संदर्भ:

हाल ही में, भारतीय वैज्ञानिकों ने चावल की नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (Nitrogen Use Efficiency-NUE) के साथ-साथ इससे संबंधित लक्षणों और जीनों में प्राकृतिक विविधताओं की पहचान की है।

अध्ययन के बारे में:

  • प्लांट ग्रोथ रेगुलेशन (Plant Growth Regulation) नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि खीरा और सीआर (CR) धान 301 जैसी उच्च नाइट्रोजन उपयोग दक्षता वाली चावल की किस्में दीर्घकालिक फसलें हैं।
  • इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने चावल की विभिन्न किस्मों को 46 कार्यिकीय (साइकोलॉजिकल) और समलक्षणीय (फेनोटाइप) मानदंडों का अध्ययन किया। 

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष:

  • एक दशक तक चले इस शोध में ग्रीनहाउस परिस्थितियों में चावल की 34 विभिन्न किस्मों का मूल्यांकन करने वाले तीन अध्ययन किए गए है।
  • ग्रीनहाउस में उच्च नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (NUE) प्रदर्शित करने वाली किस्मों की बाद में कृषि संस्थान भागीदारों द्वारा क्षेत्र परीक्षणों में पुष्टि की गई, जिससे इसके नाइट्रोजन उपयोग दक्षता का आकलन करने वाली पद्धति की विश्वसनीयता और अधिक पुख़्ता हो गई।
  • इसके दौरान शोधकर्ताओं को चावल की विभिन्न किस्मों की नाइट्रोजन उपयोग दक्षता में प्राकृतिक भिन्नताएँ देखने को मिली, जिनमें ढाला हीरा (Dhala Heera) किस्म को उच्च नाइट्रोजन उपयोग दक्षता और कम विकास अवधि के कारण विशेष रूप से चिन्हित किया गया है। जिसके कारण यह किसानों के लिए लाभदायक है। 
  • वैज्ञानिकों को भारत में मौजूद एक हजार से अधिक चावल की किस्मों में से, बारह किस्मों के बीच नाइट्रोजन उपयोग दक्षता में पाँच गुना भिन्नता देखने को मिली।
  • इसके तहत 19 मानदंडों की पहचान की गई, जिनमें आठ नए मानदंड शामिल हैं, जिनकी अभी क्षेत्रीय परीक्षणों द्वारा पुष्टि होनी बाकी है।

नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (NUE):

  • यह एक ऐसा शब्द है जिसका प्रयोग बायोमास उत्पादन के लिए प्रयुक्त या स्थिर नाइट्रोजन का उपयोग करने में किसी पौधे की दक्षता का उल्लेख करने हेतु किया जाता है।
  • नाइट्रोजन उपयोग दक्षता को फसल की उपज और मृदा (जड़ों) या जीवाणु द्वारा अवशोषित की गई नाइट्रोजन की मात्रा के अनुपात के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • 50 प्रतिशत नाइट्रोजन उपयोग दक्षता का अर्थ विकास की प्रक्रिया के पूर्ण होने के बाद के अनुप्रयुक्त नाइट्रोजन के आधे हिस्से का फसल में संरक्षित होना है।

अध्ययन का महत्व:

  • इस शोध का महत्व कृषि दक्षता से कहीं अधिक है। यह कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव-विविधता फ्रेमवर्क के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के अनुरूप है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक पोषक तत्वों की बर्बादी को आधा करना है।
  • इस अध्ययन के आधार पर, शोधकर्ताओं ने भारत में पाई जाने वाली सभी चावल किस्मों की व्यापक स्तर पर शोध करने की वकालत करते हैं, ताकि विभिन्न कृषि-जलवायु स्थितियों के लिए उपयुक्त उच्च नाइट्रोजन उपयोग दक्षता वाली किस्मों की पहचान की जा सके, ताकि कृषि स्थिरता को और अधिक बढ़ाने में मदद मिल सके।

भारत में उच्च नाइट्रोजन उपयोग दक्षता वाले फसलों के फायदे:

  • भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। जिसके कारण भारत में नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (NUE) में सुधार करने से किसानों की उत्पादकता और लाभप्रदता के बढ़ने की संभावना है।
  • उच्च नाइट्रोजन उपयोग दक्षता वाले चावल की किस्में नाइट्रोजन उर्वरकों की आवश्यकता को काफी हद तक कम कर सकती हैं, जिससे पर्यावरणीय और वित्तीय लाभ दोनों होने के साथ-साथ भारत में कई आजीविकाओं के लिए महत्वपूर्ण उत्पादकता, लाभप्रदता और धारणीय कृषि पद्धतियों को बढ़ाया जा सकता है।

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