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सामान्य अध्ययन-3: देश के विभिन्न भागों में प्रमुख फसलें, फसल पैटर्न, विभिन्न प्रकार की सिंचाई और सिंचाई प्रणालियां, कृषि उपज का भंडारण, परिवहन और विपणन और मुद्दे तथा संबंधित बाधाएं; किसानों की सहायता के लिए ई-प्रौद्योगिकी।

संदर्भ: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में “दलहन में आत्मनिर्भरता के लिय मिशन” को मंजूरी दी, जो घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने और दालों में आत्मनिर्भरता (Self-Sufficiency) हासिल करने के उद्देश्य से एक ऐतिहासिक पहल है।

मिशन की मुख्य विशेषताएँ

• समयावधि एवं वित्तीय परिव्यय: मिशन को 2025-26 से 2030-31 तक 11,440 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय के साथ छह वर्ष की अवधि में कार्यान्वित किया जाएगा।

• उत्पादन और क्षेत्र का विस्तार:

  • मिशन का लक्ष्य 2030-31 तक दालों का उत्पादन बढ़ाकर 350 लाख टन करना है, जो 2023-24 में 242 लाख टन था।
  • कृषि क्षेत्र को 310 लाख हेक्टेयर (242 लाख हेक्टेयर से) तक बढ़ाया जाएगा, तथा उत्पादकता को 1,130 किग्रा/हेक्टेयर (881 किग्रा/हेक्टेयर से) तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है।
  • मिशन विशेष रूप से अरहर, उड़द और मसूर का उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करेगा।

• सुनिश्चित खरीद और मूल्य समर्थन:

  • पीएम-आशा की मूल्य समर्थन योजना (PSS) के अंतर्गत अरहर, उड़द और मसूर की खरीद सुनिश्चित की जाएगी।
  • भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड (Nafed) और भारतीय राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ लिमिटेड (NCCF) चार वर्षों तक भाग लेने वाले राज्यों में पंजीकरण कराने वाले और समझौते करने वाले किसानों से 100% खरीद करेंगे।
  • मूल्य स्थिरता और किसानों का विश्वास सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक स्तर पर दलहन की कीमतों पर निगरानी रखने के लिए एक प्रणाली स्थापित की जाएगी।

• मूल्य श्रृंखला सुदृढ़ीकरण और किसान समर्थन: 

  • यह मिशन खरीद, भंडारण, प्रसंस्करण और कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने सहित संपूर्ण मूल्य श्रृंखला को सुदृढ़ करेगा।
  • टिकाऊ पद्धतियों और आधुनिक प्रौद्योगिकियों पर प्रशिक्षण के माध्यम से किसानों और बीज उत्पादकों के क्षमता निर्माण को बढ़ावा दिया जाएगा।

कार्यान्वयन रणनीति

• क्लस्टर-आधारित कार्यान्वयन: मिशन को 416 केंद्रित जिलों को कवर करते हुए क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण के माध्यम से क्रियान्वित किया जाएगा।

• बीज उत्पादन और वितरण: 

  • सरकार 2030-31 तक 370 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करने के लिए 126 लाख क्विंटल प्रमाणित बीज वितरित करेगी।
  • राज्यों द्वारा पंचवर्षीय रोलिंग बीज उत्पादन योजनाएँ तैयार की जाएँगी, जिसमें ICAR प्रजनक बीज उत्पादन की निगरानी करेगा।
  • आधारभूत और प्रमाणित बीज उत्पादन का प्रबंधन केंद्रीय और राज्य एजेंसियों द्वारा किया जाएगा, जिसे बीज प्रमाणीकरण, ट्रेसिबिलिटी और समग्र इनवेंट्री (SATHI) पोर्टल के माध्यम से ट्रैक किया जाएगा।
  • क्षेत्र विस्तार को बढ़ावा देने के लिए, किसानों को 88 लाख बीज किट निःशुल्क उपलब्ध कराए जाएंगे, जिससे चावल के परती क्षेत्रों और अन्य विविधीकरण योग्य भूमि को लक्षित करके अतिरिक्त 35 लाख हेक्टेयर भूमि प्राप्त की जा सकेगी, जिसमें अंतर-फसल और फसल विविधीकरण को बढ़ावा दिया जाएगा।

• प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन: फसल के नुकसान को कम करने, मूल्य संवर्धन में सुधार लाने और किसानों की आय बढ़ाने के लिए लगभग 1,000 नई प्रसंस्करण और पैकेजिंग इकाइयां स्थापित की जाएंगी।

  • प्रसंस्करण, पैकेजिंग इकाइयों की स्थापना के लिए अधिकतम 25 लाख रुपये की सब्सिडी उपलब्ध होगी।

मिशन का महत्व

  • आयात निर्भरता कम करना: घरेलू उत्पादन को बढ़ाकर, मिशन का उद्देश्य भारत को दलहन में आत्मनिर्भर बनाना, आयात निर्भरता को कम करना और मूल्यवान विदेशी मुद्रा के बहिर्वाह को बचाना है।
  • पोषण सुरक्षा में वृद्धि: दालों की उपलब्धता बढ़ने से प्रोटीन युक्त भोजन अधिक किफायती हो जाएगा, आहार विविधता में सुधार होगा और कमजोर आबादी में कुपोषण की चुनौतियों का समाधान होगा।
  • किसानों की आय में वृद्धि: सुनिश्चित खरीद, मूल्य समर्थन और मूल्य संवर्धन के माध्यम से, इस मिशन से किसानों की लाभप्रदता में वृद्धि और ग्रामीण आजीविका के अवसरों का सृजन होने की उम्मीद है।
  • जलवायु-लचीली कृषि को बढ़ावा: उच्च उपज देने वाली, कीट-प्रतिरोधी और जलवायु-लचीली दलहन किस्मों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ बेहतर बीज प्रणालियों और अंतर-फसल मॉडल से मिट्टी की उर्वरता और जल-उपयोग दक्षता में सुधार होगा।

स्रोत:
The Hindu
DD News
Agriculture. Vikaspedia

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