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सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 1: भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएं, भारत की विविधता

संदर्भ: 

भाषा के मुद्दे पर चल रही बहस के मद्देनजर नागरी प्रचारिणी सभा का उल्लेख करना आवश्यक हो गया है, जिसने हिंदी को आधिकारिक मान्यता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

हालिया भाषा विवाद:

  • महाराष्ट्र में हिंदी और उसके “थोपे जाने” को लेकर राजनीति फिर से तेज़ हो गई है।
  • राज्य सरकार द्वारा प्राथमिक विद्यालयों में हिंदी को डिफ़ॉल्ट तीसरी भाषा बनाने के अपने फैसले को वापस लेने के बाद, उद्धव और राज ठाकरे मराठी भाषा के अधिकारों के समर्थन में एकजुट हो गए हैं।
  • तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के स्टालिन ने भी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि जनता के विरोध के कारण भाजपा को महाराष्ट्र में यह फैसला वापस लेने के लिए विवश होना पड़ा।

नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना

  • 1888 में, दरभंगा के महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह ने “हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान” के नारे से प्रेरित होकर हिन्दी को अपने क्षेत्र की आधिकारिक भाषा बनाया।
  • न्यायालयों और कार्यालयों में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए 16 जनवरी 1893 को श्याम सुंदर दास, पंडित रामनारायण मिश्र और ठाकुर शिवकुमार सिंह द्वारा नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना की गई थी।
  • सभा ने एक उचित हिंदी शब्दकोश बनाने का भी निर्णय लिया। 1908 से, सभा ने इस शब्दकोश के लिए शब्द और उनके अर्थ एकत्र करने हेतु गाँवों और कस्बों से लोगों को भेजा।
  • 21 वर्षों के कार्य के बाद, 1929 में सभा ने आचार्य रामचंद्र शुक्ल और श्याम सुंदर दास की टिप्पणियों के साथ 11 खंडों वाला हिंदी शब्दकोश “शब्द सागर” प्रकाशित किया।
  • आचार्य शुक्ल की “हिंदी साहित्य का इतिहास”, सभा द्वारा प्रकाशित हुई और हिंदी साहित्य को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण पुस्तक बन गई।
  • 1896 में, उस समय का सबसे बड़ा हिंदी पुस्तकालय, आर्य भाषा पुस्तकालय, स्थापित किया गया।
  • यद्यपि उस समय अंग्रेजी, उर्दू और फारसी का बोलबाला था, फिर भी सभा ने हिंदी को बढ़ावा देने के लिए कड़ी मेहनत की और बाल गंगाधर तिलक जैसे नेताओं से समर्थन प्राप्त किया, हालांकि यह गैर-राजनीतिक रही।

आजादी के बाद हिन्दी 

  • आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू नागरी प्रचारिणी सभा के संरक्षक बने।
  • भारत की सबसे पुरानी हिंदी शोध पत्रिका नागरी प्रचारिणी पत्रिका, 1896 से प्रकाशित हो रही है।
  • पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा संपादित प्रसिद्ध हिंदी पत्रिका सरस्वती का प्रकाशन सभा के सहयोग से 1900 में शुरू हुआ।
  • सभा पहले बनारस में थी और बाद में इसका विस्तार हरिद्वार और नई दिल्ली तक हुआ। हरिद्वार में स्वामी सत्यदेव परिव्रजक ने इसके भवन के लिए भूमि दान में दी थी।
  • हिंदी आंदोलन बढ़ता गया और कई शहरों में सभा की स्थानीय शाखाएँ शुरू हुईं। 1970 के दशक से, राजनीति का भाषा और साहित्य पर प्रभाव पड़ने के कारण सभा का काम धीमा पड़ गया।
  • सभा के नेतृत्व को लेकर विवाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय तक पहुँचा, जिसने पिछले वर्ष फरवरी में व्योमेश शुक्ल के समूह के पक्ष में फैसला सुनाया।
  • नए नेतृत्व के तहत सभा ने आचार्य रामचंद्र शुक्ल के हिंदी साहित्य का इतिहास का पुनर्मुद्रण किया और अमीर खुसरो की हिंदी कविताओं को प्रकाशित किया।

मुख्य परीक्षा हेतु प्रश्न 

हिन्दी भाषा के संवर्धन और मानकीकरण में नागरी प्रचारिणी सभा की ऐतिहासिक भूमिका की चर्चा कीजिए। इस संगठन की यात्रा ने आजादी के बाद के भारत में भाषा की राजनीति को किस प्रकार प्रतिबिम्बित किया है? (15अंक, 250शब्द)

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