संदर्भ:

हाल ही में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के केंद्रीय राज्य मंत्री ने 2025 में भारत की पहली मानवयुक्त डीप ओशन  पनडुब्बी (डीप-सी मैन्ड व्हीकल) के लॉन्च की घोषणा की।   

अन्य संबंधित जानकारी           

  • प्रारंभिक पनडुब्बी 2025 में 500 मीटर की गहराई तक संचालित होगी और 2026 तक इसे 6,000 मीटर की गहराई तक ले जाने का लक्ष्य है।  
  • यह मिशन भारत के गगनयान अंतरिक्ष मिशन जैसे अन्य ऐतिहासिक मिशनों की समयसीमा के साथ तालमेल रखता है। 

डीप ओशन  मिशन (DOM): 

इस मिशन को 2021 में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की केंद्रीय क्षेत्र योजना के रूप में लॉन्च किया गया था।

  • संयुक्त राष्ट्र ने 2021-2030 को सतत विकास के लिए महासागरीय विज्ञान का दशक घोषित किया है। 

इस मिशन का उद्देश्य भारत को समुद्री संसाधनों से ₹100 बिलियन से अधिक की “ब्लू इकोनॉमी (नीली अर्थव्यवस्था)” प्राप्त करने में मदद करना है।   

डीप ओशन  मिशन की कुल अनुमानित लागत पांच वर्षों (2021 से 2026) के लिए 4077 करोड़ रुपये है। 

यह मिशन प्रधानमंत्री की विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद (PMSTIAC) के अंतर्गत शुरू किए गए नौ मिशनों में से एक है।

मिशन के उद्देश्य:  

  • गहरे समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र की समझ को बढ़ाना, संधारणीय मत्स्य पालन व जैव विविधता संरक्षण में योगदान देना।
  • समुद्री जैव संसाधनों के सतत उपयोग के लिए तकनीकी नवाचारों और संरक्षण विधियों की पहचान करना।
  • गहरे समुद्री सजीव (जैव विविधता) और निर्जीव (खनिज) संसाधनों के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास करना।      
  • मध्य हिंद महासागर से 5500 मीटर की गहराई पर पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स जैसे गहरे समुद्री संसाधनों के खनन के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास करना। 

डीप ओशन  मिशन के घटक

गहरे समुद्र में खनन और मानवयुक्त पनडुब्बियों के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास:

(I) समुद्रयान डीप ओशन  मिशन के अंतर्गत एक परियोजना है। इस मिशन में “मत्स्य 6000” का उपयोग करके मध्य हिंद महासागर में 6,000 मीटर की गहराई तक पहुंचने के लिए चालक दल के साथ अभियान चलाना शामिल है, जिसे तीन सदस्यों के चालक दल के लिए डिज़ाइन किया गया है। इस  पनडुब्बी को चेन्नई स्थित राष्ट्रीय महासागरीय प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) द्वारा विकसित किया गया है। 

(II) वराह: यह समुद्र तल से पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स निष्कर्षित करने के लिए विकसित स्व-चालित खनन प्रणाली है, जिसे NIOT द्वारा विकसित किया गया है। वराह समुद्र तल से नोड्यूल्स को निकालने के लिए एक उच्च-शक्ति दाब पंप का उपयोग करता है। फिर नोड्यूल्स को पंप करके सतह पर मौजूद जहाज में लाया जाता है।

  • यह घटक गहरे समुद्र में खनिजों और ऊर्जा के अन्वेषण और दोहन में मदद करेगा जो नीली अर्थव्यवस्था प्राथमिकता वाला क्षेत्र है। 

महासागरीय जलवायु परिवर्तन परामर्श सेवाओं का विकास : इसमें महासागरीय अवलोकन और मॉडलिंग के माध्यम से भविष्य की जलवायु की समझ और पूर्वानुमान प्रदान करना शामिल है।

  • नीली अर्थव्यवस्था प्राथमिकता क्षेत्र: – तटीय पर्यटन।

गहरे समुद्र की जैव विविधता के अन्वेषण और संरक्षण के लिए तकनीकी नवाचार : इसमें गहरे समुद्री वनस्पतियों और जीवों की जैव-पूर्वेक्षण शामिल है।

  • नीली अर्थव्यवस्था प्राथमिकता क्षेत्र: – समुद्री मत्स्य पालन और संबद्ध सेवाएं।

गहरे महासागरीय सर्वेक्षण और अन्वेषण: इसका उद्देश्य हिंद महासागर के मध्य-महासागरीय कटकों के किनारे बहु-धातु हाइड्रोथर्मल सल्फाइड खनिजों के संभावित स्थलों की पहचान करना है।

  • नीली अर्थव्यवस्था प्राथमिकता क्षेत्र: – समुद्री संसाधनों का गहरे समुद्र में अन्वेषण।

महासागर से ऊर्जा और ताजा जल: यह अपतटीय महासागरीय तापीय ऊर्जा रूपांतरण (OTEC) द्वारा संचालित विलवणीकरण संयंत्रों के लिए इंजीनियरिंग डिजाइन का अध्ययन करता है। 

  • नीली अर्थव्यवस्था प्राथमिकता क्षेत्र: – अपतटीय ऊर्जा विकास।

महासागरीय जीवविज्ञान के लिए उन्नत समुद्री स्टेशन: यह घटक ऑन-साइट बिजनेस इनक्यूबेटर सुविधाओं के माध्यम से अनुसंधान को औद्योगिक अनुप्रयोग और उत्पाद विकास में रूपांतरित करेगा।

  • नीली अर्थव्यवस्था प्राथमिकता क्षेत्र: – समुद्री जीवविज्ञान, नीला व्यापार और नीला विनिर्माण।

मिशन का महत्व

  • यह 2019 में प्रतिपादित 2030 तक नए भारत के विजन के अनुरूप है, जिसमें नीली अर्थव्यवस्था को विकास के दस प्रमुख आयामों में से एक के रूप में रेखांकित किया गया है।
  • यह मिशन महासागरीय अन्वेषण में सतत विकास और वैज्ञानिक खोज के लिए आशा की किरण है।
  • यह मिशन ऐसे भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता है जहां महासागर की क्षमता का संधारणीय तरीके से जिम्मेदारीपूर्वक और प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाएगा।  
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