संदर्भ:

हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि, बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री (CSEAM) को देखना, संग्रहीत करना और वितरित करना यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम 2012 और सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम 2000 के तहत अपराध है।

अन्य संबंधित जानकारी:

  • यह फैसला मद्रास उच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ एनजीओ जस्ट राइट फॉर चिल्ड्रन अलायंस द्वारा दायर अपील के जवाब में आया है।
  • सुप्रीम कोर्ट का फैसला मद्रास उच्च न्यायालय के पिछले फैसले को निरस्त करता  है, जिसमें कहा गया था कि अश्लील सामग्री रखना या उसको संग्रहित करना POCSO अधिनियम के तहत अपराध नहीं है ।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने संसद से POCSO अधिनियम में संशोधन करने का आग्रह किया, जिसमें “बाल पोर्नोग्राफी” शब्द के स्थान पर ” बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री” (CSEAM) शब्द रखा जाए , ताकि अपराध की गंभीरता को अधिक सटीक रूप से दर्शाया जा सके।
  • न्यायालय ने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम की धारा 67b के तहत बाल यौन शोषण  सहित बच्चों से संबंधित अश्लील सामग्री के उपयोग, प्रसारण या प्रकाशन करने पर दंड का प्रावधान है। 
  • यह नाबालिगों के साथ किसी भी प्रकार की यौन गतिविधि में शामिल होना या ऑनलाइन इससे संबंधित कुछ भी खोजना, बनाना, संग्रहीत करना या सुविधा प्रदान करना भी अवैध बनाता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने पोक्सो अधिनियम की  धारा 15 के अंतर्गत अपराधों को “अपूर्ण” (इंचोएट) अपराधों के रूप में वर्गीकृत किया गया है , जिसका अर्थ है कि ये अपराध करने की दिशा में की किया गया प्रारंभिक प्रयास है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि POCSO अधिनियम की धारा 15 के तहत  बाल पोर्नोग्राफी के भंडारण, साझाकरण या प्रसारण के लिए दंड का प्रावधान है।
  • 2019 में, POCSO अधिनियम में संशोधन किया गया और इसमें धारा 15 को शामिल किया गया, जिसमें 15(1), (2) और (3) में श्रेणीबद्ध सजा का प्रावधान है और  जुर्माने से लेकर तीन से पांच साल तक की कैद  की सजा की श्रेणियों में वृद्धि की गई है।
  • साझा या प्रसारित  करने के उदेश्य से  किसी भी बाल पोर्नोग्राफ़िक सामग्री का संग्रहण करना  [ धारा 15(1)]
  • संचारित और प्रदर्शित करना [ धारा 15(2) ]; तथा
  • वाणिज्यिक लाभ अर्जित करना [ धारा 15(3) ] 
  • सर्वोच्च न्यायालय ने ‘रचनात्मक कब्जे’ का सिद्धांत प्रस्तुत किया, ताकि यदि किसी व्यक्ति का किसी भी समय बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री (CSEAM )पर नियंत्रण रहा हो, भले ही बाद में उसे हटा दिया गया हो, तो उसे उत्तरदायी ठहराया जा सके।

आगे की राह:

  • साइबर कानूनों को मजबूत करना : भारत को बच्चों के लिए उभरते डिजिटल खतरों को कम करने के लिए अपने साइबर कानूनों को निरंतर अद्यतन करने की आवश्यकता है।
  • जन जागरूकता : बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री (CSEAM) के साथ जुड़ने के कानूनी परिणामों के बारे में व्यापक जागरूकता अभियान शुरू करना ।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग : बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री (CSEAM) के सीमापार प्रसार को रोकने  के लिए वैश्विक कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ सहयोग को मजबूत करना ।
  • तकनीकी समाधान : ऑनलाइन प्लेटफार्मों से बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री (CSEAM) का पता लगाने और उसे हटाने के लिए उन्नत प्रौद्योगिकियों में निवेश को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • पीड़ितों के लिए सहायता : बाल यौन शोषण के पीड़ितों के लिए परामर्श और पुनर्वास कार्यक्रमों सहित मजबूत सहायता प्रणाली विकसित करना आवश्यक है।

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