संदर्भ:

हाल ही में, एक नया पीजोइलेक्ट्रिक पॉलिमर नैनोकम्पोजिट सामग्री विकसित की गई है जो दबाव संवेदन और ऊर्जा संचयन अनुप्रयोगों के लिए उपयोगी हो सकती है।

शोध के मुख्य अंश 

  • नैनो एवं मृदु पदार्थ विज्ञान केंद्र (CeNS) के शोधकर्ताओं ने राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला (CSIR-NCL), पुणे के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर पीजोइलेक्ट्रिक पॉलीमर नैनोकंपोजिट पर आधारित एक सुरक्षा चेतावनी प्रणाली विकसित की है।
  • यह विकास इस खोज पर आधारित है कि उपयुक्त क्रिस्टल संरचना और सतह गुणों वाले धातु ऑक्साइड नैनोमटेरियल को जब पॉलिमर कम्पोजिट में पूरक के रूप में उपयोग किया जाता है, तो इससे पीजोइलेक्ट्रिक प्रतिक्रिया में महत्वपूर्ण वृद्धि होती है।
  • एक एन्ड्रॉइड एप्लीकेशन द्वारा समर्थित वायरलेस, ब्लूटूथ-आधारित सुरक्षा चेतावनी प्रणाली भी विकसित की गई तथा निर्मित प्रोटोटाइप के साथ एक आशाजनक अनुप्रयोग के रूप में इसका प्रदर्शन भी किया गया।
  • यह प्रणाली पदचिह्नों का पता लगने पर सक्रिय हो जाती है, यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर देती है तथा ब्लूटूथ के माध्यम से वायरलेस तरीके से अलर्ट भेजती है।
  • यह अध्ययन पॉली विनाइलिडीन डाइफ्लोराइड (PVDF)-मोनोक्लिनिक ZrO2 नैनोपार्टिकल नैनोकंपोजिट्स को मान्य करता है जो लचीले, दीर्घकालिक ऊर्जा उत्पादन और दबाव-संवेदन अनुप्रयोगों के लिए उत्कृष्ट प्रदर्शन प्रदान करता है।
  • यह शोध हाल ही में अमेरिकन केमिकल सोसाइटी जर्नल एसीएस-एप्लाइड नैनो मटेरियल में प्रकाशित किया गया था। 

नैनो एवं मृदु पदार्थ विज्ञान केंद्र (CeNS)

  • यह भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान है।
  • इस केंद्र की स्थापना वर्ष 1991 में एक प्रख्यात लिक्विड क्रिस्टल वैज्ञानिक, प्रो. एस. चंद्रशेखर द्वारा की गई थी, तब इसे सेंटर फॉर लिक्विड क्रिस्टल रिसर्च के रूप में जाना जाता था और वर्ष 2010 में इसका नाम बदलकर सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर रिसर्च कर दिया गया।
  • यह सभी लंबाई के पैमाने पर सामग्री अनुसंधान करता है, जिसमें धातु और सेमीकंडक्टर नैनोस्ट्रक्चर, लिक्विड क्रिस्टल, जैल, झिल्ली और वर्णसंकर सामग्री में विशेषज्ञता है, जिसका भारत और विदेश दोनों में संस्थानों और उद्योगों के साथ मजबूत संबंध है।

राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला, पुणे

  • राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला (NCL), की स्थापना वर्ष 1950 में हुई थी और यह वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की एक घटक प्रयोगशाला है।
  • यह एक विज्ञान और ज्ञान आधारित अनुसंधान, विकास और परामर्श संगठन है।

पीजोइलेक्ट्रिक पॉलिमर क्या हैं?

  • वे बहुलक हैं जो दबाव/तनाव के तहत सतह पर विद्युत आवेश उत्पन्न कर सकते हैं और इस प्रकार यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर सकते हैं।

पीजोइलेक्ट्रिक पॉलिमर के लाभ:

  • गैर विषैले: वे विभिन्न अनुप्रयोगों के लिए सुरक्षित हैं।
  • अत्यधिक लचीला: यह उन्हें लचीले और पहनने योग्य उपकरणों में उपयोग हेतु उपयुक्त बनाता है।
  • पर्यावरण अनुकूल: वे प्राकृतिक रूप से सड़नशील और पर्यावरण अनुकूल हैं।
  • बहुमुखी अनुप्रयोग: उनके गुण उन्हें अनुप्रयोगों की व्यापक श्रेणी में उपयोग करने की सुविधा देते हैं, जिनमें लचीलेपन और जैव-संगतता की आवश्यकता होती है।

शोधकर्ताओं ने पॉलिमर नैनोकम्पोजिट सामग्री कैसे तैयार की?

  • शोधकर्ताओं ने दो जिरकोनिया-आधारित धातु-कार्बनिक ढांचे (UiO-66 और UiO-67) को संश्लेषित किया, जिन्हें उनके क्रिस्टलोग्राफिक चरणों अर्थात् मोनोक्लिनिक और टेट्रागोनल चरणों पर उत्कृष्ट नियंत्रण के साथ जिरकोनिया नैनोकणों में परिवर्तित किया गया।
  • इसके बाद विभिन्न क्रिस्टल संरचनाओं वाले इन नैनोकणों को एक सुप्रसिद्ध पीजोइलेक्ट्रिक बहुलक, पॉली (विनाइलिडीन डाइफ्लोराइड) (PVDF) में सम्मिलित करके बहुलक नैनोकंपोजिट फिल्में तैयार की गईं।
  • यूआईओ-66 से उत्पादित मोनोक्लिनिक जिरकोनिया नैनोकणों वाले पॉलिमर नैनोकंपोजिट ने अन्य व्युत्पन्नों से बेहतर प्रदर्शन किया तथा शुद्ध पॉलिमर की तुलना में इसका पीजोइलेक्ट्रिक निर्गमन प्रदर्शन अधिक था।

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