संदर्भ:
हाल ही में,केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने ताप विद्युत संयंत्र (TPPs) के लिए सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) उत्सर्जन मानदंडों का अनुपालन करने का विस्तार किया है।
अन्य संबंधित जानकारी:
• दिसंबर 2015 में, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने SO2, NO2 और पारा नियंत्रण के लिए भारत के पहले उत्सर्जन मानदंडों को लागू किया था, जिसमें कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों के प्रदूषण स्तर पर प्रत्यक्ष और द्वितीयक कण निर्माण के माध्यम से महत्वपूर्ण प्रभाव को स्वीकार किया गया था।
- कोयला आधारित विद्युत संयंत्र वायु प्रदूषण में सबसे बड़े योगदानकर्ताओं में से हैं, जो पार्टिकुलेट मैटर (PM), SO2, नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और भारी धातुएं उत्सर्जित करते हैं।
• अधिसूचना में दो वर्षों के भीतर SO2 नियंत्रण प्रौद्योगिकियों जैसे कि फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (FGD) प्रणालियों की स्थापना को अनिवार्य किया गया है तथा अनुपालन की अंतिम तिथि दिसंबर 2017 निर्धारित की गई है ।
• प्रगति असंतोषजनक रही है तथा बाद में समय-सीमाएं को और आगे बढ़ाया गया है।
• गैर- सेवामुक्त टीपीपी (कोयला आधारित विद्युत संयंत्र जिन्हें 2030 से पहले सेवामुक्त नहीं किया जा रहा है) के लिए SO2 अनुपालन की समय सीमा को फिर से संशोधित किया गया है।
- श्रेणी A (एनसीआर/शहर के 10 किमी के भीतर 10 लाख से अधिक आबादी) की समय सीमा 31 दिसंबर, 2027 निर्धारित की गई है।
- श्रेणी B (गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों के 10 किमी के दायरे में) 31 दिसंबर, 2028 तक
- श्रेणी C (शेष सभी संयंत्र) 31 दिसंबर 2029 तक।
कार्यान्वयन में प्रमुख चुनौतियाँ:
- FGD आवश्यकताओं के संबंध में विद्युत मंत्रालय, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और टीपीपी के बीच समन्वय और स्पष्ट संचार की कमी के कारण व्यापक भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
- CSIR-NEERI ने भारत के कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों से निकलने वाले सल्फर डाई ऑक्साइड (SO2) उत्सर्जन से परिवेशी वायु की गुणवत्ता पर महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ता है और SO2 की तुलना में पार्टिकुलेट मैटर (PM) नियंत्रण को प्राथमिकता देने का सुझाव दिया है।
- समय-सीमा लगातार बढ़ाये जाने के कारण निर्धारित समय के बाद गैर-अनुपालन कार्यों के लिए दंड का प्रावधान अप्रभावी बने रहते हैं।