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सामान्य अध्ययन-2: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।

सामान्य अध्ययन -2: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

संदर्भ: इंडिया जस्टिस रिपोर्ट की हालिया अध्ययन, “जुवेनाइल जस्टिस एंड चिल्ड्रन इन कॉन्फ्लिक्ट विद द लॉ: ए स्टडी ऑफ कैपेसिटी एट द फ्रंटलाइन्स,” के अनुसार, 50% से अधिक लंबित मामले जस्टिस जुवेनाइल बोर्ड के सामने हैं।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • अधिक लंबित मामले: 31 अक्टूबर 2023 तक, भारत के 362 जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB) 100,904 लंबित मामलों को देख रहे थे, जिनमें से 55% से अधिक अनसुलझे थे।
  • राज्य-स्तरीय असमानताएँ: विभिन्न राज्यों में लंबित मामलों की संख्या में भारी अंतर है-ओडिशा में लंबित मामलों की दर 83% है, जबकि कर्नाटक में यह 35% है, जो अभी भी न्याय मे गंभीर देरी को दर्शाता है।
  • राष्ट्रीय अपराध डेटा के साथ संरेखण: अध्ययन के परिणाम एनसीआरबी की “क्राइम इन इंडिया 2023” रिपोर्ट की पुष्टि करते हैं, जिसमें 31,365 मामलों में 40,036 किशोरों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से लगभग 75% की आयु 16-18 वर्ष थी, यह आयु वर्ग अपराधीकरण और कमजोर पुनर्वास प्रणालियों के लिहाज से सबसे संवेदनशील माना गया।

संरचनात्मक अंतराल

  • जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB) में रिक्त पद: अध्ययन में यह पाया गया कि 24% JJB पूरी बेंच के बिना काम कर रहे थे। सर्वे किए गए 470 बोर्डों में से 111 पूरी तरह से गठित नहीं थे, और केवल ओडिशा, सिक्किम और जम्मू-कश्मीर के हर जिले में ही पूरी बेंच मौजूद थी।
  • अवसंरचना में कमी: आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल सहित 14 राज्यों में 16–18 वर्ष के जघन्य अपराधों के आरोपी किशोरों के लिए अनिवार्य सुरक्षा स्थल उपलब्ध नहीं हैं।
  • कानूनी सहायता तक कमजोर पहुँच: 30% JJBs ने बताया कि अनिवार्य होने के बावजूद उनके पास कोई कानूनी सेवा सहायक नहीं है।

• चिकित्सा देखभाल और निगरानी का अभाव: 

  • चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशन (CCIs) में सहायक स्टाफ की कमी एक गंभीर समस्या है। जिन 15 राज्यों ने डेटा उपलब्ध कराया, उनमें लगभग 80% संस्थानों ने बताया कि उनके पास कोई मेडिकल स्टाफ या डॉक्टर नहीं है।
  • JJBs को हर महीने CCIs का निरीक्षण करना अनिवार्य है, लेकिन 14 राज्यों और जम्मू-कश्मीर के डेटा के अनुसार आवश्यक 1,992 निरीक्षणों में से केवल 810 ही किए गए।

• डेटा पारदर्शिता की कमी: वयस्क मामलों के लिए राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड की तरह किशोर मामलों के लिए कोई केंद्रीकृत सार्वजनिक डेटाबेस मौजूद नहीं है। इसलिए IJR को रिपोर्ट का डेटा इकट्ठा करने के लिए 28 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में 250 से अधिक RTI आवेदन दायर करने पड़े।

आगे की राह

  • पूरी तरह से कार्यशील जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड सुनिश्चित करना: प्रत्येक जिले में एक पूरी तरह से गठित JJB होनी चाहिए, जिसमें न्यायिक सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ता दोनों शामिल हों।
  • संस्थागतकरण की बजाय पुनर्वास को प्राथमिकता देना: नीति का फोकस बच्चों के पुनर्वास की ओर होना चाहिए, जिसके लिए डायवर्जन प्रोग्राम, प्रोबेशन, काउंसलिंग, शिक्षा और कौशल विकास जैसे उपाय अपनाए जाएं, ताकि कानून के साथ संघर्ष में रहे बच्चों को संस्थागतकरण के बजाय समाज में पुन: एकीकृत किया जा सके।
  • केंद्रीकृत डिजिटल केस प्रबंधन प्रणाली स्थापित करना: एक समेकित डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म की आवश्यकता है, जो मामलों को ट्रैक करे, पारदर्शिता बढ़ाए और पुलिस, JJBs, चाइल्ड वेलफेयर कमिटियों, कानूनी सहायता प्राधिकरणों और केयर इंस्टीट्यूशन्स के बीच सहज समन्वय सक्षम करे।
  • चाइल्ड-केयर अवसंरचना का विस्तार और उन्नयन: राज्यों को पर्यवेक्षण गृह, विशेष गृह और सुरक्षा स्थल की पर्याप्त संख्या बनाकर अवसंरचना को मजबूत करना चाहिए, ताकि देखभाल की आवश्यकता वाले बच्चों, विशेष रूप से गंभीर अपराधों के आरोपी बच्चों की जरूरतों को पूरा किया जा सके।

Sources:
Indian Express
India Justice Report
The Hindu

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