संबंधित पाठ्यक्रम:
सामान्य अध्ययन-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन।
संदर्भ: अप्रैल 2025 तक 17 गीगावाट से अधिक की स्थापित क्षमता प्राप्त कर लेने के साथ, रूफटॉप सोलर भारत की नवीकरणीय ऊर्जा पहल का एक अहम घटक बनता जा रहा है, खासकर उन शहरी क्षेत्रों में जहाँ ऊर्जा की मांग अधिक है और उपलब्ध स्थान सीमित है।
अन्य संबंधित जानकारी
- विस्तार क्षमता छायारहित रूफ़टॉप स्थानों (छतों) की सीमित उपलब्धता के कारण बाधित होती है।
- घनी आबादी वाले शहरों में सौर ऊर्जा को अपनाने को बढ़ावा देने के लिए पारंपरिक रूफटॉप सोलर प्रणालियों से आगे बढ़कर अब बिल्डिंग-इंटीग्रेटेडफोटोवोल्टिक (BIPV) तकनीक की ओर देखना आवश्यक है।
बिल्डिंग-इंटीग्रेटेड फोटोवोल्टिक्स (BIPV)
- BIPV तकनीक भवनों की संरचनात्मक इकाइयों में सौर घटकों को एकीकृत कर ऊर्जा उत्पादन की सुविधा प्रदान करती है।
- उद्देश्य:
- बिजली उत्पन्न करने के साथ-साथ भवन की संरचनात्मक इकाई के रूप में कार्य करने वाली यह प्रणाली, पारंपरिक रूफटॉप सोलर (RTS) प्रणालियों से भिन्न होती है, जिन्हें छतों पर अलग से स्थापित किया जाता है। इसके विपरीत, BIPV प्रणालियाँ भवन की वास्तुकला में सीधे एकीकृत होती हैं—जैसे अग्रभाग (भवन का बाहरी सामने वाला हिस्सा), छतें, खिड़कियाँ और रेलिंग आदि।
- ये पारंपरिक निर्माण सामग्री जैसे काँच, टाइलें और क्लैडिंग को सौर विकल्पों से प्रतिस्थापित कर देती हैं।
BIPV का निगमन
- अग्रभागों (फैसाड) में अर्ध-पारदर्शी BIPV पैनल लगाए जा सकते हैं, जो पर्दे की दीवार या क्लैडिंग का कार्य करते हुए बिजली उत्पन्न करते हैं और साथ ही गर्मी के प्रवेश को कम करते हैं। इसी प्रकार, पारंपरिक छत की सामग्रियों को BIPV पैनलों से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिससे भवन की संरचना में बदलाव किए बिना ऊर्जा उत्पादन संभव हो जाता है।
- पारदर्शी या अर्ध-पारदर्शी BIPV पैनलों को खिड़कियों और रोशनदानों में एकीकृत किया जा सकता है ताकि स्वच्छ ऊर्जा उत्पन्न करने के साथ-साथ प्राकृतिक प्रकाश भी अंदर आ सके। सौर घटकों को अतिरिक्त स्थान के बिना मौजूदा संरचनाओं का उपयोग करके बालकनियों, छतरियों, आलिंदों और छाया उपकरणों में भी बनाया जा सकता है।
- अपने विवेकपूर्ण डिजाइन के साथ, BIPV आवासीय, वाणिज्यिक और सार्वजनिक स्थानों जैसे हवाई अड्डों, स्टेशनों और स्कूलों के लिए उपयुक्त हैं। उन्हें सौंदर्यात्मक आवश्यकताओं के अनुरूप पारदर्शिता, रंग, आकार और आकृति में अनुकूलित किया जा सकता है।
भारत में BIPV की आवश्यकता
- स्थान की कमी और टिकाऊ शहरों के निर्माण की दिशा में प्रयासों के कारण BIPV का महत्व बढ़ गया है। आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के अनुसार, भारत की शहरी जनसंख्या 2031 तक 600 मिलियन और 2051 तक 850 मिलियन तक पहुँचने का अनुमान है।
- भारत के घनी आबादी वाले शहरों में ऊँची इमारतों की छतों पर अक्सर RTS सिस्टम लगाने के लिए पर्याप्त जगह नहीं होती। चूंकि BIPV तकनीक को इमारत के विभिन्न हिस्सों में समायोजित किया जा सकता है, यह उपलब्ध सतहों का अधिक प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करता है।
- पारंपरिक छत सामग्री को BIPV पैनलों से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिससे भवन की संरचना में परिवर्तन किए बिना बिजली उत्पादन संभव हो सकेगा।
- BIPV का प्रयोग स्वतंत्र घरों और उन घरों की बालकनियों में भी किया जा सकता है जहाँ छत तक पहुंच संभव नहीं है। जर्मनी में, लगभग 1.5 मिलियन बालकनियों में सौर पैनल लगे हैं, जिससे घरों को बिजली के बिल में 30% तक की कटौती करने में मदद मिलती है।
- खिड़कियों और रोशनदानों में पारदर्शी या अर्ध-पारदर्शी सौर पैनल का उपयोग किया जा सकता है जो स्वच्छ ऊर्जा उत्पन्न करते हुए प्राकृतिक प्रकाश को अंदर आने देते हैं। सौर पैनलों को बालकनी, छतरियों, आलिंदों और छायांकन उपकरणों में भी जोड़ा जा सकता है, अतिरिक्त स्थान की आवश्यकता के बिना बिजली उत्पादन के लिए मौजूदा संरचनाओं का उपयोग किया जा सकता है।
भारत में BIPV की स्थिति
- भारत में अब कई महत्वपूर्ण BIPV इंस्टॉलेशन्स स्थापित हो चुके हैं। नवी मुंबई में CtrlS डेटासेंटर में चार अग्रभागों में 863-kWp प्रणाली है।
- कोलकाता में 2024 में खोले गए नवीकरणीय ऊर्जा संग्रहालय में 2,000 से अधिक पैनलों वाला सौर ऊर्जा संचालित डोम स्थापित है। बड़े BIPV सिस्टम ओडिशा के जिंदल स्टील और विजयवाड़ा तथा साहिबाबाद के रेलवे स्टेशनों पर भी मौजूद हैं।
भारत में BIPV के अनुकूलन में चुनौतियाँ
- उच्च प्रारंभिक लागत
- नीतिगत अंतराल
- अपर्याप्त तकनीकी क्षमता
- आयात पर निर्भरता
आगे की राह
- सियोल की समर्पित योजना, जो BIPV स्थापना लागत का 80% तक कवर करती है, यह दर्शाती है कि शहरी निर्माण में इसे मुख्यधारा में कैसे लाया जाए। भारत, विशेष रूप से घनी शहरी क्षेत्रों में, उच्च BIPV प्रोत्साहन देकर अपनी सौर नीतियों को बढ़ावा दे सकता है।
- 2024 में, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने BIPV को पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना के अंतर्गत शामिल किया, जिसका उद्देश्य एक करोड़ घरों में रूफटॉप सोलर सिस्टम (RTS) स्थापित करना है। जिन घरों की छत सीमित है, वे BIPV विकल्प अपना सकते हैं और 3-किलोवाट सिस्टम के लिए ₹78,000 तक की सब्सिडी प्राप्त कर सकते हैं—जो RTS समर्थन के समान है। वाणिज्यिक और औद्योगिक क्षेत्रों के लिए भी इसी तरह के प्रोत्साहन आवश्यक हैं।
- यूरोप के भवन नियम स्पष्ट मानकों के माध्यम से सौर ऊर्जा के उपयोग और BIPV को बढ़ावा देते हैं। भारत भी अपने राष्ट्रीय भवन संहिता, ऊर्जा संरक्षण संहिता और इको निवास संहिता में BIPV को शामिल करके ऐसा ही कर सकता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा सेवा कंपनी मॉडल और दीर्घकालिक विद्युत क्रय समझौते जैसी वित्तीय व्यवस्थाएं परियोजना की विश्वसनीयता बढ़ाने और बड़े पैमाने पर BIPV परिनियोजन को सक्षम करने में मदद कर सकती हैं।
- सार्वजनिक अवसंरचना में प्रारंभिक BIPV परियोजनाएं इसके प्रति जागरूकता और स्वीकार्यता को बढ़ावा दे सकती हैं। यदि स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहनों, अनुसंधान एवं विकास, और आर्किटेक्ट व डेवलपर्स के लिए जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से समर्थन दिया जाए, तो संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूती मिल सकती है।