संबंधित पाठ्यक्रम:
सामान्य अध्ययन 2: भारत और इसके पड़ोसी- संबंध।
संदर्भ:
भारत ने हाल ही में लिपुलेख दर्रे के माध्यम से भारत-चीन व्यापार पर नेपाल की आपत्ति का विरोध करते हुए कहा कि नेपाल के दावों का कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है।
अन्य संबंधित जानकारी
- भारत और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच हुई बैठक के दौरान लिपुलेख दर्रे, शिपकी-ला और नाथू-ला के माध्यम से सीमा व्यापार फिर से शुरू करने पर सहमति बनी।
- नेपाल ने लिपुलेख क्षेत्र पर अपना दावा जताया और इसके माध्यम से व्यापार मार्ग खोलने के भारत-चीन समझौते पर चिंता व्यक्त की।
भारत-नेपाल सीमा विवाद

- . कालापानी क्षेत्र को लेकर भारत और नेपाल के बीच क्षेत्रीय विवाद 1816 में आंग्ल-नेपाल युद्ध के समाप्त होने पर हुई सुगौली की संधि से उभरा है।
- संधि के अनुच्छेद 5 के अनुसार, काली नदी के पूर्व की भूमि पर नेपाल के शासकों का क्षेत्राधिकार नहीं होगा।
- हालाँकि, काली नदी का वास्तविक उद्गम स्रोत भी विवाद का विषय रहा है, क्योंकि विभिन्न ऐतिहासिक मानचित्रों में नदी के उद्गम स्रोत अलग-अलग है।
- प्रारंभिक ब्रिटिश भारत के मानचित्रों (1819, 1821, 1827 और 1856) में काली नदी को लिम्पियाधुरा से निकलते हुए दर्शाया गया है।
- बाद के मानचित्रों (विशेषकर 1879 से 1920-21 तक) में कुटी यांगती नामक एक अन्य नदी को काली नदी के रूप में दर्शाया गया है। इस विसंगति के कारण यह विवाद और बढ़ गया।
- 1950 की शांति और मैत्री संधि के बाद, भारत और नेपाल ने स्पष्ट रूप से परिभाषित और पारस्परिक रूप से स्वीकृत खुली सीमा स्थापित की।
- हालाँकि नवीनतम विवाद अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर (J&K) और लद्दाख नामक दो नए केंद्र शासित प्रदेशों के बनने के बाद से शुरू हुआ।
- इसके बाद, भारत ने नवंबर 2019 में एक नया राजनीतिक मानचित्र प्रकाशित किया, जिसमें कालापानी क्षेत्र को भारतीय क्षेत्र के हिस्से के रूप में दर्शाया गया।
- भारतीय मानचित्र पर आपत्ति जताते हुए नेपाल ने भी एक मानचित्र प्रस्तुत किया जिसमें पिथौरागढ़ के कालापानी-लिपुलेख-लिंपियाधुरा क्षेत्र को नेपाल के भू-भाग में दर्शाया गया।
- इसके अलावा, देश के मानचित्र में परिवर्तन को वैध बनाने के लिए नेपाल की संसद द्वारा एक संविधान संशोधन विधेयक भी पारित किया गया।
सीमा प्रशासन में चुनौतियाँ
- क्षेत्रीय विवाद: कालापानी सीमा का अभी तक उचित रूप से सीमांकन नहीं किया गया है, विशेष रूप से इस क्षेत्र में तथाकथित ‘नो-मैन्स लैंड’ (निर्जन भूमि) का।
- बाहरी प्रभाव: नेपाल में बढ़ता चीनी प्रभाव और अन्य बाहरी कारकों का संभावित हस्तक्षेप सीमा विवाद समाधान और सहयोग में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
- अप्रभावी संयुक्त तंत्र: भारत और नेपाल द्वारा 1981 में सीमा निरीक्षण और 1997 में सीमा प्रबंधन समितियों जैसे संयुक्त तंत्र स्थापित किए गए थे, लेकिन प्रमुख सीमा मुद्दे अभी भी अनसुलझे हैं।
आगे की राह
- संयुक्त तकनीकी स्तरीय सीमा समिति का पुनर्गठन करना: शेष 3% सीमा मुद्दों को व्यवस्थित रूप से हल करने के लिए दोनों देशों के विशेषज्ञों की एक समर्पित तकनीकी समिति का पुनर्गठन करें।
- सीमा का सीमांकन और प्रबंधन: मौजूदा संधियों और समझौतों के आधार पर सीमा का स्पष्ट और सुस्पष्ट सीमांकन आवश्यक है।
- कानूनी और संस्थागत ढाँचा: सीमा प्रशासन के लिए एक स्पष्ट कानूनी ढाँचा विकसित करना सीमा मुद्दों के प्रबंधन और विवादों के समाधान के लिए एक ठोस आधार प्रदान कर सकता है।
स्रोत:
https://www.orfonline.org/research/india-and-nepals-kalapani-border-dispute-an-explainer-65354