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सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3: पर्यावरण संरक्षण
संदर्भ: हाल ही में, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत पर्यावरण संरक्षण (दूषित स्थलों का प्रबंधन) नियम, 2025 को अधिसूचित किया।
अन्य संबंधित जानकारी
- ये नियम पूरे भारत में रासायनिक रूप से दूषित स्थलों की पहचान, मूल्यांकन और सुधार के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करते हैं।
- ये नियम उन स्थलों के स्वैच्छिक सुधार का भी प्रावधान करते हैं जिनकी पहचान पहले से दूषित स्थल के रूप में नहीं की गयी है।
- इससे पहले, दशकों से ऐसे कई स्थलों की पहचान होने के बावजूद, कोई औपचारिक कानूनी संरचना नहीं थी।
नए नियमों के प्रमुख प्रावधान

- स्थानीय निकाय या जिला प्रशासन, स्वयं या जनता से शिकायत प्राप्त होने पर, दूषित पदार्थों से प्रभावित क्षेत्र की पहचान करेगा और अपने अधिकार क्षेत्र में मौजूद ऐसे सभी क्षेत्रों को एक केंद्रीकृत ऑनलाइन पोर्टल पर संदिग्ध दूषित स्थलों के रूप में सूचीबद्ध करेगा।
- जिला प्रशासन को संदिग्ध स्थलों की रिपोर्ट एक वर्ष में दो बार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) को सौंपनी होगी।
- जिला प्रशासन के लिए “संदिग्ध दूषित स्थलों” पर अर्ध-वार्षिक रिपोर्ट तैयार करना अनिवार्य है।
- राज्य बोर्डों या संदर्भ संगठनों को:
- सूचना मिलने के 90 दिनों के भीतर प्रारंभिक मूल्यांकन करना होगा।
- संदूषण की पुष्टि के लिए अगले 3 महीनों के भीतर विस्तृत सर्वेक्षण करना होगा
- मूल्यांकन में इसकी जांच करना शामिल है कि क्या 189 खतरनाक रसायनों (खतरनाक और अन्य अपशिष्ट नियम, 2016 के अनुसार) का स्तर सुरक्षित सीमा से अधिक है।
- अधिसूचना में कृषि, आवासीय, वाणिज्यिक और औद्योगिक क्षेत्रों के लिए 189 प्रदूषकों और उनके प्रतिक्रिया स्तर का नाम दिया गया है।
- दूषित स्थलों की पुष्टि होने पर इसकी सूचना सार्वजनिक रूप से दी जाएगी और उन तक पहुँच पर प्रतिबंध लगाए जाएँगे।
- ये नियम रेडियोधर्मी अपशिष्ट, खनन कार्यों, समुद्री तेल प्रदूषण और ठोस अपशिष्ट डंप स्थलों से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को कवर नहीं करते, क्योंकि इन्हें अलग कानून के तहत विनियमित किया जाता है।
- प्रारंभिक और विस्तृत स्थल मूल्यांकन के लिए केंद्र सरकार द्वारा पर्यावरण राहत कोष (सार्वजनिक दायित्व बीमा अधिनियम, 1991) के माध्यम से वित्त पोषण दिया जा सकता है और आवश्यकता पड़ने पर राज्य निधि से भी इसके लिए आवश्यक धन जुटाया जा सकता है।
प्रतिपूर्ति और दायित्व
- एक संदर्भ संगठन उपयुक्त तकनीकों का उपयोग करके मिट्टी, पानी और तलछट की सफाई के लिए एक सुधार योजना की रूपरेखा तैयार करेगा।
- पूरे भारत में ऐसे 103 स्थल हैं। हालाँकि, उनमें से केवल सात पर ही सफाई कार्य शुरू हुआ है।
- राज्य बोर्डों के पास प्रदूषण के लिए ज़िम्मेदार प्रदूषकों की पहचान करने के लिए 90 दिन का समय है।
- प्रदूषकों को सुधार की लागत वहन करनी होगी; यदि यह संभव न हो, तो केंद्र और राज्य सरकारें एक निर्धारित व्यवस्था के तहत सफाई के लिए धन मुहैया कराएँगी।
- मृत्यु या क्षति पहुँचाने वाले प्रदूषण के लिए भारतीय न्याय संहिता (2023) के तहत आपराधिक दायित्व सुनिश्चित किया जाएगा।
नए नियमों का महत्त्व
- प्रदूषित स्थलों के उपचार के लिए कानूनी ढांचा: ये नियम दूषित भूमि की सफाई के लिए प्रदूषकों को जवाबदेह बनाकर लंबे समय से चली आ रही नियामक कमी को पूरा करते हैं।
- उदाहरण: बाघजान तेल क्षेत्र विस्फोट (असम, 2020) जैसे मामलों में, जहाँ रिसाव ने मगुरी-मोटापुंग आर्द्रभूमि और आस-पास के पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित किया, के लिए जिम्मेदार कंपनी को अब कानूनी रूप से स्थल का कायाकल्प करना होगा।
- स्थल मूल्यांकन के लिए वित्तीय सहायता सुनिश्चित करता है: केंद्रीय और राज्य स्रोतों के माध्यम से प्रारंभिक और विस्तृत स्थल मूल्यांकन के लिए धन का प्रावधान, जिसमें पर्यावरण राहत कोष भी शामिल है, जो त्वरित जाँच और प्रतिक्रिया को सक्षम बनाता है।
- जवाबदेही और दायित्व तय करता है: ये नियम प्रदूषण कर्ताओं को पर्यावरण को पहुँचाए गए नुकसान की भरपाई के लिए वित्तीय रूप से उत्तरदायी ठहराते हैं, “प्रदूषक भुगतान करता है (polluter pays)” सिद्धांत को बढ़ावा देते हैं और जिम्मेदार अपशिष्ट प्रबंधन अभ्यासों को प्रोत्साहित करते हैं।
