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सामान्य अध्ययन-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन।

संदर्भ: हाल ही में, महाराष्ट्र मंत्रिमंडल ने बांस उद्योग नीति, 2025 को स्वीकृति दी। इस नीति का उद्देश्य किसानों को आय का एक स्थायी एवं हरित स्रोत उपलब्ध कराने के साथ ही राज्य के घरेलू और वैश्विक बांस उत्पादन को बढ़ावा देना भी है।

अन्य संबंधित जानकारी

  • बांस, जिसे प्रायः ‘हरा सोना’ कहा जाता है, तेजी से वृद्धि करने वाला नवीकरणीय बायोमैटेरियल है। इसमें कार्बन डाइऑक्साइड की बड़ी मात्रा को अवशोषित करने, क्षरित मिट्टी को बहाल करने और लकड़ी या अन्य ऊर्जा फसलों की तुलना में बहुत कम संसाधनों के साथ पनपने की क्षमता है।
  • बांस बायोमास को अपनाने का लक्ष्य जीवनचक्र उत्सर्जन में कटौती करना, जीवाश्म ईंधन में कमी लाना और बॉयलर में बड़े बदलाव किए बिना सह-भस्मीकरण (co-firing) को संभव बनाना है। साथ ही, इसका उद्देश्य राष्ट्रीय बांस मिशन और महाराष्ट्र मिशन 2023 के अनुरूप राज्य की ऊर्जा उपयोगिताओं की कार्बन सघनता में सुधार करना है।

महाराष्ट्र बांस औद्योगिक नीति 2025

  • प्रमुख उद्देश्य:
  • यह नीति बांस को नकदी फसलों के समान किसानों की आय का एक विश्वसनीय और अधिक उपयोगी स्रोत मानती है इसके साथ ही, इसका उद्देश्य बांस की घरेलू और वैश्विक बाज़ार पहुँच का विस्तार करना है।
  • यह नीति व्यापक आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय लाभ के लिए मनरेगा के माध्यम से बंजर भूमि पर बांस की खेती को बढ़ावा देगी।
  • यह नीति दिसंबर 2025 से सभी ताप विद्युत संयंत्रों के लिए 5 से 7% बांस बायोमास सह-भस्मीकरण को अनिवार्य करती है, जिससे राज्य के स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में तेज़ी आएगी।
  • अवसंरचनात्मक विकास:
  • इस नीति के तहत अमरावती, भंडारा, सिंधुदुर्ग, गढ़चिरौली और अन्य क्षेत्रों में 15 समर्पित बांस क्लस्टर स्थापित किए जाएँगे। इन क्लस्टरों के माध्यम से प्रति वर्ष 15.72 मिलियन टन बांस का उत्पादन करने की क्षमता विकसित होगी।
  • यह कारीगरों, MSMEs (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों) और ग्रामीण उद्यमों को समर्थन देने के लिए एंकर इकाइयाँ (Anchor Units), सामान्य सुविधा केंद्र (CFCs – Common Facility Centres), और माइक्रो-सीएफसी विकसित करती है।
  • यह नीति किसान उत्पादक संगठनों (FPOs), पौध उत्पादन प्रणालियों, अनुदान सहायता और तकनीकी सहायता को मजबूत करने के लिए एशियाई विकास बैंक (ADB) के सहयोग से ₹4,271 करोड़ की एक पायलट परियोजना लागू करती है।
  • प्रोत्साहन और वित्तीय सहायता:  
  • इस नीति में 2025 से 2030 तक ₹1,534 करोड़ और अगले 20 वर्षों के लिए कुल ₹11,797 करोड़ का आवंटन किया गया है। चालू वित्तीय वर्ष के लिए ₹50 करोड़ आवंटित किए गए हैं। साथ ही, स्टार्ट-अप्स और MSMEs के लिए ₹300 करोड़ का एक उद्यम पूंजी कोष स्थापित करने का प्रावधान भी है।
  • यह नीति बांस उद्योग के विकास में तेज़ी लाने के लिए ब्याज सब्सिडी, बिजली में छूट, स्टाम्प शुल्क से छूट और पीएलआई (PLI) आधारित प्रोत्साहन प्रदान करती है।
  • यह नीति/प्रणाली जीआईएस (GIS), एआई (AI), ब्लॉकचेन, ड्रोन और उन्नत ऊतक-संवर्धन (Tissue Culture) प्रयोगशालाओं का उपयोग करके आपूर्ति श्रृंखलाओं को आधुनिक बनाती है। इसे विश्वविद्यालयों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का भी समर्थन प्राप्त है।

सम्मिश्रण का महत्त्व

  • ग्रामीण आजीविका और किसानों की खुशहाली:यह नीति बांस को एक उच्च-मूल्य वाली नकदी फसल के रूप में स्थापित करती है और MGNREGA के माध्यम से बंजर भूमि पर इसकी खेती का विस्तार करती है। इसका उद्देश्य किसानों की आय और ग्रामीण उत्थान को बढ़ावा देना है, जिससे विशेष रूप से आदिवासी और पिछड़े क्षेत्रों को लाभ मिलता है।
  • स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण: यह दिसंबर 2025 से ताप विद्युत संयंत्रों में बांस बायोमास सह-भस्मीकरण (co-firing) को अनिवार्य करके स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में तेज़ी लाती है, जिससे कोयले पर निर्भरता कम होती है और कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है।
  • औद्योगिक और मूल्य श्रृंखला विकास: यह 15 बांस क्लस्टरों, सीएफसी (सामान्य सुविधा केंद्रों), एंकर इकाइयों, आधुनिक प्रसंस्करण सुविधाओं, और प्रौद्योगिकी-सक्षम आपूर्ति श्रृंखलाओं के माध्यम से औद्योगिक और मूल्य-श्रृंखला इकोसिस्टम को मज़बूत करती है।
  • निवेश और उद्यम संवर्धन: यह नीति ब्याज सब्सिडी, कर छूट और उत्पादन सह प्रोत्साहन (PLI) प्रोत्साहनों द्वारा समर्थित पर्याप्त फंडिंग के साथ, बड़े पैमाने पर निवेश और उद्यम विकास को बढ़ावा देती है।
  • रोजगार सृजन और MSME विस्तार: यह नीति खेती, प्रसंस्करण, जैव ऊर्जा, विनिर्माण और कारीगर क्षेत्रों में 5 लाख से अधिक नौकरियों का सृजन करके व्यापक रोज़गार और MSME विस्तार को बढ़ावा देती है। यह किसान उत्पादक संगठनों और स्टार्ट-अप्स को भी प्रोत्साहित करती है।
  • क्षेत्रीय विकास और विदर्भ का विकास: यह नीति विदर्भ जैसे क्षेत्रों की कृषि-जलवायु संबंधी विशिष्टताओं और बंजर भूमि का उपयोग करके क्षेत्रीय विकास केंद्र स्थापित करती है जिसका  उद्देश्य मज़बूत बांस उत्पादन और जैव ऊर्जा अर्थव्यवस्था का निर्माण करना है।

स्रोत :
Downtoearth
Energetica
Indian Express

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