संदर्भ:

हाल ही में, सीओपी-29 सम्मेलन, में जलवायु स्थिति रिपोर्ट (2024) जारी की गई और इस बात पर बल  दिया गया कि अल-नीनो की उपस्थिति  के कारण वर्ष 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष बनने वाला है।

अन्य संबंधित जानकारी:

  • जलवायु स्थिति रिपोर्ट विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) द्वारा जारी की जाती है।
  • जलवायु परिवर्तन की स्थिति 2024 रिपोर्ट में रेड अलर्ट जारी किया गया है और एक ही पीढ़ी के भीतर जलवायु परिवर्तन की खतरनाक तीव्र गति को उजागर किया गया है। यह तीव्र गति वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैस सांद्रता में निरंतर वृद्धि से प्रेरित है।

रिपोर्ट के मुख्य बिन्दु:

  • तापमान में  असाधारण वृद्धि: वर्ष 2024 के  सबसे गर्म वर्ष होनेका अनुमान   है, जो  वैश्विक तापमान में असाधारण वृद्धि की प्रवृत्ति को दर्शाता है। 
    जनवरी से सितंबर 2024 तक, वैश्विक औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.54 डिग्री सेल्सियस अधिक था जो मुख्य रूप से अल नीनो से प्रभावित था।
  • दशकीय तापमान वृद्धि: वर्ष 2015 से वर्ष 2024 तक का दशक अब तक का सबसे गर्म दशक होने का अनुमान है। पिछले 20 वर्षों में महासागरों का तापमान काफी तेजी से बढ़ा है, साथ ही विश्व  के महासागरों के  अपरिवर्तनीय रूप से गर्म  रहने की भविष्यवाणियां की जा रही  हैं।
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: वर्ष 2023 में, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन अपने अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच जाएगा और वर्ष 2024 में भी यह वृद्धि जारी रहेगी।
    वर्ष 1750 से वर्ष 2023 तक कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 51% बढ़ गया है जो ग्लोबल वार्मिंग में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
  • महासागर और ग्लेशियर में परिवर्तन: वर्ष 2023 और  2024 में महासागर उच्चतम  तापमान स्तर पर पहुंच जाएंगे। 
    वर्ष 2023 में, विश्व  के ग्लेशियरों में बर्फ़ पिघलने की दर तेज़ी से बढ़ेगी, जो 70 सालों में सबसे ज़्यादा होगी। यह मृत सागर में जल की मात्रा से पाँच गुना अधिक जल खोने के बराबर है।
  • समुद्र स्तर पर प्रभाव: तेजी से पिघलते ग्लेशियर (विशेष रूप से उत्तरी अमेरिका और यूरोप में) की वजह से समुद्र स्तर में वृद्धि हो रही है। 
    वर्ष 2014 से  2023 तक वैश्विक औसत समुद्र स्तर प्रति वर्ष 4.77 मिमी की दर से बढ़ा, जो वर्ष 1993 और वर्ष 2002 के बीच देखी गई दर से दोगुना से भी अधिक है।

अल नीनो का प्रभाव (रिपोर्ट द्वारा रेखांकित):

वैश्विक स्तर पर प्रभाव

  • वैश्विक तापमान में वृद्धि: अल नीनो वैश्विक तापमान में वृद्धि करता है, जिससे प्रायः गर्म लहरें और चरम मौसम की घटनाएं घटित होती हैं।
    व्यापारिक पवनों  (ऐसी हवाएं जो भूमध्य रेखा के ठीक उत्तर और दक्षिण में पूर्व से पश्चिम की ओर चलती हैं) के कमजोर होने  से ठंडे पानी का ऊपर उठना कम हो जाता है, जिससे गर्म पानी प्रशांत महासागर में पूर्व की ओर फैल जाता है।
    गर्म सतही जल का यह विस्तार, प्रशांत महासागर तथा उससे आगे की हवा को गर्म करके वैश्विक तापमान को और अधिक बढ़ा देता है।
  • व्यवधानयुक्त मौसम स्वरूप: अल नीनो वैश्विक मौसम स्वरूप को बाधित करता है जिसके परिणामस्वरूप कुछ क्षेत्रों में सूखा पड़ता है और अन्य क्षेत्रों में बाढ़ के साथ भारी वर्षा होती है।
  • महासागर का गर्म होना: अल नीनो समुद्री जल को गर्म कर सकता है जिससे प्रवाल विरंजन और समुद्री उष्ण तरंगें उत्पन्न हो सकती हैं, जो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर प्रभाव डालती हैं।

क्षेत्रीय स्तर पर प्रभाव

  • भारत: कमजोर मानसून की वजह से गर्म हवाएं और सूखे की संभावना बढ़ रही है।  मानसून के मौसम में वर्षा कम हो रही है तथा कृषि और जल आपूर्ति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
  • दक्षिण अमेरिका (पेरू तट): समुद्री धाराओं में परिवर्तन और पोषक तत्वों के कम होने के कारण मछलियों की आबादी में कमी।
    इसलिए, इन तटीय क्षेत्रों में अक्सर भारी वर्षा और भयंकर बाढ़ आती है।
  • दक्षिण-पूर्व एशिया: यहां वर्षा के आभाव  के कारण सूखा  और जंगली आग का खतरा बढ़ जाता है, साथ ही इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में कभी-कभी बाढ़ भी आ जाती है।
  • ऑस्ट्रेलिया: विशेष रूप से पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्रों में सूखे का संकट  बढ़ जाता है, जिसके परिणामस्वरूप जंगल में आग लगने की घटनाओं में दोहराव होती है और वे तीव्र हो जाती हैं।
  • उत्तरी अमेरिका: इससे कैलिफोर्निया और अन्य पश्चिमी राज्यों में भारी वर्षा और बाढ़ आ जाती हैजबकि दक्षिण-पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका में गर्मी की लहरें तेज हो जाती हैं।

रिपोर्ट की मुख्य सिफारिशें:

  • जलवायु परिवर्तन का शमन: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में और अधिक कटौती करने की प्रतिबद्धता को  वैश्विक तापमान को 1.5°C से नीचे रखने के प्रयासों को तीव्र करना।
  • जलवायु अनुकूलन: लचीले बुनियादी ढांचे और एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन में निवेश बढ़ाकर जलवायु अनुकूलन उपायों को बढ़ाना।
  • पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ: विश्व भर में विविध-खतरा पूर्व चेतावनी प्रणालियों (Multi-Hazard Early Warning Systems-MHEWS) का विस्तार करना, विशेषकर  अफ्रीका और छोटे द्वीपीय देशों जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को प्राथमिकता देना।
  • नवीकरणीय ऊर्जा: जलवायु शमन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना और ऊर्जा दक्षता को दोगुना करने का लक्ष्य।
  • जलवायु सेवाओं को मजबूत बनाना: बेहतर निर्णय लेने के लिए डेटा संग्रह, मॉडलिंग और पूर्वानुमान में सुधार हेतु राष्ट्रीय मौसम विज्ञान और जल विज्ञान सेवाओं को मजबूत बनाना।
  • क्रायोस्फीयर संरक्षण: हिमनद क्षति को कम करने तथा ध्रुवीय और उच्च ऊंचाई वाले पारिस्थितिकी तंत्रों के सतत प्रबंधन को बढ़ावा देने हेतु नीतियां विकसित करना।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO):

  • यह संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष संस्था है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1950 में हुई और यह मौसम विज्ञान (मौसम और जलवायु), परिचालन जल विज्ञान और संबंधित भूभौतिकीय विज्ञान के लिए संयुक्त राष्ट्र की विशेष संस्था  बन गई।
  • इसकी उत्पत्ति वर्ष 1873 में स्थापित अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन (IMO) से मानी जाती है।

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