संदर्भ:

एक नए अध्ययन में पाया गया है कि कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के बढ़ते स्तर का  वर्षा में परिवर्तन और जैव विविधता हॉटस्पॉट पर पड़ने वाले प्रभावों से संबंध है।

अन्य संबंधित जानकारी

  • यह शोध अध्ययन बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान(BSIP)  के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया था और इसे “जियोसाइंस फ्रंटियर्स” पत्रिका में प्रकाशित किया गया था।
  • बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग,भारत सरकार  के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान है।

मुख्य अंश

भूमध्यरेखीय वर्षा और जैव विविधता पर ग्रीनहाउस गैसों का प्रभाव

  • अध्ययन से पता चला है कि ग्रीनहाउस गैसों में वैश्विक वृद्धि से भूमध्यरेखीय क्षेत्र में वर्षा में कमी आ सकती है, जिसके साथ वनस्पति में भी बदलाव आ सकता है।
  • यह भारत के जैव विविधता वाले प्रमुख स्थानों , जिनमें पश्चिमी घाट, पूर्वोत्तर भारत और अंडमान के सदाबहार वन शामिल हैं, को पर्णपाती वनों से परिवर्तित किया  जा सकता है।

जलवायु पूर्वानुमान के अनुरूप डीप टाइम हाइपरथर्मल ईवेंट

  • डीप टाइम हाइपरथर्मल ईवेंट्स (गहन-कालिक अतितापीय घटनाएँ) को भविष्य की जलवायु भविष्यवाणियों के लिए संभावित अनुरूप माना जाता है।
  • हालाँकि, इन घटनाओं पर डेटा मुख्य रूप से मध्य और उच्च अक्षांश क्षेत्रों से आता है, जबकि भूमध्यरेखीय या उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से मात्रात्मक डेटा का उल्लेखनीय अभाव है।

अनुसंधान क्रियाविधि

  • शोधकर्ताओं ने उस अवधि के दौरान स्थलीय जल विज्ञान चक्र को मापने के लिए इओसीन थर्मल मैक्सिमम 2 (ETM-2) से प्राप्त जीवाश्म पराग और कार्बन समस्थानिक (आइसोटोप) डेटा का उपयोग किया।
  • इस अवधि को एच-1 या रहस्यमयी उत्पत्ति की इयोसीन परत (Eocene Layer of Mysterious Origin-ELMO) के नाम से भी जाना जाता है जो वैश्विक तापमान वृद्धि की एक अवधि है जो लगभग 54 मिलियन वर्ष पहले घटित हुई थी।

भारतीय प्लेट का महत्व

  • ईटीएम-2 के दौरान, भारतीय प्लेट भूमध्य रेखा के समीप  थी, जिससे यह वनस्पति-जलवायु संबंधों का अध्ययन करने के लिए एक आदर्श प्राकृतिक प्रयोगशाला बन गई।
    भारतीय प्लेट (एक छोटी टेक्टोनिक प्लेट) मूल रूप से गोंडवाना का हिस्सा थी, जो लगभग 100 मिलियन वर्ष पहले टूट गई थी। यह ईटीएम-2 के दौरान हुआ था कि भारतीय प्लेट दक्षिणी से उत्तरी गोलार्ध की यात्रा के दौरान भूमध्य रेखा के पास रुकी थी।
  • शोधकर्ताओं ने ईटीएम-2 से जीवाश्मों की उपलब्धता के कारण गुजरात के कच्छ में स्थित पनांध्रो लिग्नाइट खदान का चयन किया तथा विश्लेषण के लिए जीवाश्म पराग एकत्र किया।

महत्वपूर्ण निष्कर्ष

  • विश्लेषण से पता चला कि जब पैलियो-भूमध्य रेखा के पास वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता 1000 पीपीएमवी से अधिक हो गई, तो वर्षा में बहुत  कमी आई।
  • वर्षा में इस कमी के कारण सदाबहार वनों के स्थान पर पर्णपाती वनों का विस्तार हुआ।

भविष्य के संरक्षण हेतु निहितार्थ

  • जियोसाइंस फ्रंटियर्स पत्रिका में प्रकाशित शोध में, बढ़ते कार्बन उत्सर्जन के तहत भूमध्यरेखीय और उष्णकटिबंधीय वर्षावनों और जैव विविधता वाले हॉटस्पॉट के अस्तित्व के बारे में महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए गए हैं।
  • कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर और जल विज्ञान चक्र के बीच संबंध को समझने से भविष्य में इन महत्वपूर्ण जैव विविधता वाले स्थानों के संरक्षण में सहायक हो सकता  है।

डीप-टाइम हाइपरथर्मल इवेंट्स

  • “डीप टाइम हाइपरथर्मल इवेंट्स” पृथ्वी के सुदूर अतीत में उन अवधियों को संदर्भित करते हैं जब गृह  ने तापमान में महत्वपूर्ण और  दीर्घकालिक वृद्धि का अनुभव किया था।
  • इन घटनाओं का अध्ययन इसलिए किया जाता है क्योंकि वे मूल्यवान जानकारी प्रदान कर सकते हैं और संभावित भविष्य के जलवायु परिवर्तनों को समझने और भविष्यवाणी करने हेतु प्रतिमान के रूप में कार्य  कर सकती 

जैव विविधता तप्तस्थल (हॉटस्पॉट)  

  • जैव विविधता  तप्तस्थल विश्व के वे क्षेत्र (हॉटस्पॉट) हैं जो वनस्पति और प्राणिगत  विविधता की दृष्टि से असाधारण रूप से समृद्ध हैं, लेकिन साथ ही मानवीय दबाव के कारण गंभीर खतरों का भी सामना करते हैं।
  • पृथ्वी की सतह के लगभग 2.5% भूभाग में फैले 36 जैव विविधता हॉटस्पॉट हैं, लेकिन वे विश्व की आधे से अधिक वनस्पति प्रजातियों को स्थानिक प्रजाति (अर्थात, ऐसी प्रजातियां जो अन्यत्र नहीं पाई जाती हैं) के रूप में तथा लगभग 43% पक्षी, स्तनपायी, सरीसृप और उभयचर प्रजातियां स्थानिक प्रजाति के रूप में पाई जाती हैं। 

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