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सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियां; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास; अंतरिक्ष के क्षेत्र में जागरूकता।
संदर्भ:
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 2027 में अपने पहले प्रक्षेपण यान Mk III (LVM3) को प्रक्षेपित करने का लक्ष्य रखा है, जो अर्ध-क्रायोजेनिक प्रणोदन चरण से लैस होगा।
अन्य संबंधित जानकारी
- LVM3 अपने कोर स्टेज को रिफाइंड केरोसिन और लिक्विड ऑक्सीजन पर चलने वाले स्टेज से बदलेगा। ऐसा इसरो पहली बार करेगा।
- इस बदलाव से उच्च कक्षाओं के लिए इसका पेलोड 4,200 किलोग्राम से बढ़कर 5,200 किलोग्राम हो जाएगा और लागत में लगभग 25% की कमी आएगी।
- इस इंजन के पीछे लगा नया SE2000 इंजन 200 टन का थ्रस्ट उत्पन्न करता है और भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं की दिशा में एक बड़ा कदम है।
प्रक्षेपण यान Mk III (LVM3)
प्रक्षेपण यान Mk III को पहले जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) मार्क-III के नाम से जाना जाता था।
LVM3 को तीन-चरणीय यान के रूप में अभिविन्यास (Configure) किया गया है:
- सॉलिड बूस्टर: S200 सॉलिड मोटर दुनिया के सबसे बड़े ठोस बूस्टर में से एक है, जिसमें 204 टन ठोस प्रणोदक है।
- लिक्विड मोटर: लिक्विड L110 चरण 115 टन द्रव प्रणोदक के साथ एक जुड़वे (ट्विन) द्रव इंजन विन्यास का उपयोग करता है।
- क्रायोजेनिक ऊपरी चरण: यह 28 टन प्रणोदक भार के साथ पूरी तरह से स्वदेशी उच्च प्रणोद क्रायोजेनिक इंजन (CE20) के साथ कॉन्फ़िगर किया गया है।
यह 4 टन के संचार उपग्रह को भू-तुल्यकालिक कक्षा में या 10 टन के उपग्रह को पृथ्वी की निम्न कक्षा में स्थापित कर सकता है।
यान की विशेषताएँ: यान की कुल लंबाई 43.5 मीटर है, जिसका कुल उत्थापन भार (lift-off weight ) 640 टन है और पेलोड फेयरिंग का व्यास 5 मीटर है।
मानव-रेटेड LVM3 की पहचान गगनयान मिशन के प्रक्षेपण यान के रूप में की गई है, जिसे HRLV नाम दिया गया है।
अर्ध-क्रायोजेनिक इंजन के बारे में (SE-2000)

- अर्ध-क्रायोजेनिक इंजन एक प्रकार का रॉकेट इंजन है जिसमें क्रायोजेनिक और पारंपरिक दोनों इंजनों की विशेषताएँ होती हैं।
- यह क्रायोजेनिक ऑक्सीडाइज़र के रूप में तरल ऑक्सीजन (LOX) और प्रणोदकों के लिए गैर-क्रायोजेनिक ईंधन के रूप में परिष्कृत केरोसिन (RP-1) का उपयोग करेगा।
- इनका तापमान क्रायोजेनिक इंजनों से अधिक होता है, लेकिन ये पारंपरिक द्रव रॉकेट इंजनों से कम ठंडा होते हैं।
- ये अंतरिक्ष यान को पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर ले जाने वाले रॉकेट के पहले चरण को आगे बढ़ाने में सहायक होते हैं।
- SE-2000 अंततः SC120 या बूस्टर चरण को शक्ति प्रदान करेगा, जो प्रक्षेपण यान मार्क 3 (LVM-3) के वर्तमान कोर लिक्विड चरण (L110) का स्थान लेगा।
- इसरो के द्रव प्रणोदन प्रणाली केंद्र (LPSC) को अर्ध-क्रायोजेनिक इंजन और चरण विकसित करने का कार्य सौंपा गया है।
अर्ध-क्रायोजेनिक इंजन का महत्व
- बेहतर प्रदर्शन और दक्षता: अर्ध-क्रायोजेनिक LOX-केरोसिन इंजन, भंडारण योग्य प्रणोदकों की तुलना में उच्च थ्रस्ट-से-भार (thrust-to-weight ) और बेहतर दक्षता प्रदान करता है, जो इसे भारी-भरकम प्रक्षेपण यानों के लिए आदर्श बनाता है।
- सुविधा: LOX-केरोसिन इंजनों का भंडारण, संचालन और परिवहन पूर्ण क्रायोजेनिक प्रणालियों की तुलना में आसान है, जिससे प्रक्षेपण जल्दी और लागत कम होती है।
- सुरक्षा: पारंपरिक विकल्पों की तुलना में LOX-केरोसिन प्रणोदक गैर-विषैले और गैर-खतरनाक हैं।
- अंतरिक्ष नेतृत्व: केवल कुछ ही देश (अमेरिका, रूस, चीन और जापान) अर्ध-क्रायोजेनिक इंजन तकनीक का उपयोग कर रहे हैं। SE -2000 का विकास भारत को उन्नत रॉकेट प्रणोदन प्रणालियों में वैश्विक दिग्गज बनाता है।
- व्यावसायिक लाभ: इसके सफल संचालन से भारोत्तोलन क्षमता और लागत-दक्षता में सुधार होगा, जिससे भारत वैश्विक अंतरिक्ष प्रक्षेपण बाजार में और अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकेगा।
क्रायोजेनिक इंजन
- क्रायोजेनिक्स अत्यंत निम्न तापमान (-150 डिग्री सेंटीग्रेड से नीचे) पर पदार्थों के उत्पादन और व्यवहार का अध्ययन है।
- क्रायोजेनिक इंजन प्रणोदक के रूप में द्रव ऑक्सीजन (LOX) और द्रव हाइड्रोजन (LH2) का उपयोग करते हैं।
- इसरो क्रायोजेनिक इंजन प्रौद्योगिकी को उन्नत कर रहा है, हाल ही में उन्नत CE20 क्रायोजेनिक इंजन का प्रज्वलन परीक्षण किया गया है, ताकि प्रणोदन और प्रदर्शन को बढ़ाया जा सके|