प्रसंग:

हाल ही में जर्मनी के बॉन में मध्य-वार्षिक जलवायु चर्चाएं सीमित प्रगति के साथ संपन्न हुईं, जिससे इस वर्ष के अंत में अज़रबैजान के बाकू में आयोजित होने वाले COP29 के लिए संभावित रूप से चिंताएं बढ़ गई हैं।

अन्य संबंधित जानकारी 

  • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) सहायक निकायों (SB60) का 60वां सत्र, जिसे बॉन जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के रूप में भी जाना जाता है , 3-13 जून, 2024 को बॉन (जर्मनी) में आयोजित हुआ।
  • ये सहायक निकाय बैठकें प्रमुख निर्णय लेने वाले सम्मेलनों, जैसे दुबई में COP28 (2023) और अज़रबैजान में आगामी COP29  के बीच की यात्रा में एक महत्वपूर्ण मध्य बिंदु के रूप में कार्य करती हैं।
  • SB60 का उद्देश्य जलवायु कार्रवाई से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों का समाधान करके COP29 के लिए मार्ग प्रशस्त करना था। SB60 मे चर्चा पेरिस समझौते (अनुच्छेद 6.2 और 6.4) के तहत कार्बन बाजारों के लिए दिशा-निर्देश स्थापित करने पर केंद्रित थी , जो कि COP28 में अनसुलझे रह गए थे।
  • एक अन्य प्रमुख मुद्दा विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्त पर नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (New Collective Quantified Goal – NCQG) था , जैसा कि पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9.1 और 9.3 द्वारा अनिवार्य किया गया है।
    विकासशील देशों ने अनुदान-आधारित और रियायती वित्तपोषण बढ़ाने की मांग की, जबकि विकसित देशों ने योगदानकर्ता आधार में कुछ विकासशील देशों को शामिल करने का प्रस्ताव रखा, यह तर्क देते हुए कि यह “नई आर्थिक वास्तविकताओं” को दर्शाता है।

COP29 की चुनौतियाँ

  • भू-राजनीतिक तनाव: यूक्रेन में चल रहे युद्ध ने बॉन चर्चाओं पर प्रभाव डाला। रूस जैसे प्रमुख उत्सर्जक देशों के संघर्ष में व्यस्त होने के कारण, जलवायु कार्रवाई को संबोधित करने में तत्परता की कमी थी।
  • अनुकूलन की अपेक्षा शमन पर अधिक ध्यान: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (शमन) को कम करने पर चर्चाओं में महत्वपूर्ण ध्यान दिया गया, वहीं विकासशील देशों के लिए महत्वपूर्ण मुद्दे, जैसे जलवायु अनुकूलन और वित्तपोषण, नजरअंदाज कर दिए गए।
  • प्रमुख मुद्दों पर सीमित प्रगति: ग्लोबल स्टॉकटेक (जलवायु लक्ष्यों की दिशा में प्रगति का आकलन) और हानि एवं क्षति के लिए वारसॉ अंतर्राष्ट्रीय तंत्र (जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को संबोधित करना) जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर ठोस चर्चाओं में न्यूनतम प्रगति देखी गई।
  • जलवायु वित्त प्रतिज्ञाओं का क्रियान्वयन: विकसित देश विकासशील देशों में जलवायु कार्रवाई का समर्थन करने के लिए 2020 तक प्रतिवर्ष 100 बिलियन डॉलर जुटाने के अपने वादे को पूरा करने में पीछे रह गए हैं।

भारत का रुख और आगे की राह 

  • भारत ने लगातार एक संतुलित दृष्टिकोण का आह्वान किया है, जो शमन और अनुकूलन दोनों आवश्यकताओं को पूरा करता हो।
  • महत्वाकांक्षी जलवायु कार्य योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए विकासशील देशों के लिए विकसित देशों से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और वित्तीय सहायता पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है।
  • सरकारों को उनकी जलवायु प्रतिबद्धताओं के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए नागरिक समाज की सहभागिता और जन दबाव आवश्यक है।

कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP)

  • COP जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है। यह 197 देशों और क्षेत्रों (जिन्हें पक्षकार कहा जाता है ) के प्रतिनिधियों को एक साथ लाता है जिन्होंने कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए हैं।

COP के प्रमुख कार्यों में शामिल हैं:

  • समीक्षा और मूल्यांकन : COP कन्वेंशन के कार्यान्वयन और इसके द्वारा अपनाए गए किसी भी अन्य कानूनी साधन की समीक्षा करता है। यह पक्षों द्वारा उठाए गए उपायों के प्रभावों और कन्वेंशन के अंतिम उद्देश्य की दिशा में प्रगति का मूल्यांकन करता है।
  • वार्षिक बैठकें : COP की वार्षिक बैठक जलवायु संबंधी मामलों पर चर्चा करने के लिए होती है, जब तक कि पक्षकार अन्यथा निर्णय न लें। पहली COP बैठक मार्च 1995 में बर्लिन, जर्मनी में आयोजित की गई थी।

आगामी COP 29

  • अज़रबैजान 11-22 नवंबर, 2024 तक COP 29 की मेजबानी करेगा ।
  • इसमे दुबई में आयोजित COP 28 में निर्धारित एजेंडे का विस्तार किया जाएगा।

मुख्य एजेंडा बिन्दु:

  • 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने और जीवाश्म ईंधन के उपयोग का शमन करने के लिए COP 28 के एजेंडे पर काम करना।
  • वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5°C तक सीमित रखने पर आम सहमति प्राप्त करना।
  • विकसित देशों की ओर से अधूरे 100 बिलियन डॉलर के वार्षिक जलवायु वित्त प्रतिबद्धता को संबोधित करना। इसमें 100 बिलियन डॉलर से अधिक का नया लक्ष्य निर्धारित करना और यह निर्धारित करना शामिल है कि यह धनराशि अनुदान होगी या ऋण।

पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6.2 और 6.4 

दोनों ही जलवायु परिवर्तन शमन प्रयासों पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से संबंधित हैं, लेकिन ये अलग-अलग तरीकों से काम करते हैं:

अनुच्छेद 6.2:

  • देशों को द्विपक्षीय समझौतों के माध्यम से एक-दूसरे के साथ सीधे कार्बन क्रेडिट का व्यापार करने में सक्षम बनाताहै।
  • ये क्रेडिट, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय रूप से हस्तांतरित शमन परिणाम (Internationally Transferred Mitigation Outcomes-ITMO) कहा जाता है, एक देश में प्राप्त सत्यापित उत्सर्जन में कमी या निष्कासन को दर्शाते हैं, जिसका उपयोग दूसरे देश अपने स्वयं के जलवायु लक्ष्यों (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान – NDC) के लिए कर सकते हैं।
  • ITMO को कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य (co2e) या नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन (किलोवाट घंटा) जैसे अन्य मेट्रिक्स का उपयोग करके मापा जा सकता है।
  • यह दृष्टिकोण अधिशेष उत्सर्जन में कमी वाले देशों को उन्हें उन देशों में विक्रय करने मे सक्षम बनाता है जो अपने स्वयं के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर सकते हैं।

अनुच्छेद 6.4:

  • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) की देखरेख में एक नया वैश्विक कार्बन बाजार स्थापित करता है।
  • यह बाजार परियोजना डेवलपर्स को सख्त पर्यावरणीय और सामाजिक सुरक्षा उपायों को पूरा करने वाली उत्सर्जन कटौती परियोजनाओं को पंजीकृत करने की अनुमति देता है।
  • यदि स्वीकृत हो जाती है, तो ये परियोजनाएं व्यापार योग्य कार्बन क्रेडिट उत्पन्न कर सकती हैं जिन्हें देश और संस्थाएँ खरीद सकती हैं और अपने जलवायु लक्ष्यों के लिए उपयोग कर सकती हैं।
  • इसका लक्ष्य उच्च गुणवत्ता वाले कार्बन क्रेडिट सुनिश्चित करना और पिछले कार्बन बाजार तंत्र में देखी गई समस्याओं से बचना है।

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