संदर्भ
व्यापक कानूनी प्रतिबंध के कारण भारत के विभिन्न जेलों में बंद चार लाख से अधिक विचाराधीन कैदी 18वीं लोकसभा चुनाव में मतदान नहीं कर सकते हैं।
अन्य सम्बंधित जानकारी
- हालाँकि, अमृतपाल सिंह और अब्दुल रशीद शेख जैसे कुछ कैदियों को जेल में रहते हुए चुनाव लड़ने की अनुमति है।
- विचाराधीन कैदियों के मतदान के अधिकार पर प्रतिबंध: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 62(5) के अनुसार, कोई भी व्यक्ति, चाहे वह दोषी हो या विचाराधीन, जेल में बंद रहते हुए किसी भी चुनाव में मतदान नहीं कर सकता है।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, वर्ष 2022 में भारत की जेलों में 4,34,302 विचाराधीन कैदी थे, जो जेलों में बंद कुल कैदियों की संख्या 5,73,220 का 76 प्रतिशत है।
- निर्वाचन आयोग दिव्यांग व्यक्तियों और वरिष्ठ नागरिकों जैसी अन्य श्रेणियों की तरह विचाराधीन कैदियों को भी डाक मतपत्र के माध्यम से मतदान की अनुमति दे सकता है।
विचाराधीन कैदियों के बारे में
- विचाराधीन कैदी का अर्थ उस व्यक्ति से है जिस पर मुकदमा चल रहा है या अदालत में मुकदमे के शुरू होने की प्रतीक्षा में अभिरक्षा में रखा गया है।
- विधि आयोग की 78वीं रिपोर्ट के अनुसार, इस परिभाषा में अन्वेषण के दौरान न्यायिक अभिरक्षा में रहने वाले लोगों को भी शामिल किया गया है।
विचाराधीन कैदियों के लिए मताधिकार के पक्ष में तर्क:
- विधि विशेषज्ञों का तर्क है कि यदि कुछ श्रेणियों के कैदियों को चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाती है, तो कारावासों (जेलों) में बंद विचाराधीन कैदियों को भी मतदान का अधिकार होना चाहिए।
- विचाराधीन कैदियों को मतदान से रोकने के पीछे के तर्क में अपराध की प्रकृति या सजा की अवधि के आधार पर उचित वर्गीकरण का न होना है।
- संविधान का अनुच्छेद 14, जो समानता के अधिकार की परिकल्पना करता है।
- संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा कैद की स्थिति की परवाह किए बिना सार्वभौमिक मतदान अधिकारों की वकालत करती है।
- इंदिरा गाँधी बनाम राज नारायण (1975) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव भारत के संविधान के ‘मूल ढाँचे’ का एक अभिन्न अंग हैं, तथा इस सिद्धांत के साथ टकराने वाले किसी भी विधि या नीति को अमान्य किया जा सकता है।
विचाराधीन कैदियों के मताधिकार के विपक्ष में तर्क
- कुलदीप नायर बनाम भारत संघ (2006) मामले में, उच्चतम न्यायालय के पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने निर्धारित किया कि मतदान का अधिकार (या चुनाव का अधिकार) विशुद्ध और सरल, एक सांविधिक अधिकार है।
- अनुकूल चंद्र प्रधान बनाम भारत संघ (1997) में, उच्चतम न्यायालय ने निम्नलिखित चार आधारों पर धारा 62(5) की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा :
- मतदान का अधिकार एक सांविधिक अधिकार है, जो सांविधिक सीमाओं के अधीन है।
- बुनियादी ढाँचे और पुलिस तैनाती की आवश्यकता होगी, जिससे संसाधनों की कमी हो सकती है।
- अपने आचरण के कारण जेल में बंद व्यक्ति आवागमन, भाषण और अभिव्यक्ति की समान स्वतंत्रता का दावा नहीं कर सकते है।
- कैदियों के मतदान अधिकार पर प्रतिबंध आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को चुनाव से दूर रखने के लिए उचित है।
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