प्रसंग:

  • 26 सितंबर 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रमुख आयात वस्तुओं पर नए टैरिफ की घोषणा की, जिसमें ब्रांडेड दवाओं पर 100% शुल्क, भारी ट्रकों पर 25% शुल्क और रसोई कैबिनेट पर 50% शुल्क शामिल हैं। ये टैरिफ 1 अक्टूबर 2025 से प्रभावी होंगे।
  • यह फैसला अमेरिका द्वारा ट्रेड एक्सपेंशन एक्ट, 1962 की धारा 232 के तहत शुरू की गई कई जांचों के बाद लिया गया है, जो राष्ट्रपति ट्रंप को राष्ट्रीय सुरक्षा के हवाले से टैरिफ लगाने की शक्ति देता है।

महत्वपूर्ण तथ्य:

समाचार में अधिक:

  • ये उपाय ट्रंप की “अमेरिका फर्स्ट” आर्थिक नीति की निरंतरता को दर्शाते हैं, जिनका वैश्विक व्यापार, निवेशकों के विश्वास और द्विपक्षीय संबंधों—विशेष रूप से भारत जैसे करीबी व्यापारिक साझेदारों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
  • यह घोषणा ऐसे समय में की गई है जब व्यापार नीति के “हथियारकरण” को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं, जहां राष्ट्रीय सुरक्षा की बातों का इस्तेमाल संरक्षणवादी आर्थिक कदमों को सही ठहराने के लिए लगातार किया जा रहा है।

औचित्य और उद्योग की प्रतिक्रिया

  • घरेलू विनिर्माण क्षमता को दोबारा मजबूत करना।
  • अनुचित” विदेशी प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करना।
  • विशेष रूप से फार्मास्युटिकल सप्लाई चेन में राष्ट्रीय सुरक्षा की कमजोरियों को दूर करना।
  • विनिर्माण-प्रधान राज्यों में मुख्य चुनावी मतदाताओं को आकर्षित करना।

उद्योग की आपत्ति

  • फार्मास्युटिकल रिसर्च एंड मैन्युफैक्चरर्स ऑफ अमेरिका ने नई दवा टैरिफ का विरोध किया है। संगठन ने बताया कि इस वर्ष की शुरुआत में अमेरिका में उपयोग होने वाले $85.6 अरब मूल्य के दवा घटकों में से 53% घरेलू स्तर पर ही उत्पादित हुए, जबकि बाकी यूरोप और अन्य सहयोगी देशों से आए थे।
  • फार्मास्युटिकल रिसर्च एंड मैन्युफैक्चरर्स ऑफ अमेरिका ने सप्लाई चेन में व्यवधान और दवाओं की कीमतों में बढ़ोतरी की चेतावनी दी है।
  • US चैंबर ऑफ कॉमर्स ने ट्रकों पर टैरिफ को लेकर चिंता जताई, यह बताते हुए कि मेक्सिको, कनाडा, जापान, जर्मनी और फिनलैंड जैसे प्रमुख आपूर्तिकर्ता अमेरिका के लंबे समय से सहयोगी हैं और किसी भी तरह का राष्ट्रीय सुरक्षा खतरा नहीं पैदा करते।

वैश्विक व्यापार पर प्रभाव

  • व्यापार में अनिश्चितता और बाजार में अस्थिरता: टैरिफ की अप्रत्याशित घोषणाएं व्यापारिक निर्णयों को रोक देती हैं, सप्लाई चेन को बाधित करती हैं और दीर्घकालिक निवेश को हतोत्साहित करती हैं, विशेष रूप से फार्मा जैसे क्षेत्रों में, जहां स्थिर नियामक ढांचे की आवश्यकता होती है।
  • बहुपक्षीय व्यापार मानदंडों का कमजोर होना: बार-बार “राष्ट्रीय सुरक्षा” का हवाला देने से विश्व व्यापार संगठन (WTO) की विश्वसनीयता कमजोर होती है और वैश्विक नियम-आधारित व्यापार व्यवस्था पर असर पड़ता है।
  • व्यापारिक साझेदारों के बीच रणनीतिक पुनर्संरेखण: टैरिफ से प्रभावित देश क्षेत्रीय व्यापार समूहों (जैसे RCEP, EU-जापान FTA) की ओर झुक सकते हैं, जिससे अमेरिकी व्यापारिक संबंधों पर निर्भरता कम हो सकती है।

भारत पर प्रभाव

  • फार्मास्युटिकल क्षेत्र का जोखिम: भारत अमेरिका के लिए जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है।
    • हालांकि जेनेरिक दवाएं तत्काल टैरिफ वृद्धि से बच सकती हैं, लेकिन उद्योग की समग्र भावना और निवेश जोखिम भारतीय दवा निर्यात और मूल्य प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित कर सकते हैं।
  • आत्मनिर्भर भारत के लिए चुनौती: भारत का आत्मनिर्भर भारत अभियान और PLI (उत्पादन आधारित प्रोत्साहन) योजनाएं घरेलू दवा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई हैं, लेकिन अमेरिका पर निर्यात निर्भरता इस क्षेत्र को असुरक्षित बना देती है।
  • भारतअमेरिका व्यापार वार्ताओं में बाधा: भारत और अमेरिका के बीच लंबे समय से टैरिफ में सुधार को लेकर व्यापार समझौतों पर खासकर कृषि, चिकित्सा उपकरणों और डिजिटल सेवाओं के क्षेत्र में बातचीत चल रही है ।
  • अमेरिका की ये एकतरफा कार्रवाई:
    • चल रही FTA (मुक्त व्यापार समझौता) वार्ताओं को जटिल बना सकती है।
    • भारत को जवाबी टैरिफ उपायों पर पुनर्विचार के लिए प्रेरित कर सकती है।

भारत के लिए आगे का मार्ग

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