संदर्भ:
हाल ही में, भारत के राष्ट्रपति द्वारा जारी की गई “भारत में जेल: जेल मैनुअल का मानचित्रण और सुधार और भीड़भाड़ कम करने के उपाय” रिपोर्ट के अनुसार, कैदियों की इलेक्ट्रॉनिक निगरानी भीड़भाड़ वाली भारतीय जेलों के लिए एक समाधान प्रदान कर सकती है।
अन्य संबंधित जानकारी
- यह रिपोर्ट उच्चतम न्यायालय के अनुसंधान एवं योजना केन्द्र द्वारा तैयार की गई है तथा इसमें जेलों में भीड़भाड़ की समस्या से निपटने के लिए विभिन्न उपाय सुझाए गए हैं।
- जुलाई में, उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि पुलिस को अभियुक्त की गतिविधियों पर नज़र रखने की अनुमति देने वाली ज़मानत की शर्तें निजता के अधिकार का उल्लंघन करती हैं।
- हालाँकि, भारतीय विधि आयोग और गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट बताती है कि यदि उचित सुरक्षा उपायों के साथ कार्यान्वयन किया जाए तो निगरानी लाभदायक हो सकती है।
भारत में जेलों की स्थिति
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, भारत की जेलें भीड़भाड़ की एक बड़ी समस्या का सामना कर रही हैं, जिसमें दिसंबर 2022 तक जेलों में राष्ट्रीय औसत अधिभोग दर 131.4% है।
- भारत में 75.8% कैदी विचाराधीन हैं, अर्थात वे अभी भी मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे हैं तथा उन्हें अभी तक दोषी नहीं ठहराया गया है।
विचाराधीन कैदियों के लिए इलेक्ट्रॉनिक निगरानी के लाभ
- कम और मध्यम जोखिम वाले विचाराधीन कैदियों की निगरानी के लिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग करके, जेलों में भीड़ को कम किया जा सकता है।
- इलेक्ट्रॉनिक निगरानी अधिक जेल सुविधाएं बनाने की तुलना में सस्ती है और इससे कैदियों के आवास और भोजन से संबंधित लागत को कम करने में मदद मिलती है।
- विचाराधीन कैदी तब तक निर्दोष होते हैं जब तक उनका अपराध सिद्ध न हो जाए, इसलिए इलेक्ट्रॉनिक निगरानी से उन्हें जेल से बाहर रहने का मौका मिलता है, जबकि उन पर निगरानी भी रखी जाती है, जिससे उन्हें अपने अधिकारों की रक्षा करने में मदद मिलती है।
- जीपीएस ट्रैकर्स जैसे उपकरण वास्तविक समय में विचाराधीन कैदियों पर नजर रख सकते हैं, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि वे जमानत की शर्तों का पालन कर रहे हैं और उनके भागने की संभावना कम है।
चुनौतियां
हाशिये पर स्थित समूहों पर नकारात्मक प्रभाव: निगरानी के अत्यधिक उपयोग से दमनकारी, आपराधिक वातावरण उत्पन्न हो सकता है, जिससे विशेष रूप से हाशिए पर स्थित समुदाय प्रभावित हो सकते हैं।
- यह भारत में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के समुदायों को असमान रूप से प्रभावित कर सकता है, क्योंकि जेलों में बंद कैदियों में उनकी संख्या अधिक है।
सामाजिक कलंक: ट्रैकिंग डिवाइस (जैसे- टखने के ब्रेसलेट) पहनने से सामाजिक कलंक जैसी मानसिकता उत्पन्न हो सकती है।
गोपनीयता संबंधी चिंताएं: इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के माध्यम से लगातार निगरानी व्यक्तिगत गोपनीयता का उल्लंघन की तरह लग सकती है।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि कुछ निगरानी शर्तें, जैसे- वास्तविक समय स्थान डेटा साझा करना, मौलिक गोपनीयता अधिकारों का उल्लंघन करती हैं।
तकनीकी समस्या: उपकरण की विफलता, सिग्नल न मिलना या छेड़छाड़ जैसी समस्याएं प्रणाली को कम प्रभावी बना सकती हैं।
मुख्य सुझाव
268वीं विधि आयोग की रिपोर्ट में स्वीकार किया गया है कि इलेक्ट्रॉनिक निगरानी संवैधानिक अधिकारों को प्रभावित कर सकती है तथा सुझाव दिया गया है कि इसका उपयोग केवल गंभीर मामलों में ही किया जाना चाहिए, जैसे- बार-बार अपराध करने वालों के मामले में।
- इसमें यह भी सिफारिश की गई है कि इन परिवर्तनों को प्रतिबिंबित करने हेतु कानूनों को अद्यतन किया जाना चाहिए।
इलेक्ट्रॉनिक निगरानी को सुचारू रूप से चलाने के लिए भारत को सावधानीपूर्वक योजना, उचित संसाधन और कानूनी सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह नैतिक और निष्पक्ष तरीके से किया जाए।
वर्ष 2023 में संसदीय स्थायी समिति ने सुझाव दिया कि किसी भी प्रकार के मानवाधिकार उल्लंघन से बचने के लिए कैदियों की सहमति (स्वैच्छिक) ली जानी चाहिए।