संबंधित पाठ्यक्रम:

सामान्य अध्ययन-2: विकसित और विकासशील देशों की नीतियों और राजनीति का भारत के हितों पर प्रभाव;महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, एजेंसियाँ और संगठन – उनकी संरचना और उद्देश्य।

संदर्भ: 

हाल ही में जारी ग्लोबल पीस इंडेक्स (GPI) 2025 ने वैश्विक स्तर पर शांतिपूर्णता में चिंताजनक गिरावट की ओर संकेत किया है।

अन्य संबंधित जानकारी:

GPI 2025 (10वाँ संस्करण) एक डाटा-आधारित विश्लेषण प्रस्तुत करता है जो शांति के रुझानों, उसकी आर्थिक कीमत और शांतिपूर्ण समाजों के विकास के तरीकों को दर्शाता है।

इसे अर्थशास्त्र एवं शांति संस्थान (Institute for Economics and Peace-IEP) द्वारा प्रतिवर्ष प्रकाशित किया जाता है।

यह रिपोर्ट 163 देशों को कवर करती है, जो विश्व की 99.7% जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं।

23 गुणात्मक व मात्रात्मक संकेतकों के आधार पर शांति को निम्नलिखित तीन क्षेत्रों में मापा जाता है:

1. सामाजिक सुरक्षा और संरक्षा का स्तर

2. घरेलू और अंतरराष्ट्रीय संघर्ष की स्थिति

3. सैन्यीकरण की डिग्री

मुख्य बिंदु:

 वैश्विक प्रवृत्तियाँ (Global Trends):

वैश्विक शांति में गिरावट: वैश्विक शांतिपूर्णता में 0.36% की गिरावट हुई है, जो कि पिछले 17 वर्षों में 13वीं गिरावट है।

  • यह गिरावट द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से सबसे अधिक है।

सक्रिय संघर्षों की संख्या: वर्तमान में 59 राज्य आधारित संघर्ष चल रहे हैं — WWII के बाद से सबसे अधिक।

संघर्षों का अंतरराष्ट्रीयकरण: 78 देश अब अपनी सीमाओं से बाहर संघर्षों में शामिल हैं, जिससे संघर्ष समाधान और अधिक जटिल हो गया है।

  • कारण: भूराजनीतिक विखंडन, महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा, मध्यम शक्तियों का उभार।

स्थायी युद्धों का चलन: केवल 9% संघर्ष निर्णायक सैन्य जीत पर समाप्त होते हैं, और सिर्फ 4% वार्ता से समाप्त होते हैं।

  • यह ‘हमेशा के लिए युद्ध’ की ओर व्यापक बदलाव को दर्शाता है, तथा पारंपरिक समाधान रणनीतियों की विफलता की ओर इशारा करता है।

हथियारों की होड़: 2022 के बाद से प्रत्येक परमाणु-सशस्त्र राज्य ने अपने शस्त्रागार को बनाए रखा है या उसका विस्तार किया है, और महाशक्तियों के बीच प्रतिद्वंद्विता, उन्नत प्रौद्योगिकियों में हथियारों की दौड़ को बढ़ावा दे रही है, जिसमें एआई-सक्षम ड्रोन से लेकर काउंटर-स्पेस सिस्टम शामिल हैं।

शक्ति का विखंडन: शीत युद्ध के अंत के बाद से प्रभावशाली देशों की संख्या 13 से बढ़कर 34 हो गई (2023 तक)।

आर्थिक प्रभाव:हिंसा की वैश्विक आर्थिक लागत 2024 में USD 19.97 ट्रिलियन, जो वैश्विक GDP का 11.6% है।

  • केवल सैन्य खर्च: USD 2.7 ट्रिलियन।

शांति असमानता: सर्वाधिक शांतिपूर्ण और सबसे कम शांतिपूर्ण देशों के बीच का अंतर बढ़ गया है, तथा पिछले दो दशकों में “शांति असमानता” में 11.7% की वृद्धि हुई है।

तकनीक की भूमिका: तकनीकी प्रगति से युद्ध और संघर्ष लंबे और सुलभ बनते जा रहे हैं।

  • ड्रोन निर्माता कंपनियों की संख्या: 2022 में 6 → 2024 में 200+।

असममित क्षमताओं का उभार: गैर-राज्य तत्वों के पास अब सस्ती तकनीकों (जैसे IEDs, ड्रोन) के ज़रिए महंगे सैन्य उपकरणों को निष्क्रिय करने की क्षमता है।

  • यह उग्रवादियों को रोकना कठिन बना देगा।

भारत की स्थिति:

रैंकिंग: यह 2.229 के GPI स्कोर के साथ वैश्विक स्तर पर 115वें स्थान पर है, जो पिछले वर्ष की तुलना में इसके शांतिपूर्ण स्तर में 0.58% सुधार है।

शांति स्तर मे वृद्धि: 2019 में 141 के निम्नतम स्तर से इसकी रैंकिंग में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है।

  • यह दक्षिण एशिया में इसके स्थान के बावजूद था- जो दूसरा सबसे कम शांतिपूर्ण क्षेत्र है।

तुलना: भारत बांग्लादेश (123वें), पाकिस्तान (144वें) और अफगानिस्तान (158वें) से ऊपर है।

मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न:

सैन्य संघर्षों की संख्या विश्वभर में बढ़ी है और हाल के वर्षों में उनमें नए आयाम जुड़ गए हैं। इस प्रवृत्ति का वैश्विक शांति और स्थिरता पर क्या प्रभाव पड़ेगा? भारत के हितों पर इसका क्या प्रभाव हो सकता है?

(GS-2, 10 अंक, 150 शब्द)

संबंधित विगत वर्ष के प्रश्न 

“चीन एशिया में संभावित सैन्य शक्ति की स्थिति विकसित करने के लिए अपने आर्थिक संबंधों और व्यापार अधिशेष का उपयोग एक उपकरण के रूप में कर रहा है।” इस कथन के आलोक में भारत पर इसके प्रभाव की चर्चा कीजिए।

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