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सामान्य अध्ययन 2: भारतीय संविधान —ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएं, संशोधन, महत्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।
संदर्भ:
हाल ही में, उपराष्ट्रपति ने संविधान की प्रस्तावना में आपातकाल के दौरान जोड़े गए “समाजवादी” और “पंथनिरपेक्ष” शब्दों का उल्लेख किया।
अन्य संबंधित जानकारी
- 1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में “समाजवादी” और “पंथनिरपेक्ष” शब्दों को शामिल किया गया, जिससे भारत के संविधान के मूल दस्तावेज़ में उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ।
- 1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा किए गए अधिकांश परिवर्तनों को बाद में 1978 में 44वें संशोधन द्वारा हटा दिया गया, परंतु प्रस्तावना अपरिवर्तित रही।
- 42वें संशोधन के द्वारा न केवल मूल कर्तव्यों, राज्य की नीति के निदेशक तत्त्वों को संविधान में जोड़ा गया बल्कि न्यायिक समीक्षा के दायरे को कम किया गया और परिसीमन प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई।
पंथनिरपेक्षता और समाजवादी शब्द से संबंधित प्रमुख प्रावधान
- मूल अधिकार (भाग III):
- अनुच्छेद 14: विधि के समक्ष समता और विधियों के समान संरक्षण की गारंटी देता है, धर्म के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है।
- अनुच्छेद 15: यह अनुच्छेद किसी भी नागरिक के साथ केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव करने पर प्रतिबंध लगाता है।
- अनुच्छेद 16: लोक नियोजन के मामलों में अवसर की समता सुनिश्चित करता है, धर्म के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध लगाता है।
- अनुच्छेद 25-28 (धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार):
- अनुच्छेद 25: अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने के अधिकार को सुनिश्चित करता है।
- अनुच्छेद 26: धार्मिक सम्प्रदायों को धर्म के मामलों में स्वतः प्रबंधन की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 27: किसी भी व्यक्ति को किसी विशेष धर्म के प्रचार या रखरखाव के लिए कर देने के लिए बाध्य करने पर प्रतिबंध लगाता है।
- अनुच्छेद 28: पूर्णतः राज्य निधि से संचालित शैक्षणिक संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा प्रदान करने पर प्रतिबंध लगाता है।
- सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार (अनुच्छेद 29-30): ये अनुच्छेद अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण करते हैं, उन्हें अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित रखने तथा अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और उनके प्रशासन की अनुमति प्रदान करते हैं।
- राज्य की नीति के निदेशक तत्व (भाग IV):
- अनुच्छेद 44: यह राज्य को पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करने का निर्देश देता है, जिसका उद्देश्य धर्म की परवाह किए बिना व्यक्तिगत कानूनों (पर्सनल लॉ) में समानता को बढ़ावा देना है।
- अनुच्छेद 38: राज्य को न्याय पर आधारित सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था को बढ़ावा देने और आय, स्थिति, सुविधाओं और अवसरों में असमानताओं को कम करने का निर्देश देता है।
- अनुच्छेद 39 (b ) और (c ): राज्य को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देता है कि संसाधन जनता की भलाई के लिए वितरित किए जाएं और धन का संकेन्द्रण केवल कुछ ही लोगों के पास न हो।
- मूल कर्तव्य (भाग IV-A):
- अनुच्छेद 51A(e): यह प्रत्येक नागरिक को भारत के सभी लोगों के बीच धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय या सांप्रदायिक विविधताओं से ऊपर उठकर सद्भाव और समान बंधुत्व की भावना को बढ़ावा देने के लिए बाध्य करता है।
- अनुच्छेद 51A(f): यह नागरिकों से भारत की सामासिक संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्व देने और संरक्षित करने का आह्वान करता है।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): राज्य की पंथनिरपेक्ष प्रकृति का अर्थ है कि राज्य को सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए, भले ही वे किसी भी धर्म के हों।
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि पंथनिरपेक्ष ता संविधान की मूल विशेषता है जिसे समाप्त नहीं किया जा सकता।
- मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980): आपातकालीन युग के संशोधनों की समीक्षा करते हुए, न्यायालय ने पाया कि समाजवाद हमेशा से एक मुख्य आदर्श रहा है जो संविधान के भाग IV जिसमें कई गैर-प्रवर्तनीय परंतु आवश्यक समाजवादी सिद्धांतों को रेखांकित किया गया, में परिलक्षित होता है।
- एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994): सर्वोच्च न्यायालय ने दोहराया कि पंथनिरपेक्षता संविधान की एक बुनियादी विशेषता है और इस बात पर जोर दिया कि “पंथनिरपेक्षता का अर्थ है राज्य द्वारा सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार”।
- शायरा बानो बनाम भारत संघ (2017): सर्वोच्च न्यायालय ने तत्काल प्रभाव से तीन तलाक की प्रथा को असंवैधानिक घोषित किया, जिससे लैंगिक समानता सुनिश्चित करने के लिए धार्मिक प्रथाओं में सुधार लाने में न्यायपालिका की भूमिका उजागर हुई।
- बिजो इमैनुएल बनाम केरल राज्य (1986): सर्वोच्च न्यायालय ने यहोवा के साक्षी (Jehovah’s Witnesses ) छात्रों के उनके धार्मिक विश्वासों के आधार पर राष्ट्रगान न गाने के अधिकार को बरकरार रखा जिससे अनुच्छेद 25 के तहत अंतःकरण की स्वतंत्रता को बल मिला।
- डॉ. बलरामसिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ: भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने संविधान में “पंथनिरपेक्ष ता” और “समाजवाद” शब्द को शामिल करने को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया।
- हालांकि प्रस्तावना में शब्दों को जोड़ा गया है परंतु निर्वाचित सरकारों द्वारा कानून या नीतियाँ बनाने पर तब तक प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है, जब तक कि वे मूल अधिकारों और संविधान के मूल ढांचे का पालन करते हैं। इसलिए, इस संशोधन को चुनौती देने का कोई वैध कारण नहीं है।
मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न
संविधान के भाग IV और प्रासंगिक न्यायिक व्याख्याओं के विशेष संदर्भ के साथ चर्चा कीजिए कि प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ शब्द का समावेश किस प्रकार इसके निर्माताओं के संवैधानिक दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करता है? (10अंक , 150शब्द)