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सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियां; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास।
संदर्भ:
हाल ही में, भारतीय रेलवे ने तमिलनाडु के चेन्नई स्थित इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) में देश के पहले हाइड्रोजन-चालित कोच का सफल परीक्षण किया।
अन्य संबंधित जानकारी
- भारत 1,200 हॉर्सपावर की हाइड्रोजन-चालित ट्रेन विकसित कर रहा है, जिससे देश हाइड्रोजन ट्रेन तकनीक में वैश्विक दिग्गजों में शामिल हो जाएगा।
- भारत की पहली हाइड्रोजन-चालित ट्रेन अगस्त 2025 के अंत तक शुरू होगी।
- इसे उत्तर रेलवे के तहत जींद-सोनीपत मार्ग पर चलाने की योजना है।
- उत्तर रेलवे इन ट्रेनों को ईंधन प्रदान करने के लिए एक हाइड्रोजन उत्पादन संयंत्र स्थापित कर रहा है।
हाइड्रोजन चालित ट्रेन
- ये ट्रेन बिजली उत्पन्न करने के लिए हाइड्रोजन ईंधन सेल का उपयोग करती हैं, जो कि पारंपरिक डीजल ट्रेन या ओवरहेड बिजली लाइनों पर निर्भर इलेक्ट्रिक ट्रेनों के लिए अधिक इकोफ्रेंडली विकल्प प्रस्तुत करती हैं।
- ईंधन सेल हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के बीच अभिक्रिया के माध्यम से बिजली का उत्पादन करती हैं, तथा उप-उत्पाद के रूप में केवल जल वाष्प और ऊष्मा उत्सर्जित करती हैं – जिससे ये ट्रेनें वास्तव में शून्य-उत्सर्जन परिवहन समाधान बन जाती हैं।
हाइड्रोजन ईंधन ट्रेन कैसे काम करती हैं?
- हर ट्रेन को एक ऊर्जा स्रोत की आवश्यकता होती है और इस मामले में, वह हाइड्रोजन है। हाइड्रोजन से बिजली उत्पन्न की जाती है और उसे ट्रेन में लगी बैटरियों में स्टोर किया जाता है।
- यह संग्रहित बिजली, रेक्टिफायर्स और अन्य विद्युत प्रणालियों द्वारा प्रबंधित शक्ति के साथ, ट्रेन के धुरों पर लगे ट्रैक्शन मोटर्स को दी जाती है, जिससे ट्रेन गति करती है।
भारत की पहली हाइड्रोजन-चालित ट्रेन की विशेषताएं
- परिवर्तित ट्रेन 10 कोच वाली DEMU (डीजल-इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट) होगी जिसमें दो 1600 HP पावर कार होंगी।
- यह ट्रेन गैर-वातानुकूलित होगी और इसमें दस कोच होंगे – दोनों छोर पर दो हाइड्रोजन-ईंधन वाली पावर कार और आठ यात्री कोच।
- यह ट्रेन 110 किमी/घंटा तक की चाल के लिए डिज़ाइन की गई है और यह पारंपरिक कम दूरी की पैसेंजर ट्रेनों जैसी होगी।
- प्रत्येक पावर कार पर लगे हाइड्रोजन सिलेंडर 350 दाब दबाव पर 220 किलोग्राम हाइड्रोजन स्टोर करेंगे।
हाइड्रोजन गतिशीलता पहल
- यह परियोजना व्यापक ” हाइड्रोजन फॉर हेरिटेज” पहल का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य भारत में विरासत स्थलों और पहाड़ी मार्गों पर 35 हाइड्रोजन-चालित ट्रेनें चलाना है।
- अनुमानित लागत प्रति ट्रेन ₹80 करोड़ और सहायक जमीनी बुनियादी ढाँचे के लिए प्रति मार्ग ₹70 करोड़ है।
- ₹111.83 करोड़ की लागत से एक मौजूदा डीजल इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट (DEMU) को हाइड्रोजन ईंधन सेल से लैस करने हेतु भी एक अलग पायलट परियोजना चल रही है।
हाइड्रोजन ईंधन सेल का महत्व
- ये शून्य प्रत्यक्ष CO₂ उत्सर्जन करते हैं, केवल जल वाष्प और ऊष्मा उत्सर्जित करते हैं, जिससे ये डीज़ल ट्रेनों का इको फ्रेंडली विकल्प बन जाते हैं।
- गैर-विद्युतीकृत और दूरस्थ मार्गों के लिए आदर्श, जहाँ विद्युतीकरण महंगा या अव्यावहारिक है, वहाँ ये एक स्थायी समाधान प्रदान करते हैं।
- हाइड्रोजन-चालित इंजन मौजूदा रेलवे पटरियों पर चल सकते हैं, जिससे ये हरित गतिशीलता (green mobility) के लिए कम-बुनियादी ढाँचे वाला विकल्प बन जाते हैं।
- जैसे-जैसे तकनीक परिपक्व होती है और उसका दायरा बढ़ता है वैसे-वैसे दीर्घावधि में ऊर्जा दक्षता और ईंधन अर्थव्यवस्था में वृद्धि होगी।
चुनौतियाँ
- ईंधन भरने के लिए सीमित नेटवर्क: हाइड्रोजन ईंधन भरने वाले स्टेशन बहुत कम हैं और दूर-दूर तक फैले हुए हैं, खासकर दूरदराज के इलाकों में, इसलिए बुनियादी ढाँचे को नए सिरे से विकसित करने की ज़रूरत है।
- हाइड्रोजन उत्पादन की उच्च लागत: हरित हाइड्रोजन (इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा उत्पादित) पारंपरिक डीज़ल या ग्रिड पावर की तुलना में काफ़ी महँगा है।
- सीमित परिचालन सीमा: ऑन-बोर्ड हाइड्रोजन ऊर्जा घनत्व डीज़ल की तुलना में कम होता है, जिसके लिए बड़े टैंक और बार-बार ईंधन भरने की आवश्यकता होती है।
- एकीकृत मानकों का अभाव: हाइड्रोजन ट्रेनों के लिए विशिष्ट नियामक कोड और प्रमाणन प्रणालियों का अभाव है।
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