संदर्भ:
हाल ही में, केंद्र सरकार ने पश्चिमी घाट के कुछ हिस्सों को पारिस्थितिक रुप से संवेदनशील क्षेत्रों (eco-sensitive areas-ESAs) के रूप में वर्गीकृत करने वाली एक मसौदा अधिसूचना पुनः जारी की है।
अन्य संबंधित जानकारी
- यह अधिसूचना केरल के वायनाड में हुए भयंकर भूस्खलन के बाद जारी की गई है, जिसमें इस क्षेत्र की पारिस्थितिक आपदाओं के प्रति संवेदनशीलता पर जोर दिया गया है।
- एक दशक में यह छठा मौका है जब केंद्र सरकार ने पश्चिमी घाट के पारिस्थितिक रुप से संवेदनशील क्षेत्रों (ESAs) पर मसौदा अधिसूचना पुनः जारी की है।
- छह बार पुनरावृति के बावजूद, मसौदा अधिसूचना कानून नहीं बन पाई है, क्योंकि संबंधित राज्यों ने पारिस्थितिक रुप से संवेदनशील क्षेत्रों में शामिल विशिष्ट क्षेत्रों पर आपत्ति जताई है।
- वर्तमान में, पश्चिमी घाट के सभी राज्यों में पारिस्थितिक रुप से संवेदनशील कुल क्षेत्र 56,825 वर्ग किमी है, जो निम्नानुसार फैला हुआ है: केरल (9,993 वर्ग किमी), कर्नाटक (20,668 वर्ग किमी), तमिलनाडु (6,914 वर्ग किमी), महाराष्ट्र (17,340 वर्ग किमी), गोवा (1,461 वर्ग किमी) और गुजरात (449 वर्ग किमी)।
पश्चिमी घाट
- पश्चिमी घाट (Western Ghats) छोटे पर्वतों की एक श्रृंखला है जो गुजरात से दक्षिणी केरल तक 30 से 50 किलोमीटर की दूरी तक फैली हुई है, जो भारत के पश्चिमी तट के समानांतर 1,600 किलोमीटर है।
- ये श्रंखलाएं छह राज्यों तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, गोवा, महाराष्ट्र और गुजरात में फैली हुई हैं।
जैव विविधता
- पश्चिमी घाट के जंगलों में दुनिया के गैर-भूमध्यरेखीय उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनों के सर्वश्रेष्ठ प्रजाति शामिल हैं।
- पश्चिमी घाट में कम से कम 325 वैश्विक रूप से संकटग्रस्त (IUCN रेड डेटा सूची) प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- 180,000 वर्ग किमी या भारत के भूमि क्षेत्र के लगभग 6 प्रतिशत क्षेत्र में फैले होने के बावजूद, पश्चिमी घाट में भारत में पाए जाने वाले सभी पौधों, मछलियों, सरीसृप-जीवों, पक्षियों और स्तनपायी प्रजातियों का 30 प्रतिशत से अधिक हिस्सा मौजूद है।
पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र अधिसूचना के अंतिम रूप दिए जाने पर इसका प्रभाव:
- खनन और उत्खनन प्रतिबंध: पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में खनन, उत्खनन और रेत खनन पर पूर्ण प्रतिबंध। मौजूदा खदानों को पाँच वर्षों के भीतर चरणबद्ध तरीके से बंद हो जाने चाहिए।
- ताप विद्युत परियोजनाएँ: किसी भी नई ताप विद्युत परियोजना की अनुमति नहीं दी जाएगी। मौजूदा ताप विद्युत संयंत्रों के विस्तार की अनुमति नहीं दी जाएगी।
- लाल श्रेणी के उद्योग: नए ‘लाल श्रेणी’ के उद्योगों पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। इन उद्योगों की सूची केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा तैयार की जाएगी।
- निर्माण एवं विकास परियोजनाएं: 20,000 वर्ग मीटर और उससे अधिक निर्मित क्षेत्र वाली नई एवं विस्तारित भवन एवं निर्माण परियोजनाएं प्रतिबंधित रहेंगी।
- निगरानी तंत्र: क्षेत्र में आर्थिक गतिविधि के लिए एक अलग निगरानी तंत्र स्थापित किया जाएगा।
पिछली समितियों की सिफारिशें:
- गाडगिल समिति: इसकी स्थापना वर्ष 2011 में की गई थी और इस समिति ने सिफारिश की थी कि 129,037 वर्ग किलोमीटर में फैले पूरे पश्चिमी घाट को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील घोषित किया जाना चाहिए। इसने तीन जोन बनाने का प्रस्ताव रखा- पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र 1 (ESA 1), पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र 2 (ESA 2) और पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र 3 (ESA 3)- जिसमें पहले दो में आर्थिक गतिविधियों पर सबसे सख्त प्रतिबंध लगाए गए।
- कस्तूरीरंगन समिति: इस समिति ने केवल 37% अधिसूचित पश्चिमी घाट के 60,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया, जिसमें क्षेत्रों को सांस्कृतिक (मानव बस्तियों) और प्राकृतिक (गैर-मानव बस्तियों) क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है। समिति ने राज्यों को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों के लिए अपनी स्वयं की योजनाएँ बनाने हेतु भी आमंत्रित किया, जिसमें केरल पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र को सीमांकित करने वाला पहला राज्य बन गया।
पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र:
- पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र ऐसे महत्वपूर्ण क्षेत्र होते हैं जिन्हें उनके पर्यावरणीय महत्व के लिए जाना जाता है, जहां जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए मानवीय गतिविधियों को विनियमित किया जाता है।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, केन्द्र सरकार को इन संवेदनशील क्षेत्रों में औद्योगिक गतिविधियों को प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है, यद्यपि इसमें “पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों” का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है।
ईएसए पदनाम की वजहें:
- जैव विविधता केंद्र: पश्चिमी घाट विश्व के आठ जैव विविधता के “प्रमुख केंद्रों” में से एक है और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, जिससे इसका संरक्षण महत्वपूर्ण हो जाता है।
- प्राकृतिक आपदाएँ: हाल ही में हुए भूस्खलनों ने पारिस्थितिकी क्षरण को रोकने के लिए सुरक्षात्मक उपायों की आवश्यकता को उजागर किया है।
राज्यों का विरोध:
- केरल में प्रचलित भावना यह है कि अधिसूचना से कृषि बागान प्रभावित होंगे, जलविद्युत योजनाएं बाधित होंगी तथा राज्य के उच्च जनसंख्या घनत्व के कारण पलायन का संकट पैदा होगा।
- केरल सरकार ने पहले गाडगिल रिपोर्ट के विरुद्ध एक स्वतंत्र रिपोर्ट बनाने के लिए एक पैनल नियुक्त किया था।
- पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र के बारे में राज्यों की चिंताओं को दूर करने के लिए वर्ष 2022 में एक समिति का गठन किया गया था। समिति को क्षेत्रीय विकास आवश्यकताओं के साथ संरक्षण प्रयासों को संतुलित करने का काम सौंपा गया है। यह विसंगतियों और सुझावों की समीक्षा कर रही है, लेकिन अभी तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की है।