संबंधित पाठ्यक्रम
सामान्य अध्ययन-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन।
संदर्भ: केंद्र सरकार द्वारा प्रवाल भित्तियों के अनुसंधान और निगरानी के लिए भारत का पहला समर्पित केंद्र राष्ट्रीय प्रवाल भित्ति अनुसंधान संस्थान (NCRRI) अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में स्थापित किया जाएगा।
अन्य संबंधित जानकारी
- यह संस्थान पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत ₹120 करोड़ की अनुमानित लागत से दक्षिण अंडमान में चिड़ियाटापू में स्थापित किया जाएगा।
- यह केंद्र भारत के तटीय और द्वीपीय क्षेत्रों में प्रवाल भित्ति पारिस्थितिकी तंत्रों के वैज्ञानिक अनुसंधान, संरक्षण योजना और प्रबंधन के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेगा।
- वैज्ञानिकों ने इस ओर ध्यान आकर्षित किया है कि जलवायु परिवर्तन, समुद्र का गर्म होना, समुद्र के स्तर में वृद्धि और मानवीय गतिविधियाँ प्रवाल पारिस्थितिकी तंत्रों पर लगातार गंभीर दबाव डाल रहे हैं, जिससे उनकी दीर्घकालिक निगरानी की आवश्यकता है।
राष्ट्रीय प्रवाल भित्ति अनुसंधान संस्थान (NCRRI) का महत्त्व
- यह संस्थान सभी प्रवाल भित्ति पारिस्थितिकी तंत्रों के लिए भारत के केंद्रीय अनुसंधान और निगरानी निकाय के रूप में कार्य करेगा।
- यह संस्थान राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तरों पर नीति और संरक्षण संबंधी निर्णयों के समर्थन के लिए व्यापक वैज्ञानिक डेटा तैयार करेगा।
- यह संस्थान उन्नत प्रवाल भित्ति संरक्षण तकनीकों, पारिस्थितिक पुनर्स्थापन और दीर्घकालिक आवास निगरानी पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- यह संस्थान प्रवाल भित्ति से जुड़ी मत्स्य पालन, पर्यटन और आजीविका प्रणालियों की समझ को बेहतर बनाकर तटीय और द्वीपीय समुदायों के उत्थान में सहायता करेगा।
- यह संस्थान प्रवाल विरंजन (coral bleaching) और आवास की हानि जैसे जलवायु-जनित तनावों का सामना करने की भारत की क्षमता को सुदृढ़ करेगा।
- यह संस्थान एक समन्वित भित्ति प्रबंधन ढांचा बनाने के लिए वैज्ञानिकों, संरक्षण एजेंसियों और स्थानीय संस्थानों के बीच सहयोग को बढ़ावा देगा।
प्रवाल भित्तियों के बारे में
- प्रवाल भित्तियाँ पथरीले प्रवाल पॉलिप्स (stony coral polyps) के कंकाल होते हैं और ये दोनों एक साथ जुड़े होते हैं। प्रवाल बहुत धीरे-धीरे वृद्धि करते हैं—कुछ प्रति वर्ष केवल 3-20 मिलीमीटर तक वृद्धि करते हैं।
- भित्तियाँ (Reefs) कटक जैसी संरचनाएँ होती हैं, भले ही वे प्राकृतिक हों या कृत्रिम। प्रवाल (Corals) प्राणी जगत के निडारिया संघ (phylum Cnidaria) के जीव हैं, जो आमतौर पर उष्णकटिबंधीय समुद्र तटों के पास पाए जाते हैं।
- वे सैकड़ों से हजारों जीवित जीवों (जिन्हें पॉलिप्स कहा जाता है) से मिलकर बने होते हैं, जिनमें से प्रत्येक का व्यास केवल कुछ मिलीमीटर होता है।
- प्रवाल भित्तियों को पनपने के लिए 23° C और 29° C के बीच इष्टतम तापमान वाले गर्म, उथले, स्वच्छ और खारे समुद्री जल की आवश्यकता होती है।
- उन्हें संलग्न होने (जुड़ने) के लिए एक कठोर अधः-स्तर (hard substrate) की भी आवश्यकता होती है, और सहजीवी शैवाल (symbiotic algae) के लिए स्वच्छ जल महत्वपूर्ण है, क्योंकि शैवाल को प्रकाश संश्लेषण के लिए सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है।
- तरंग क्रिया (Wave action) भी लाभदायक होती है क्योंकि यह पोषक तत्वों और ऑक्सीजन की आपूर्ति करती है, जबकि प्रवाल सतहों पर तलछट (sediment) को जमने से रोकती है।
प्रवाल भित्तियों के प्रकार

- फ्रिंजिंग भित्तियाँ (Fringing Reefs): ये द्वीपों और महाद्वीपों के आसपास तटरेखा के समीप विकसित होती हैं। ये संकरे, उथले लैगून द्वारा किनारे से पृथक होते हैं। ये भित्तियों का सबसे आम प्रकार है।
- बैरियर रीफ (Barrier reefs): ये तटरेखा के समानांतर भी होती हैं, लेकिन गहरे और चौड़े लैगून द्वारा उससे अलग होती हैं। अपने सबसे उथले बिंदुओं पर, वे जल की सतह तक पहुँच सकती हैं, जिससे ये नौवहन में ‘अवरोध’ (barrier) बन जाती है।
- एटोल (Atolls): ये प्रवाल के छल्ले (rings) होते हैं जो संरक्षित लैगून (lagoons) का निर्माण करते हैं और आमतौर पर समुद्र के बीच में स्थित होते हैं। एटोल (Atolls) आमतौर पर तब बनते हैं जब फ्रिंजिंग भित्तियों (fringing reefs) से घिरे द्वीप समुद्र में डूब जाते हैं या उनके चारों ओर समुद्र का जल स्तर बढ़ जाता है।
