संदर्भ:
भारत में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जी की 131 वीं पुण्यतिथि मनाई गई।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय
उनका जन्म 27 जून 1838 को नैहाटी , पश्चिम बंगाल में एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
वह एक सिविल सेवक और उपन्यासकार थे, जिन्होंने आनंदमठ और वंदे मातरम जैसी रचनाओं के माध्यम से भारत के स्वतंत्रता संग्राम को बढ़ावा देते हुए आधुनिक बंगाली साहित्य का बीड़ा उठाया ।
वह 1857 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रथम बैच से बी.ए. पास करने वाले दो छात्रों में से एक थे।
बाद में, वह निचली कार्यकारी नौकरी (अधीनस्थ कार्यकारी सेवा) में शामिल हो गए और डिप्टी मजिस्ट्रेट और डिप्टी कलेक्टर के पद पर आसीन हुए।
वह प्राचीन सांस्कृतिक विरासत में निहित एक मजबूत भारतीय पहचान में विश्वास करते थे तथा भारतीय ज्ञान और आत्मनिर्भरता के पुनरुत्थान की वकालत करते थे।

चट्टोपाध्याय का राष्ट्रवाद “भारत माता” की अवधारणा से गहराई से जुड़ा हुआ था।
वह संस्कृत और बंगाली के मिश्रण में “वंदे मातरम” के रचयिता थे, जिसे मूल रूप से उनके उपन्यास “आनंदमठ” में शामिल किया गया था, जिसे बाद में भारत के राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया गया।
- “वंदे मातरम ” को औपचारिक रूप से 24 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान सभा द्वारा भारत के राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता दी गई थी।
8 अप्रैल 1894 को मधुमेह से संबंधित जटिलताओं के कारण उनका निधन हो गया।
साहित्यिक और राष्ट्रवादी योगदान
- वह बंगाली में साहिया सम्राट (साहित्य के सम्राट) के रूप में प्रसिद्ध थे ।
- उन्होंने राजमोहन्स वाइफ (1864) – भारत का पहला अंग्रेजी उपन्यास, और दुर्गेशनंदिनी (1865) जैसी क्लासिक रचना लिखी – जिसमें प्रेम को सामाजिक सुधार के साथ मिश्रित किया गया था।
- उन्होने कपालकुंडला (1866) और विषबृक्ष (1873) जैसे उपन्यासों के माध्यम से महिला अधिकारों और जातिगत उत्पीड़न के सामाजिक मानदंडों को चुनौती दी ।
- आनन्दमठ (1882) की कहानी 18वीं सदी के उत्तरार्ध के संन्यासी विद्रोह की पृष्ठभूमि पर आधारित है ।
- उन्होंने 1872 में बंगाली साहित्यिक पत्रिका बंगदर्शन की स्थापना की । बाद में इसे 1901 में रवींद्रनाथ टैगोर के संपादन में पुनर्जीवित किया गया।
- उनकी बाद की रचनाएँ, “देवी चौधरानी ” (1884) और “सीताराम” (1886), एक साहित्यिक राष्ट्रवादी के रूप में उनकी भूमिका को पुष्ट करती हैं।
- उन्होने टैगोर और बाद के स्वतंत्रता सेनानियों को प्रभावित किया, जिससे एक सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में उनकी स्थिति मजबूत हुई।