संदर्भ: वर्ष 2023 में उच्च सागर संधि (हाई सीज़ संधि) को अंतिम रूप दिए जाने के बाद, भारत अब अंतर्राष्ट्रीय महासागरीय जल में अपने हितों की रक्षा के लिए एक नया कानून बनाने जा रहा है।

अन्य संबंधित जानकारी

• पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने संधि के प्रावधानों के अनुरूप नए कानून की रूपरेखा तैयार करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय उपाध्याय की अध्यक्षता में 12 सदस्यीय मसौदा समिति का गठन किया है।

• अंतर्राष्ट्रीय समुद्री जल क्षेत्र, जो महासागरीय क्षेत्र का लगभग 64% है, वैश्विक साझा क्षेत्र माने जाते हैं तथा वर्तमान में किसी भी देश द्वारा किसी भी प्रकार की गतिविधि के लिए मुक्त हैं।

• इन जल क्षेत्रों में लगभग 22 लाख समुद्री प्रजातियाँ पाई जाती हैं और ये पारिस्थितिकीय, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा वैज्ञानिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण लाभ प्रदान करते हैं। 

उच्च सागर संधि के बारे में

• उच्च सागर (हाई सीज) संधि या राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता (BBNJ) समझौता, प्रदूषण और अत्यधिक संसाधन निष्कर्षण पर अंकुश लगाने का प्रयास करता है, साथ ही जैव विविधता और अन्य समुद्री संसाधनों के सतत उपयोग के प्रयासों को बढ़ावा देता है।

• यह संयुक्त राष्ट्र समुद्री क़ानून संधि (UNCLOS) के तहत तीसरा कार्यान्वयन समझौता है। 

  • इसके अंतर्गत पहले के दो कार्यान्वयन समझौते हैं: 1) गहरे समुद्र तल खनन पर समझौता (1994); 2) संयुक्त राष्ट्र मत्स्य स्टॉक समझौता (1995)। 

• इसे जून 2023 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया तथा सितम्बर 2023 में हस्ताक्षर के लिए खोला गया।

• उद्देश्य:

  • उच्च समुद्री क्षेत्रों में समुद्री संरक्षित क्षेत्र (Marine Protected Areas – MPAs) का निर्धारण कर समुद्री जैव विविधता की रक्षा करना। 
  • समुद्री आनुवंशिक संसाधनों (Marine Genetic Resources – MGRs) का सतत उपयोग और उनसे प्राप्त लाभों का न्यायसंगत बंटवारा सुनिश्चित करना। 
  • उच्च समुद्री क्षेत्रों में प्रमुख गतिविधियों के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) को अनिवार्य बनाना।

• यह संधि केवल उन्हीं समुद्री क्षेत्रों से संबंधित है जो किसी भी देश के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं, अर्थात अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZs) के परे हैं।

• यह संधि 60 देशों द्वारा अनुसमर्थन और अपने अनुसमर्थन दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के 120 दिन बाद लागू होगी। अब तक 55 देशों ने इस संधि का अनुसमर्थन कर लिया है।  

• भारत ने सितंबर 2024 में संधि पर हस्ताक्षर किये थे लेकिन अभी इसका अनुसमर्थन नहीं किया है।

UNCLOS के बारे में 

• वर्ष 1982 में अंगीकृत संयुक्त राष्ट्र समुद्री क़ानून संधि (UNCLOS) एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जो विश्व के महासागरों के उपयोग में राष्ट्रों के अधिकार और दायित्वों को परिभाषित करती है। 

• यह विभिन्न समुद्री क्षेत्रों जैसे प्रादेशिक समुद्र (12 समुद्री मील तक), सन्निहित क्षेत्र, अनन्य आर्थिक क्षेत्र (200 समुद्री मील तक), महाद्वीपीय शेल्फ और उच्च समुद्र को परिभाषित करता है, साथ ही प्रत्येक क्षेत्र में राष्ट्र की संप्रभुता और अधिकारों को स्पष्ट करता है।

• इस संधि ने प्रमुख निकायों की स्थापना की, जिनमें विवाद समाधान के लिए समुद्री कानून पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण (ITLOS), समुद्री खनन को विनियमित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (ISA) और महाद्वीपीय शेल्फ सीमाओं को परिभाषित करने के लिए महाद्वीपीय शेल्फ सीमा आयोग (CLCS) शामिल हैं।  

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