प्रसंग:

दिल्ली का मजनू का टीला बाज़ार थंगका कला की चमक को पुनर्जीवित कर रहा है।

थंगका कला का विवरण

  • थंगका चित्रकला, जो तिब्बत में एक सहस्राब्दी से अधिक समय तक फलती-फूलती रही, की उत्पत्ति 7वीं शताब्दी (जब नेपाल के नेवारियों ने इसे पेश किया) में हुई।
  • थंगका चित्रकला महज एक कलाकृति नहीं है बल्कि सांस्कृतिक पहचान का विषय है।
  • पारंपरिक थंगका आमतौर पर आकार में छोटे होते हैं और कई मूल थंगका सेट में या कथात्मक पौराणिक दृश्यों की श्रृंखला के रूप में आते थे, लेकिन बाद में उन्हें अलग कर दिया गया।

कला की विशेषताएँ

  • थंगका आमतौर पर छोटे होते हैं, जिनकी ऊंचाई 20 से 50 सेमी तक होती है।
  • थंगका पारंपरिक रूप से समृद्ध कपास या रेशम के एप्लीक (पिपली) पर बनाए जाते हैं।
  • यह कला बुद्ध या अन्य बौद्ध देवताओं, प्रभावशाली लामाओं की जीवन गाथा को दर्शाती है तथा पवित्र वस्तुओं और शिक्षण उपकरण के रूप में कार्य करती है।
  • थंगका को हाथ से रंगा जाता है और ये रेशम या कपास से बने होते हैं
  • यह रंग जल में घुलनशील पशु गोंद से बना होता है, जो खनिजों और कार्बनिक पदार्थों से प्राप्त होता है।
  • नेपाल में, इस कृति को और अधिक उत्कृष्ट बनाने के लिए इसमें 24 कैरेट सोना लगाया जाता है।

विधि और सामग्री के आधार पर थंगका की निम्नलिखित श्रेणियों हैं:

  • वे जो रेशम से सजे या कशीदाकारी किये गये हों।
  • रंगीन चित्रकला (त्सोन-तांग) थंगका चित्रकला का सबसे प्रचलित और प्रसिद्ध किस्म है।
  • काली पृष्ठभूमि (नागतांग) एक नाटकीय और शक्तिशाली प्रभाव पैदा करती है।
  • लाल पृष्ठभूमि (मार-तांग) ऊर्जा और अच्छे भाग्य का प्रतीक है।
  • कढ़ाई (त्सेम-थांग) इस कलाकृति में शानदार बनावट और गहराई जोड़ती है।
  • स्वर्ण पृष्ठभूमि भव्यता और दिव्यता की भावना पैदा करती है।

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