संदर्भ:
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (PM-KUSUM) (पीएम-कुसुम) योजना ने वर्ष 2024 तक अपने लक्ष्यों का केवल 30% ही हासिल किया है, जिससे वर्ष 2026 की समय सीमा तक पूरा करने की इसकी क्षमता पर चिंता बढ़ गई है।
अन्य संबंधित जानकारी
- इस योजना का लक्ष्य वर्ष 2024 के अंत तक 25,750 मेगावाट की कुल क्षमता के साथ ग्रिड से जुड़े सौर ऊर्जा संयंत्र और सौर पंप स्थापित करना है, जिससे देश भर में 20 मिलियन किसान लाभान्वित होंगे।
- इस रिपोर्ट में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में किए गए सर्वेक्षणों के निष्कर्ष शामिल हैं।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष
- अधिकांश कार्यान्वयन घटक ‘ख’ के अंतर्गत हुआ है, जबकि घटक ‘क’ और ‘ग’ में न्यूनतम कार्यान्वयन हुआ है।
- सौर ऊर्जा चालित कृषि पंपों की उपलब्धता से किसान दिन में भी अपने खेतों की सिंचाई कर सकते हैं, जिससे उनकी डीजल और ग्रिड बिजली पर निर्भरता कम जाएगी।
पीएम-कुसुम योजना
- शुरुआत: मार्च 2019
- उद्देश्य: कृषि क्षेत्र में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना।
- नोडल मंत्रालय: नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई)
- घटक:
- घटक ‘क’: 2 मेगावाट की क्षमता तक बंजर भूमि पर नवीकरणीय ऊर्जा बिजली संयंत्र जुड़े 10,000 मेगावाट के विकेन्द्रीकृत ग्रिड की स्थापना।
- घटक ‘ख’: 17.50 लाख स्वचलित सौर कृषि पंपों की स्थापना।
- घटक ‘ग’: कृषि पंपों से जुड़े 10 लाख ग्रिड के सौरीकरण (Solarisation) हेतु।
केंद्रीय वित्तीय सहायता/राज्य सरकार का समर्थन
- घटक-‘क’: किसानों और डेवलपर्स (उत्पादकों) से बिजली खरीदने के लिए नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा डिस्कॉम को पहले पांच वर्षों के लिए 40 पैसे प्रति किलोवाट घंटा या 6.60 लाख रुपये प्रति मेगावाट प्रतिवर्ष (जो भी कम हो) की खरीद आधारित प्रोत्साहन (PBI) दी जाएगी, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा पहलों के लिए वित्तीय सहायता सुनिश्चित होगी।
घटक ‘ख’ और ‘ग’:
- बेंचमार्क लागत या निविदा लागत का 30% केंद्रीय वित्तीय सहायता, जो भी कम हो। राज्य सरकार सब्सिडी 30%; शेष 40% किसान द्वारा।
- पूर्वोत्तर राज्यों, सिक्किम, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, लक्षद्वीप और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में, केंद्रीय वित्तीय सहायता 50%, राज्य सरकार सब्सिडी 30%, शेष 20% किसान द्वारा।
- हालाँकि, इस योजना को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें किसानों के लिए वित्तीय व्यवहार्यता की कमी और विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग पंप क्षमताओं की अनुपलब्धता शामिल है।
- प्रमुख चुनौतियों में से एक किसानों के लिए सस्ती बिजली की उपलब्धता है, जिसके कारण बिजली चालित जल पंपों से सौर जल पंपों की ओर बदलाव हेतु प्रोत्साहन की कमी होती है।
अध्ययन की सिफारिशें
- इन चुनौतियों से निपटने के लिए, विशेषज्ञों ने एक विकेन्द्रीकृत कार्यान्वयन मॉडल की सिफारिश की हैं, जहां किसानों की जनसांख्यिकी और जरूरतों के बारे में जमीनी जानकारी रखने वाली कार्यान्वयन एजेंसियां किसानों की जरूरतों को अधिक प्रभावी ढंग से पूरा कर सकती हैं।
- इसके अतिरिक्त, केंद्रीय वित्तीय सहायता में वृद्धि विभिन्न राज्यों की जरूरतों या सौर मॉड्यूल की कीमतों पर निर्भर करता है।
- किश्तों में अग्रिम लागत का भुगतान करने का विकल्प प्रदान करने से यह योजना उनके लिए वित्तीय रूप से अधिक व्यवहार्य हो सकती है।
आगे की राह
चुनौतियों के बावजूद, पीएम-कुसुम योजना सतत कृषि को बढ़ावा देने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने में एक महत्वपूर्ण पहल बनी हुई है। कार्यान्वयन संबंधी समस्याओं को दूर करके और वित्तीय सहायता बढ़ाकर, यह योजना अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकती है और पूरे भारत में लाखों किसानों को लाभान्वित कर सकती है।