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सामान्य अध्ययन-2: भारत के हितों पर विकसित और विकासशील देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, प्रवासी भारतीय।
संदर्भ: हाल ही में, फ्रांस ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीनी राष्ट्र को मान्यता दी, जिसके बाद ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने भी इसी प्रकार के कदम उठाए।
अन्य संबंधित जानकारी
• पुर्तगाल, अंडोरा, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, माल्टा और मोनाको ने भी फिलिस्तीन राष्ट्र को मान्यता दी।
फ़िलिस्तीनी राज्य
• राष्ट्र के अधिकारों और कर्तव्यों पर 1933 का मोंटेवीडियो कन्वेंशन एक संधि है जो अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत किसी इकाई को “राष्ट्र” मानने के मानक मानदंडों को रेखांकित करती है। इसकी चार प्रमुख शर्ते हैं:
- परिभाषित क्षेत्र
- स्थायी जनसंख्या
- कार्यशील सरकार
- अन्य राज्यों के साथ संबंध बनाने की क्षमता
मान्यता देने के पीछे कारक
• गाजा में मानवीय संकट: 20 लाख से ज़्यादा गाजा निवासी भीषण खाद्य संकट का सामना कर रहे हैं, और कई लोगों की भुखमरी से मौत भी हो चुकी हैं। इसका कारण इज़राइल द्वारा अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को सहायता का प्रबंधन और वितरण करने की अनुमति न देना है।
• इजरायल पर दबाव बनाने के माध्यम: फिलिस्तीन को मान्यता देने की संभावना का उपयोग गाजा में इजरायल की कार्रवाइयों जिसमें युद्ध विराम सुनिश्चित करना और मानवीय सहायता पर की गयी नाकेबंदी को समाप्त करना शामिल है, को प्रभावित करने के लिए एक राजनीतिक उपकरण के रूप में किया जा रहा है।
• वैश्विक मत: फिलिस्तीन को मान्यता देना गाजा में उभरे मानवीय संकट पर जनता के आक्रोश से प्रेरित है, जिसमें भूख से मरते बच्चों की तस्वीरों के कारण इजराइल की वैश्विक स्तर पर निंदा हो रही है।
- संयुक्त राष्ट्र समर्थित निकाय, एकीकृत खाद्य सुरक्षा चरण वर्गीकरण (IPC) ने आधिकारिक तौर पर गाजा शहर में अकाल की घोषणा कर दी है।
• फिलिस्तीनी राज्य के लिए बढ़ता समर्थन: इन राष्ट्रों द्वारा ये घोषणाएं इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के लिए दो-राज्य समाधान के बारे में फ्रांस और सऊदी अरब द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित एक उच्च-स्तरीय संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के बाद की गई हैं।
मान्यता का महत्त्व
• ब्रिटिश भूमिका: ब्रिटेन की घोषणा विशेष रूप से ऐतिहासिक है क्योंकि इसने 1917 की बाल्फोर घोषणा के माध्यम से इजरायल की स्थापना में आधारभूत भूमिका निभाई थी और पहली बार फिलिस्तीन में एक यहूदी राष्ट्रीय घर का समर्थन किया था।
• फ़िलिस्तीनी राज्य का दर्जा: इस मान्यता से फ़िलिस्तीन को अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अधिकारों वाले एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में राजनयिक स्वीकृति मिलेगी। यह उसे गैर-सदस्य स्थायी पर्यवेक्षक राज्य की वर्तमान स्थिति से पूर्ण संयुक्त राष्ट्र सदस्यता के और करीब ले जाएगा।
• राजनीतिक संकेत: हालांकि फिलिस्तीनी राष्ट्र को मान्यता देने का निर्णय प्रतीकात्मक है, लेकिन यह अन्य देशों के लिए भी ऐसा करने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है और इससे इजरायल पर युद्ध समाप्त करने तथा गाजा में मानवीय संकट का समाधान करने के लिए अतिरिक्त कूटनीतिक दबाव पड़ेगा।
• वैश्विक बदलाव: यह मान्यता फिलिस्तीनी मुद्दे के प्रति वैश्विक दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण बदलाव को चिह्नित करेगी, विशेष रूप से दो-राज्य समाधान के निष्क्रिय समर्थन से फिलिस्तीनी संप्रभुता के लिए सक्रिय समर्थन की ओर झुकाव की प्रवृत्ति।
• अमेरिकी प्रभाव में कमी: यदि फ्रांस और ब्रिटेन अपनी हालिया प्रतिज्ञाओं पर अमल करते हैं, तो अमेरिका एकमात्र ऐसा P5 सदस्य बन जाएगा जो इस मान्यता का विरोध करेगा, तथा कूटनीतिक दृष्टि से स्वयं को अलग-थलग कर लेगा।
गाजा युद्ध और इज़राइली प्रतिक्रिया पर प्रभाव
• तात्कालिक युद्ध की गतिशीलता: इस मान्यता से इज़राइल पर कूटनीतिक दबाव पड़ेगा, परन्तु उसके सैन्य अभियानों में तत्काल कमी नहीं आएगी। हथियारों की बिक्री, रसद सहायता, सैन्य रुख अल्पावधि में लगभग अपरिवर्तित बने रहेंगे। इज़राइल के 90% से अधिक रक्षा आयात अमेरिका और जर्मनी से होते हैं।
• इज़राइली प्रतिक्रिया: इज़राइल इस मान्यता को अनुचित मानता है और कुछ मामलों में इसे आतंकवाद को बढ़ावा देने के समान मानता है। इज़राइली प्रमुख ने दोहराया है कि मौजूदा दबावों के तहत फ़िलिस्तीनी राज्य कभी स्थापित नहीं होगा।
• यूरोपीय/अंतर्राष्ट्रीय समर्थन: कुछ यूरोपीय देश इज़राइल को हथियारों, दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं या स्पेयर पार्ट्स के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहे हैं या उन्हें लागू कर रहे हैं। लेकिन अमेरिका जैसे प्रमुख देश इज़राइल को मज़बूत सैन्य समर्थन देना जारी रखे हुए हैं। जर्मनी इज़राइल को सैन्य सामग्री का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता बना हुआ है।