबर से डीएनए का पता लगाना शामिल था। इसके लिए वैज्ञानिकों ने समग्र आबादी का अनुमान लगाने हेतु मार्क-रिकैप्चर मॉडल (Mark-Recapture Model) का उपयोग किया।

• 20,000 से अधिक गोबर के नमूनों का उपयोग करके, वैज्ञानिकों ने प्रमुख भू-भागों में 4,065 विशिष्ट हाथियों की पहचान की।

• चूँकि हाथियों में विशिष्ट चिह्नों का अभाव होता है, इसलिए गोबर से प्राप्त डीएनए शोधकर्ताओं को हाथियों की पहचान करने और उनकी संख्या का अनुमान लगाने में मदद करते हैं।

हाथियों के आवासों के लिए खतरा

• रिपोर्ट में हाथियों के आवासों के लिए महत्वपूर्ण खतरों पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें कॉफी और चाय के बागानों का विस्तार, आक्रामक प्रजातियों, बाड़ लगाने और पश्चिमी घाटों में तेजी से विकास के कारण होने वाला विखंडन शामिल है।

• पश्चिमी घाट, शिवालिक पहाड़ियों और ब्रह्मपुत्र के मैदानों में रेलवे, सड़क, बिजली परियोजनाओं, अतिक्रमण और भूमि उपयोग में परिवर्तन के कारण आवास की क्षति और हाथी गलियारों में व्यवधान आना उल्लेखनीय है।

• मध्य भारत में खनन हाथियों के लिए एक बड़ा खतरा है, साथ ही आक्रामक पौधे, मानवीय हस्तक्षेप और स्थानीय समुदायों के साथ उनका संघर्ष (मानव-पशु संघर्ष) भी उनके लिए खतरा बना हुआ है। इन चुनौतियों से निपटने लिए सहकारी संरक्षण प्रयासों की आवश्यकता है।

स्रोत:
The Hindu 
Indian Express

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