संदर्भ:

सिंधु जल संधि (IWT) के तहत जलविद्युत परियोजनाओं का निरीक्षण करने के लिए पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल  ने जम्मू के किश्तवाड़ का दौरा किया  है।

अन्य संबंधित जानकारी 

यह पाँच सदस्यीय पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल जिन दो जलविद्युत परियोजनाओं का निरीक्षण करने पहुंचा है, वे है:

  • रतले जलविद्युत परियोजना: यह चिनाब नदी पर स्थित है।
  • पाकल दुल जलविद्युत परियोजना: यह परियोजना चेनाब नदी की सहायक नदी मरुसुदर पर स्थित है।

भारत, पाकिस्तान के प्रतिनिधियों और विश्व बैंक के तटस्थ विशेषज्ञों ने किश्तवाड़ में स्थित राष्ट्रीय जलविद्युत निगम (National Hydroelectric Power Corporation-NHPC) के स्थानीय कार्यालय  का दौरा किया। 

  • यह दौरा  सिंधु नदी तंत्र  के जल बँटवारे को नियंत्रित करने वाली वर्ष 1960 में हुई सिंधु जल संधि (IWT) के विवाद समाधान तंत्र के अंतर्गत हुआ  है।

पृष्ठभूमि और विवाद समाधान:

  • सितंबर, 2023 में, भारत के अनुरोध पर नियुक्त विश्व बैंक के एक तटस्थ विशेषज्ञ ने सिंधु जल संधि (IWT) के फ्रेमवर्क के तहत एक बैठक शुरू की।
  • पाकिस्तान ने पहले किशनगंगा और रतले परियोजनाओं के तकनीकी पहलुओं पर आपत्ति जताई थी । भारत ने इन आपत्तियों और पाकिस्तान द्वारा शुरू की गई समानांतर कार्यवाही का विरोध किया है।जम्मू और कश्मीर सरकार ने दोनों देशों के प्रतिनिधियों और तटस्थ विशेषज्ञों के लिए 25 संपर्क अधिकारी नियुक्त किए हैं।
  • जम्मू और कश्मीर सरकार ने दोनों देशों के प्रतिनिधियों और तटस्थ विशेषज्ञों के लिए 25 संपर्क अधिकारी नियुक्त किए हैं।

जलविद्युत परियोजनाओं पर पाकिस्तान द्वारा जताई गई आपत्ति

  • पाकिस्तान ने 1,000 मेगावाट की पाकल दुल और 48 मेगावाट की लोअर कलनाई जलविद्युत परियोजनाओं पर औपचारिक तौर पर आपत्ति जताने के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में संचालित अन्य परियोजनाओं पर चिंता व्यक्त की है।
  • इन 10 जलविद्युत परियोजनाओं में शामिल हैं: डुरबुक श्योक, निमू चिलिंग, किरू, तमाशा, कलारूस- II, बाल्टीकुलन स्माल, कारगिल हुंदरमन, फागला, कुलन रामवारी और मंडी।

सिंधु जल संधि (IWT) के बारे में

  • सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी तंत्र  से जल संसाधनों के बँटवारे के संबंध में एक महत्वपूर्ण समझौता है।
  • वर्ष 1960 में विश्व बैंक द्वारा मध्यस्थता के बाद  दोनों देशों के बीच इस पर वार्त्ता की गई थी। इसका उद्देश्य वर्ष 1947 के भारत विभाजन से उत्पन्न जल बँटवारे संबंधी विवादों का समाधान करना था।
  • जल बँटवारा  : यह संधि सिंधु नदी तंत्र  के जल संसाधनों पर नियंत्रण आवंटित करती है।
  • भारत: इसके तहत भारत के पास तीन पूर्वी नदियों – रावी, ब्यास और सतलुज – के जल पर पूर्ण अधिकार है।
  • पाकिस्तान: इसके तहत पाकिस्तान के पास तीन पश्चिमी नदियों – सिंधु, झेलम और चिनाब – के जल पर पूर्ण अधिकार है।
  • भारत के पास सीमित उपयोग: भारत के पास घरेलू उपयोग, सिंचाई और बिजली उत्पादन जैसे विशिष्ट उद्देश्यों के लिए पश्चिमी नदियों का उपयोग करने के सीमित अधिकार हैं, जो जल प्रवाह में अप्रत्याशित रूप से कमी नहीं लाते हैं।
  • विवाद समाधान: इसके तहत जल बँटवारे से उत्पन्न होने वाले किसी भी विवाद का समाधान  करने और दोनों देशों के बीच सहयोग सुनिश्चित करने के लिए एक स्थायी सिंधु आयोग का गठन किया गया।

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