संदर्भ 

हाल ही में, भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIA), बेंगलुरु के खगोलविदों ने कोडईकनाल सौर वेधशाला के एक शताब्दी के डेटा का उपयोग करके सूर्य के वर्णमंडल (क्रोमोस्फीयर) के विभेदी या अन्तरात्मक घूर्णन का सफलतापूर्वक मानचित्रण किया है।

अन्य संबंधित जानकारी    

  • इस अध्ययन में यह बात का उल्लेख किया गया है कि सूर्य का विषुवतीय क्षेत्र उसके ध्रुवीय क्षेत्रों की तुलना में काफी तेजी से घूमता है। क्योंकि, सूर्य के ध्रुवों पर एक चक्कर लगाने में 35 दिनों  का समय लगता है, जबकि विषुवत क्षेत्र को एक पूर्ण चक्कर लगाने में केवल 25 दिन का समय लगता हैं।
  • इस तरह के निष्कर्ष सौर गतिशीलता और पृथ्वी पर उनके प्रभाव को समझने की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
  • चित्र: यह आरेख सूर्य के विभेदी घूर्णन को दर्शाता है, जिसमें विभिन्न अक्षांशों पर सतही क्षेत्र अलग-अलग गति से घूमते नजर आ रहे हैं।

अनुसंधान के बारे में 

विभेदी घूर्णन (Differential Rotation) का मानचित्रण  

  • इस अनुसंधान में कोडईकनाल सौर वेधशाला में 100 वर्षों से अधिक समय से संगृहीत दैनिक रिकार्डों का उपयोग किया गया। कोडईकनाल सौर वेधशाला, इतने व्यापक सौर डेटा को संग्रहीत करने वाली केवल दो वैश्विक वेधशालाओं में से एक है।
  • यहाँ पर संगृहीत व्यापक डेटा ने शोधकर्ताओं को प्लेज और नेटवर्क सेलों जैसी सौर विशेषताओं का विश्लेषण करने में मदद की, जिससे सूर्य के घूर्णन गतिविधि के बारे में जानकारी मिली।

भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान 

  • इसे मद्रास (अब चेन्नई) में वर्ष 1786 में स्थापित किया गया था। हालाँकि यह वर्ष 1971 में एक स्वायत्त संस्थान के रूप में स्थापित था। इसका मुख्यालय बेंगलुरु में है।
  • इसकी मुख्य अवलोकन परिसर (फैसिलिटी) कोडईकनाल, कावलूर, गौरीबिदनूर और हनले में स्थित हैं।

क्रोमोस्फेरिक (वर्णमंडल) विशेषताओं का महत्व 

  • इस अध्ययन में प्लेज और नेटवर्क सेल महत्वपूर्ण घटक हैं। ये विशेषताएँ क्षणिक और सीमित अक्षांश पर घटित होने वाले सनस्पॉट के विपरीत सौर सतह पर लगातार मौजूद रहती हैं, जिससे वैज्ञानिकों को ध्रुवों पर भी घूर्णन दर को मापने में मदद मिलती है।
  • प्लेज कमज़ोर चुंबकीय क्षेत्र वाले चमकीले क्षेत्र होते हैं। वे क्रोमोस्फीयर में देखने को मिलते हैं और सनस्पॉट से काफ़ी बड़े होते हैं। इनका आकार सनस्पॉट से 3 से 10 गुना तक बड़ा होता है।
  • नेटवर्क सेल कमजोर चुंबकीय क्षेत्र वाली संवहनीय संरचनाएँ हैं। इनका व्यास लगभग 30,000 किलोमीटर है। वे व्यक्तिगत सनस्पॉट से थोड़े बड़े होते हैं, लेकिन सनस्पॉट समूहों से छोटे होते हैं।
  • उनके विश्लेषण से विभेदी घूर्णन का स्पष्ट रूप सामने आया, जिसमें पता चल कि विषुवत रेखा पर घूर्णन दर लगभग 13.98 डिग्री प्रतिदिन और ध्रुवों के पास 10.5 डिग्री प्रतिदिन थी।

पृथ्वी बनाम सूर्य का घूर्णन

  • पृथ्वी का घूर्णन: पृथ्वी एक कठोर पिंड के रूप में धूर्णन करती है, तथा प्रत्येक 24 घंटे में सभी स्थानों पर समान रूप से एक पूर्ण घूर्णन पूरा करती है।
  • सूर्य का विभेदी घूर्णन: पृथ्वी के विपरीत, सूर्य अक्षांश के आधार पर अलग-अलग गति से घूमता है। सूर्य प्लाज्मा की एक विशाल गेंद है। जिसके कारण यहाँ विभेदी घूर्णन देख्नने को मिलता है अर्थात् यह विषुवतीय क्षेत्र में तेजी से घूमता है और ध्रुवों पर धीमी गति से घूमता है।

विभेदी घूर्णन का महत्व    

  • सूर्य का विभेदी घूर्णन इसकी आंतरिक गतिशीलता को समझने में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह 11-वर्षीय सौर चक्र के लिए जिम्मेदार सौर डायनेमो को संचालित करता है।
  • विभेदी घूर्णन और सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र के बीच की यह अंतःक्रिया तीव्र सौर गतिविधियों, जैसे कि सौर ज्वालाएँ और चुंबकीय तूफान, के लिए जिम्मेदार है, जो पृथ्वी के अंतरिक्ष पर्यावरण को प्रभावित कर सकते हैं।

सूर्य पर मौजूद वायुमंडल की परतें

सूर्य का वायुमंडल कई परतों से बना है, जिसमें मुख्य रूप से फोटोस्फीयर, क्रोमोस्फीयर और कोरोना शामिल है।

1. फोटोस्फीयर

  • विवरण: यह प्रकाश उत्सर्जित करने वाली सूर्य की दृश्यमान सतह है।
  • आकार: लगभग 500 किलोमीटर (310 मील)।  
  • तापमान: लगभग 5,500°C (9,932°F)

2. क्रोमोस्फीयर

  • विवरण: यह फोटोस्फीयर की ऊपरी परत है, जो सूर्य ग्रहण के दौरान दिखाई देती है।
  • आकार: लगभग 2,000 किलोमीटर (1,240 मील)।
  • तापमान: इसका निचला हिस्सा 4,500°C (8,132°F) तथा ऊपरी हिस्सा लगभग 20,000°C (36,032°F) तक गर्म होता है।

3.कोरोना

  • विवरण: यह सूर्य के वायुमंडल की सबसे ऊपरी परत है, जो पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान दिखाई देती है।
  • आकार: यह अंतरिक्ष में लाखों किलोमीटर तक फैली हुई है।
  • तापमान: यह अत्यधिक गर्म होती है। इसका तापमान 1 से 3 मिलियन डिग्री सेल्सियस (1.8 से 5.4 मिलियन डिग्री फ़ारेनहाइट) तक होता है।

विशेषता:

  • सौर हवा(पवन): यह ऊर्जा की आवेशित कणों (ज़्यादातर इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन) की धाराएँ है, जो सूर्य से बाहर की ओर चलती हैं।
  • कोरोनल मास इजेक्शन (CMEs): यह सौर हवाएँ और चुंबकीय क्षेत्रों का व्यापक पैमाने पर विस्फोट है, जो सौर कोरोना से ऊपर उठते हैं या अंतरिक्ष में गमन करते हैं।    

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