संदर्भ: 

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय के अनुसंधान एवं योजना केंद्र ने “भारत में कारागार: कारगार नियमावली का प्रतिचित्रण और सुधार एवं भीड़भाड़ कम करने के उपाय” पर एक रिपोर्ट जारी की।

  • रिपोर्ट के मुख्य बिन्दु : पायलट प्रोग्राम  की सिफारिश: रिपोर्ट में पैरोल  अवधि में अच्छे आचरण वाले कम और मध्यम जोखिम वाले विचाराधीन कैदियों के लिए इलेक्ट्रॉनिक निगरानी को शुरू में ही लागू करने का सुझाव दिया गया है।
  • कानूनी ढांचा: रिपोर्ट में कैदियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किए बिना निगरानी प्रौद्योगिकी को लागू करने हेतु स्पष्ट दिशानिर्देशों और न्यूनतम मानकों की आवश्यकता पर भी बल  दिया गया है।

सुधार प्रोत्साहन: कारागार  अवकाश के दौरान सहमति से इलेक्ट्रॉनिक निगरानी के माध्यम से अच्छे आचरण और सुधार की संभावना को प्रोत्साहित किया जा सकता है।

  • एंकल ट्रैकर्स या ब्रेसलेट का उपयोग: रिपोर्ट में जेल में अत्यधिक भीड़ की समस्या से निपटने के लिए व्यावहारिक समाधान के रूप में एंकल ट्रैकर्स (टखने पर लगाए जाने वाले ट्रैकर) या ब्रेसलेट (कलाई पर लगाए जाने वाले ट्रैकर) का उपयोग करने का सुझाव दिया गया है, ताकि जमानत पर अस्थायी रूप से रिहा किए गए कैदियों की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके। रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई है कि एंकल ट्रैकर का उपयोग स्वैच्छिक होना चाहिए तथा कैदियों की  सहमति पर आधारित होना चाहिए।

क्रमिक कार्यान्वयन: अपराधी प्रबंधन में प्रौद्योगिकी की सफलता दर के आधार पर, रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि कुछ सुधार कार्यक्रमों को अन्य श्रेणियों के कैदियों हेतु भी प्रयुक्त किया जा सकता है।

भारतीय कारागारों में क्षमता से अधिक कैदियों की समस्या (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार)

  • वर्तमान उपयोग: 31 दिसंबर, 2022 तक भारतीय कारागारों में 4,36,266 की कुल क्षमता के मुकाबले 5,73,220 कैदी थे जिसके परिणामस्वरूप 131% उपयोग (अधिभोग) दर है।
  • विचाराधीन कैदियों की संख्या: 75.7% (4,34,302) कैदी विचाराधीन हैं, जो कारागारों में अत्यधिक भीड़भाड़ का कारण बनते हैं।
  • राज्यवार वितरण: उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब और हरियाणा में कैदी की कुल संख्या का 50% से भी अधिक हिस्सा कारागार में रहता है।
  • महत्वपूर्ण क्षेत्र: इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2022 के अनुसार उत्तराखंड की 11 जेलों में कैदियों की उच्चतम उपयोग दर 185% है जिसके बाद दिल्ली में 182% और मध्य प्रदेश में 164.1% है।

इलेक्ट्रॉनिक निगरानी प्रौद्योगिकी

  • कार्यान्वयन रणनीति: इस प्रौद्योगिकी में रिहाई अवधि के दौरान कैदियों द्वारा पहने जाने वाले उपकरणों की निगरानी करना शामिल है जिससे प्राधिकारियों को उनकी गतिविधियों पर नज़र रखने में मदद मिलेगी।
  • कानूनी अनुकूलन: मॉडल जेल और सुधार सेवा अधिनियम, 2023 आधिकारिक तौर पर कारागार अवकाश हेतु एक शर्त के रूप में इलेक्ट्रॉनिक निगरानी उपकरण को शामिल करता है।
  • निगरानी तंत्र: यह प्रणाली इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के माध्यम से कैदियों की अवस्थिति और गतिविधियों पर वास्तविक समय में नज़र रखने की सुविधा प्रदान करती है।
  • सहमति की आवश्यकता: कार्यान्वयन के लिए कैदियों को अपनी रिहाई की शर्त के रूप में निगरानी उपकरण धारण करने की इच्छा व्यक्त करनी होगी।

इलेक्ट्रॉनिक निगरानी के लाभ

  • भीड़भाड़ पर प्रभाव: इलेक्ट्रॉनिक निगरानी भौतिक कारावास का एक विकल्प प्रदान करती है जिससे जेल में भीड़भाड़ को कम करने में मदद मिलती है।
  • लागत में कमी: यह प्रणाली हिरासत में लिए गए व्यक्तियों की संख्या को कम करके सरकारी व्यय को कम करने में मदद करती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: कैदियों को परिवार के साथ संपर्क बढ़ने और एकांत-संबंधी तनाव कम होने से लाभ मिलता है।
  • उन्नत पर्यवेक्षण: अधिकारी कैदियों को आवागमन की अधिक स्वतंत्रता देते हुए निगरानी रख सकते हैं।

चुनौतियाँ और चिंताएँ

  • गोपनीयता संबंधी मुद्दे: निरंतर निगरानी के माध्यम से कैदियों के मौलिक अधिकारों के संभावित उल्लंघन के बारे में चिंताएं व्यक्त की गई हैं।
  • कार्यान्वयन जटिलताएं: प्रणाली का दुरुपयोग रोकने और निष्पक्ष अनुप्रयोग सुनिश्चित करने के लिए सावधानीपूर्वक दिशानिर्देशों के पालन की  आवश्यकता है।
  • तकनीकी अवसंरचना: आवश्यक तकनीकी अवसंरचना का गठन और रखरखाव महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं।
  • सार्वभौमिक अनुप्रयोग जोखिम: विशेषज्ञ कुछ मामलों में संभावित अप्रभाविता का हवाला देते हुए, व्यापक कार्यान्वयन के खिलाफ सचेत करते हैं।

भारत में वैधानिक प्रयास 

  • उच्चतम न्यायालय का फैसला: जुलाई 2024 में, फ्रैंक विटस बनाम नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो मामले में, उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया कि जमानत की शर्त के रूप में गूगल मैप्स के माध्यम से साप्ताहिक स्थान साझा करना संविधान के अनुच्छेद 21 (गोपनीयता के अधिकार) का उल्लंघन है।
  • जमानत की शर्तें: विभिन्न उच्च न्यायालयों ने जमानत आवश्यकताओं के एक भाग के रूप में स्थान निगरानी का प्रयोग किया है।
  • कानूनी ढांचे का विकास: विधि आयोग की वर्ष 2017 की रिपोर्ट में इलेक्ट्रॉनिक टैगिंग की क्षमता को स्वीकार किया गया तथा सावधानीपूर्वक कार्यान्वयन पर बल दिया गया।

वैश्विक प्रयास :

  • संयुक्त राज्य अमेरिका: संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपराधियों की विशिष्ट श्रेणियों के लिए कारावास के विकल्प के रूप में इलेक्ट्रॉनिक निगरानी प्रणाली गठित की है।
  • ब्रिटेन: यहां विभिन्न अपराधी प्रबंधन कार्यक्रमों के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग लागू किया गया है।
  • कनाडा और ऑस्ट्रेलिया: दोनों देशों में जेल में कैदियों का प्रबंधन करने और रिहा किए गए कैदियों की निगरानी करने के लिए निगरानी प्रौद्योगिकी का सफलतापूर्वक उपयोग किया गया है।

आगे की राह:

  • चरणबद्ध कार्यान्वयन: कम जोखिम वाले कैदियों के लिए मार्गदर्शी कार्यक्रमों से शुरुआत की जाए और सफलता दर के आधार पर धीरे-धीरे विस्तार किया जाए।
  • बुनियादी ढांचे का विकास: आवश्यक तकनीकी बुनियादी ढांचे और प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश करना।
  • अधिकार संरक्षण: कैदियों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए मजबूत सुरक्षा उपाय विकसित करना तथा भीड़-भाड़ कम करने के लक्ष्य को प्राप्त करना।
  • हितधारक सहभागिता: कार्यान्वयन योजना में कारागार प्रशासकों, कानूनी विशेषज्ञों और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों को शामिल करना।

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