संबंधित पाठ्यक्रम:
सामान्य अध्ययन -3: बुनियादी ढांचा: ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।
सामान्य अध्ययन -3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन|
संदर्भ:
हाल ही में, केंद्रीय परिवहन मंत्री ने कहा कि ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ARAI) डीजल के साथ आइसोब्यूटेनॉल मिश्रण की संभावना तलाश रहा है।
अन्य संबंधित जानकारी
- सम्मिश्रण के प्रतिशत का अभी भी अध्ययन किया जा रहा है और पायलट परियोजना को पूरा होने में लगभग 18 महीने लगेंगे।
- यदि यह सफल रहा, तो भारत डीजल के साथ आइसोब्यूटेनॉल सम्मिश्रण करने वाला पहला देश बन जाएगा।
आइसोब्यूटेनॉल
- आइसोब्यूटेनॉल एक अल्कोहॉलिक यौगिक है जिसमें ज्वलनशील गुण होते हैं और इसका उपयोग पेंटिंग सहित कई उद्योगों में विलायक के रूप में किया जाता है।
- इथेनॉल की तुलना में इसके उच्च ऊर्जा घनत्व और कम आर्द्रताग्राह्यता के कारण इसका उपयोग मुख्य रूप से विलायक और जैव ईंधन योजक (Additive) के रूप में किया जाता है।
लाभ
- इथेनॉल की तुलना में उच्च ऊर्जा घनत्व: प्रति लीटर ऊर्जा के मामले में डीज़ल के निकट है जिसका अर्थ है कि सम्मिश्रित होने पर ईंधन दक्षता में कम कटौती होगी।
- कम आर्द्रताग्राही: नमी अवशोषण का कम जोखिम, जिसका अर्थ है पाइपलाइनों, टैंकों और ईंधन वितरण अवसंरचना का कम संक्षारण।
- उत्सर्जन लाभ: पार्टिकुलेट मैटर और कालिख उत्सर्जन में कमी की संभावना, क्योंकि जैव-अल्कोहॉल आमतौर पर कुछ मामलों में अधिक स्वच्छ तरीके से जलते हैं।
- अपशिष्ट बायोमास का उपयोग: यदि इसे स्थायी तरीके से उपलब्ध कराया जाए, तो इसे आइसोब्यूटेनॉल जैसे महत्वपूर्ण रसायन के लिए फीडस्टॉक के रूप में उपयोग किया जा सकता है। इससे न केवल अपशिष्ट धाराओं का मूल्यवर्धन होगा, बल्कि किसानों की आय में वृद्धि और पर्यावरणीय लागत में कमी भी संभव हो सकेगी।
चुनौतियाँ
- सीटेन संख्या और दहन के गुण: आइसोब्यूटेनॉल की सीटेन संख्या शुद्ध डीज़ल से कम होती है। कम सीटेन संख्या का तात्पर्य है अधिक देर तक प्रज्वलन, जो दहन क्षमता, इंजन के शोर और उत्सर्जन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
- मिश्रणशीलता की समस्या: आइसोब्यूटेनॉल और डीज़ल में मिश्रणशीलता की समस्या हो सकती है। मिश्रणशीलता दो या दो से अधिक पदार्थों का वह गुण है जो सभी अनुपातों में पूरी तरह से मिलकर एक समांगी मिश्रण बनाते हैं।
- नॉकिंग की समस्या: ‘नॉकिंग’ (Knocking) तब होती है जब वाहन के ईंधन सिलेंडर में ईंधन असमान रूप से और समय से पहले जलता है। कम सीटेन संख्या ‘डीज़ल नॉक’ की समस्या उत्पन्न करती है, जिसके परिणामस्वरूप ईंधन की शक्ति कम हो सकती है और इंजन को संभावित रूप से नुकसान पहुँच सकता है।
- बुनियादी ढाँचा और इंजन संगतता: डीज़ल इंजन विशिष्ट दहन और प्रज्वलन मापदंडों के लिए डिज़ाइन किए जाते हैं। सम्मिश्रित ईंधन के उपयोग के लिए इंजनों के पुनः अंशांकन, ईंधन प्रणालियों, सील, भंडारण, परिवहन और हैंडलिंग सुविधाओं में संशोधन की आवश्यकता हो सकती है।
- उत्सर्जन समझौता: कुछ प्रदूषक कम हो सकते हैं, जबकि अन्य में वृद्धि हो सकती है। उदाहरण के लिए, कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन (HC), या नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) उत्सर्जन को सावधानीपूर्वक मापने की आवश्यकता होती है। शुद्ध पर्यावरणीय लाभ मिश्रण अनुपात, इंजन डिज़ाइन और ईंधन के समग्र जीवन-चक्र पर निर्भर करता है।
- लागत और पैमाने की सीमाएँ: प्रतिस्पर्धी लागत पर बड़े पैमाने पर बायो-आइसोब्यूटेनॉल का उत्पादन एक चुनौती बना हुआ है। अतः फीडस्टॉक की खरीद, उत्पादन तकनीक, लॉजिस्टिक्स और नीतिगत प्रोत्साहन महत्वपूर्ण हैं।
आगे की राह
- पायलट मिश्रण और परीक्षण: उत्सर्जन, प्रदर्शन और लागत को संतुलित करने वाले इष्टतम सम्मिश्रण प्रतिशत का अनुमान लगाने के लिए और अधिक पायलट परियोजनाएँ लागू करना।
- इंजन परीक्षण और अंशांकन: ऑटोमोटिव अनुसंधान निकायों को मिश्रित ईंधन के लिए इंजनों का परीक्षण करने और आवश्यकतानुसार पुनः डिज़ाइन या अंशांकन करने के लिए मूल उपकरण निर्माताओं (OEMs) के साथ सहयोग करने की आवश्यकता है।
- मानक एवं विनियमन: ईंधन गुणवत्ता मानक, मिश्रणों के लिए उत्सर्जन मानक, बुनियादी ढांचे की सुरक्षा मानदंड विकसित करना।
- प्रोत्साहन एवं निवेश: सब्सिडी, कर प्रोत्साहन, या जैव ईंधन उत्पादन, अनुसंधान एवं विकास, बुनियादी ढांचे के अनुकूलन के लिए वित्तपोषण।
- फीडस्टॉक की स्थिरता: सुनिश्चित करना कि फीडस्टॉक खाद्य उत्पादन के साथ प्रतिस्पर्धा न करे या नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों के साथ भूमि उपयोग में परिवर्तन न लाए।