संबंधित पाठ्यक्रम:
सामान्य अध्ययन 2: केंद्र और राज्यों द्वारा जनसंख्या के कमजोर वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएं और इन योजनाओं का प्रदर्शन; इन कमजोर वर्गों के संरक्षण और बेहतरी के लिए गठित तंत्र, कानून, संस्थान और निकाय।
संदर्भ:
हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, समलैंगिक पुरुषों और यौनकर्मियों द्वारा रक्तदान पर लगाए गए पूर्ण प्रतिबंध को चुनौती दी गई।
अन्य संबंधित जानकारी:
- अपने हलफनामे में सरकार ने कहा कि ट्रांसजेंडर और समलैंगिक लोगों को रक्तदान से वंचित रखना वैज्ञानिक साक्ष्य पर आधारित है।
- राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद(National Blood Transfusion Council) के दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि ट्रांस लोगों, समलैंगिक व्यक्तियों और यौनकर्मियों सहित अन्य लोगों को HIV और हेपेटाइटिस B या C संक्रमण का खतरा है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह देश में 2017 के रक्तदाता दिशानिर्देशों के “भेदभावपूर्ण” पहलू को हटाने के लिए विशेषज्ञ की राय प्राप्त करे।
- सर्वोच्च न्यायालय ने मौखिक रूप से कहा कि सभी ट्रांसजेंडरों को “जोखिम भरा” कहने का विचार चिंताजनक है और यह इन समुदायों को लांछित करता है।
याचिकाकर्ता के तर्क
- याचिकाकर्ता ने 2017 के दिशा-निर्देशों के खंड 12 और 51 को विशेष रूप से चुनौती दी है, जो ‘जोखिम व्यवहार’ और दाता चयन प्रक्रिया में ‘HIV संक्रमण के जोखिम में’ के रूप में वर्गीकृत व्यक्तियों के बारे में हैं।
- याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि लिंग पहचान और यौन अभिविन्यास(यौन रुझान ) के आधार पर स्थायी स्थगन भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन है।
रक्तदाता चयन और रक्तदाता रेफरल के लिए दिशानिर्देश, 2017
- राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन द्वारा 11 अक्टूबर 2017 को रक्तदाता चयन और रक्तदाता रेफरल पर दिशानिर्देश जारी किए गया था जिससे जरूरतमंद लोगों को रक्त की सुरक्षित, पर्याप्त और समय पर आपूर्ति की जा सके।
- ये दिशानिर्देश रक्त आधान सेवाओं में सर्वोत्तम प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए तैयार किए गए हैं, जिससे न्यूनतम जोखिम वाले दाताओं से दान एकत्र करना सुनिश्चित किया जा सके।
- धारा 12 में कहा गया है कि दाता को रक्ताधान से संचारित होने वाले रोगों से मुक्त होना चाहिए तथा वह HIV, हेपेटाइटिस B/C के लिए उच्च जोखिम वाले समूहों से संबंधित नहीं होना चाहिए – जैसे कि ट्रांसजेंडर और समलैंगिक व्यक्ति, यौनकर्मी, नशीली दवाओं का उपयोग करने वाले, या एक से अधिक साथी वाले लोग, जिनका मूल्यांकन चिकित्सा अधिकारी द्वारा किया गया हो।
- धारा 51 HIV के लिए “जोखिम में” माने जाने वाले व्यक्तियों को रक्तदान करने से स्थायी रूप से अयोग्य घोषित करती है, जिसमें ट्रांसजेंडर लोग, पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुष (MSM) और महिला यौनकर्मी शामिल हैं।
सर्वोच्च न्यायालय का पूर्व निर्णय
- नालसा बनाम भारत संघ (2014) मामले में , न्यायालय ने निर्णय दिया कि अनुच्छेद 15 और 16 के तहत लिंग के आधार पर भेदभाव में लिंग पहचान भी शामिल है, तथा इस बात की पुष्टि की गई कि किसी भी नागरिक के साथ, जिसमें तीसरे लिंग के रूप में पहचान रखने वाले लोग भी शामिल हैं, इस आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।
- नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018) के मामले में, न्यायालय ने कहा कि LGBT व्यक्तियों को “अप्रकट अपराधी” होने के लांछन से मुक्त होकर जीने का अधिकार है। इसने घोषित किया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377, जो निजी तौर पर वयस्कों के बीच सहमति से यौन कृत्यों को अपराध बनाती है, संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 का उल्लंघन करती है।