संदर्भ: 

राजस्थान उच्च न्यायालय ने तेजेंदर पाल सिंह बनाम राजस्थान राज्य (2024) में वैध असहमति को दबाने के लिए BNS की धारा 152 के संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंता जताई।

अन्य संबंधित जानकारी

  • न्यायालय के अनुसार, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए धारा 152 को सावधानी से लागू किया जाना चाहिए। 
  • BNS स्पष्ट रूप से “राजद्रोह” शब्द का उल्लेख  नहीं करता है, धारा 152 इसके  दुरुपयोग की आशंका पैदा करती है।
  • इस प्रावधान का उपयोग वैध असहमति को दबाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करना चाहिए।
  • यह BNS के अधिनियमित होने से पूर्व, सर्वोच्च न्यायालय के 2022 के उस निर्णय के बाद आया है जिसमें भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124 A (राजद्रोह) के तहत मुकदमों को तब तक निलंबित करने का आदेश दिया गया था जब तक कि सरकार कानून पर पुनर्विचार नहीं कर लेती।
  • उच्च न्यायालय एक सिख उपदेशक की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उसके खिलाफ बीएनएस की धारा 152 के तहत दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की गई थी, क्योंकि उसने कनाडा के खालिस्तान समर्थक सांसद अमृतपाल सिंह के साथ सोशल मीडिया पर सहानुभूति व्यक्त की थी। 

BNS की धारा 152 की प्रमुख आलोचनाएँ : 

अस्पष्ट शब्दावली :

  • धारा 152 उन कृत्यों को आपराधिक बनाती है जो “भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालते हैं” । यह धारा, खतरे में क्या-क्या शामिल किया जाना चाहिए इसको लेकर अस्पष्ट है ।

•  स्पष्टता की कमी के कारण प्राधिकारियों द्वारा व्यापक व्याख्या की जा सकती है, जिसके परिणामस्वरूप           राजनीतिक या ऐतिहासिक हस्तियों की आलोचना करने या विवादास्पद राय व्यक्त करने पर मुकदमा चलाया जा सकता है।

  • स्पष्ट मापदंडों के बिना, इस प्रावधान का उपयोग असहमति को दबाने के लिए किया जा सकता है।

दायित्व के लिए कम सीमा : 

  • धारा 152 में “जानबूझकर” शब्द दायित्व निर्धारण के मानक को कम करता है, विशेष रूप से सोशल मीडिया से जुड़े मामलों में।
  • दुर्भावनापूर्ण इरादे के बिना भी किसी पोस्ट को साझा करने पर मुकदमा चलाया जा सकता है, यदि यह माना जाता है कि इससे निषिद्ध गतिविधियों को बढ़ावा मिलने की संभावना है।
  • इस प्रावधान के लिए भाषण को वास्तविक परिणामों से जोड़ने वाले प्रथम दृष्टया साक्ष्य की आवश्यकता नहीं है , जिससे प्राधिकारियों को बिना किसी ठोस औचित्य के व्यक्तियों को स्वतंत्रता से वंचित करने की अनुमति मिल जाती है।
  • पिछले राजद्रोह कानून की तरह, धारा 152 भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।

दुरुपयोग की संभावना :

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों से ज्ञात होता है कि आईपीसी की धारा 124 A के तहत गिरफ्तारियों की संख्या बहुत अधिक है, जबकि दोषसिद्धि की दर बहुत कम है (2015 और 2020 के बीच 548 गिरफ्तारियों में 12 दोषसिद्धि)।
  • धारा 152, धारा 124A की तुलना में अधिक व्यापक और अस्पष्ट है , जिससे दुरुपयोग का खतरा बढ़ जाता है तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

राष्ट्रीय हित और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन हेतु न्यायिक दृष्टिकोण:

  • केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य (1962) में, सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 19(1)( A) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को स्वीकार करते हुए, राजद्रोह को वास्तविक हिंसा या सरकार के खिलाफ हिंसा भड़काने वाले मामलों तक सीमित कर दिया।
  • बलवंत सिंह एवं अन्य बनाम पंजाब राज्य (1995) मामले में न्यायालय ने राजद्रोह को अपराध मानने के लिए भाषण और उसके परिणामों के बीच प्रत्यक्ष कारण-कार्य संबंध की आवश्यकता पर बल दिया था।
  • जावेद अहमद हज़म बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य (2024) में , न्यायालय ने कहा कि शब्दों के प्रभाव का आकलन उचित, मजबूत दिमाग वाले व्यक्तियों द्वारा किया जाना चाहिए, न कि कमजोर या संवेदनशील दिमाग वाले लोगों द्वारा।

BNS की धारा 152 और IPC की धारा 124 A के बीच अंतर

शब्दावली और दायरा:

  • BNS की धारा 152 भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरा पहुंचाने वाले कृत्यों को कवर करती है, जबकि धारा 124 A आईपीसी केवल सरकार के खिलाफ असंतोष को लक्षित करती है।

दंड:

  • धारा 124 A (IPC): इसमें आजीवन कारावास या न्यूनतम तीन वर्ष की जेल तथा जुर्माना का प्रावधान है।
  • धारा 152 (BNS): इसमें अनिवार्य जुर्माने के साथ आजीवन कारावास या अधिकतम सात वर्ष तक की कठोर सजा का प्रावधान है।

आशय आवश्यकता:

  • धारा 124 A (IPC): इसमें सरकार के विरुद्ध असंतोष भड़काने के इरादे का साक्ष्य देना आवश्यक है।
  • धारा 152 (BNS): यदि कोई व्यक्ति “जानबूझकर” ऐसी जानकारी साझा करता है जो विद्रोह या अलगाववाद को भड़का सकती है, तो उसके खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देकर सीमा को कम कर दिया गया है तथा इसके लिए दुर्भावनापूर्ण इरादे को साबित करने की आवश्यकता नहीं होती।

राष्ट्रीय हितों पर बल:

  • जहाँ IPC की धारा 124 A सरकार को असंतोष से बचाने पर केंद्रित थी, वहीं बीएनएस की धारा 152 राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा को प्राथमिकता देती है। यह स्वीकारता है कि संप्रभुता के लिए खतरे केवल सरकार की आलोचना तक सीमित नहीं हैं, बल्कि राष्ट्र की एकता और अखंडता के खिलाफ व्यापक खतरों तक फैले हुए हैं।

असहमति का संरक्षण:

  • दोनों धाराएं वैध असहमति की रक्षा करती हैं, लेकिन BNS की धारा 152  अधिक संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरों को संबोधित करते हुए व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करती है।
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