संदर्भ:
भारतीय सेना की सेंट्रल कमांड ने IIT कानपुर के साथ मिलकर ऑटो-ल्यूमिनेसेंट एवलांच विक्टिम डिटेक्शन सिस्टम (AAVDS) विकसित करने के लिए एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य:
- इस समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर का उद्देश्य ऊँचाई वाले और हिमाच्छादित क्षेत्रों में सैनिकों की सुरक्षा को बेहतर बनाना है।
- यह सहयोग स्वदेशी तकनीकी क्षमताओं का उपयोग करके एक अत्याधुनिक प्रणाली विकसित करने का प्रयास है, जिससे बर्फ की चपेट में आए सैनिकों का शीघ्र और सटीक पता लगाया जा सके।
- AAVDS एक चमकदार तरल का उपयोग करेगा जो एक कॉम्पैक्ट, सैनिक द्वारा पहना जाने वाला डिवाइस से छोड़ा जाएगा, जिससे बर्फ में उनकी स्थिति चिह्नित हो सकेगी।
- इससे बचाव का समय काफी कम होगा और जीवन रक्षा की संभावना बढ़ेगी।
- सूर्या कमांड के चीफ ऑफ स्टाफ, लेफ्टिनेंट जनरल ने इस पहल को भारतीय सेना की रक्षा तकनीक में आत्मनिर्भरता की प्रतिबद्धता का प्रतीक बताया, जिसका उद्देश्य कठिन परिस्थितियों में सैनिकों की प्रभावशीलता को बढ़ाना है।
- परियोजना के प्रमुख, IIT कानपुर की ओर से, ने इसे स्वदेशी अनुसंधान संस्थानों के लिए भारतीय सेना की परिचालन क्षमताओं को बेहतर बनाने में प्रत्यक्ष भूमिका निभाने का एक महत्वपूर्ण अवसर बताया।
- IIT कानपुर ने भविष्य की परिवर्तनकारी पहलों का नेतृत्व करने और राष्ट्रीय रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने की प्रतिबद्धता दोहराई।
- यह परियोजना सेंट्रल कमांड मुख्यालय के अंतर्गत कार्यरत एक ऑर्डनेंस मेंटेनेंस कंपनी द्वारा संचालित की जाएगी, जिसका नेतृत्व लेफ्टिनेंट कर्नल पियूष धारीवाल करेंगे।
- यह तकनीक नागरिक उपयोग के लिए भी संभावनाएं रखती है, जिससे पर्वतारोहियों और हिमस्खलन संभावित क्षेत्रों में साहसिक गतिविधियों में लगे लोगों की सुरक्षा में भी मदद मिल सकती है।
हिमस्खलन के बारे में:

- हिमस्खलन एक तेज़ गति से नीचे की ढलान पर बर्फ के बहाव की प्रक्रिया है, जो विभिन्न प्रकार की ढलानों पर उपयुक्त परिस्थितियों में उत्पन्न होता है।
- ये आमतौर पर उत्तर गोलार्द्ध में दिसंबर से अप्रैल के बीच चरम सर्दियों के महीनों में अधिक बार और खतरनाक होते हैं ।
हिमस्खलन के प्रकार:
- ढीली बर्फ का हिमस्खलन (Loose Snow Avalanches):एक बिंदु से शुरू होते हैं और तब होते हैं जब कमजोर रूप से जुड़ी बर्फ अलग हो जाती है।आमतौर पर 40° या अधिक ढलान पर होते हैं, एक उल्टे V-आकार में फैलते हैं।ये धीमे और कम खतरनाक होते हैं क्योंकि इनकी बर्फ की मात्रा कम होती है।
- स्लैब हिमस्खलन (Slab Avalanches):
- जब एक सघन बर्फ की परत (स्लैब) एक बहु-स्तरीय बर्फ परत से अलग होकर फिसलती है।
- यह 30° से अधिक ढलानों पर होता है।
- ये बड़े और तेज़ होते हैं, जिनकी गति 50–100 किमी/घंटा तक हो सकती है।
- आमतौर पर एक स्कीयर द्वारा उत्पन्न स्लैब हिमस्खलन लगभग 50 मी चौड़ा, 150–200 मी लंबा और 50 सेमी मोटा होता है।
- स्लैब हिमस्खलन (Slab Avalanches):
- ग्लाइडिंग हिमस्खलन (Gliding Avalanches):
- पूरी बर्फ की परत एक चौड़े फ्रैक्चर लाइन के साथ फिसलती है, आमतौर पर चिकनी सतहों जैसे चट्टान या समतल घास पर। यह 15° जैसी कम ढलानों पर भी हो सकता है।
- पाउडर हिमस्खलन (Powder Avalanches):
- अक्सर स्लैब हिमस्खलनों द्वारा शुरू होते हैं। इसमें हवा में फैली बर्फ होती है जो तेज गति से पाउडर क्लाउड बनाती है।
- इसकी गति 300 किमी/घंटा तक पहुंच सकती है और यह भारी विनाश कर सकता है।
- गीली बर्फ के हिमस्खलन (Wet-Snow Avalanches):
- मुख्य रूप से तापमान में वृद्धि या बारिश के कारण होते हैं, जिससे बर्फ की परतें कमजोर हो जाती हैं।
- ये प्राकृतिक रूप से होते हैं और ढीली व स्लैब दोनों प्रकार की बर्फ शामिल कर सकते हैं।