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सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 1: विश्व के भौतिक भूगोल की प्रमुख विशेषताएँ।
संदर्भ:
एक नए अध्ययन के अनुसार, ग्लेशियरों और बर्फ छत्रकों के पिघलने की दर में वृद्धि से अधिक बार और अधिक शक्तिशाली ज्वालामुखी उद्गार हो सकते हैं।
अध्ययन के मुख्य बिन्दु

- अध्ययन में यह भी कहा गया है कि पश्चिमी अंटार्कटिका में ज्वालामुखी उद्गार का खतरा सबसे अधिक है।
- वहाँ लगभग 100 ज्वालामुखी मोटी बर्फ के नीचे दबे हुए हैं।
- बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण यह बर्फ आने वाले दशकों या सदियों में पिघल सकती है।
- विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय के Pablo Moreno-Yaeger ने कहा कि उत्तरी अमेरिका, न्यूजीलैंड और रूस के कुछ हिस्सों जैसे अन्य स्थानों पर भी अधिक ज्वालामुखी गतिविधियां देखी जा सकती है।
जलवायु परिवर्तन और ज्वालामुखी उद्गार
- वैज्ञानिकों ने पहली बार 1970 के दशक में सुझाव दिया था कि बर्फ पिघलने से ज्वालामुखी उद्गारप्रभावित हो सकते हैं। आमतौर पर, बर्फ का भार भूमिगत मैग्मा पर दबाव डालता है, जिससे वह नियंत्रित रहता है।
- जब ग्लेशियर पिघलते हैं, तो दबाव कम हो जाता है, जिससे मैग्मा और गैसें फैलती हैं, और प्रलयकारी उद्गारहो सकते हैं।
- आइसलैंड में, पिछले बड़े विहिमनदन (15,000-10,000 वर्ष पूर्व) के दौरान, ज्वालामुखी विस्फोटों में वर्तमान की तुलना में 30 से 50 गुना वृद्धि हुई थी।
- बर्फ के कम होने से उत्पन्न दबाव के कारण चट्टानें अधिक आसानी से पिघलती हैं, जिससे अधिक मैग्मा निकलता है।
- वर्षा और वर्षण, जो जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होती हैं, भूमि में रिस सकती हैं और मैग्मा प्रणाली के साथ अभिक्रिया करके ज्वालामुखी उद्गार का कारण बन सकती हैं।
नए अध्ययन में क्या प्रस्तावित है?
- नया अध्ययन इस बारे में पहले के निष्कर्षों का समर्थन करता है कि पिघलती बर्फ ज्वालामुखी गतिविधि को कैसे प्रभावित करती है।
- इसने चिली के Mocho Choshuenco ज्वालामुखी का अध्ययन किया ताकि पिछले हिमयुग से पहले, उसके दौरान और बाद की ज्वालामुखीय चट्टानों की जाँच की जा सके।
- 26,000 और 18,000 साल पहले, ज्वालामुखी के ऊपर एक मोटी बर्फ की चादर थी जिसने मैग्मा पर दबाव डालकर उद्गारों को कम कर दिया।
- इस दबाव के कारण सतह से 10-15 किलोमीटर नीचे मैग्मा का एक विशाल भंडार बन गया। लगभग 13,000 साल पहले जब बर्फ पिघली, तो जमे हुए मैग्मा में विस्फोट हो गया।
गर्म होती दुनिया में ज्वालामुखी उद्गार का जोखिम
- ज्वालामुखी विस्फोट राख और धूल निर्मुक्त करके पृथ्वी को ठंडा कर सकते हैं। राख और धूल सूर्य के प्रकाश को अवरुद्ध करते हैं।
- वे सल्फर डाइऑक्साइड भी छोड़ते हैं जो समताप मंडल में सल्फ्यूरिक अम्ल एरोसोल बनाता है।
- ये एरोसोल सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करते हैं, जिससे अस्थायी वैश्विक शीतलन होता है जो तीन साल तक रह सकता है।
- समय के साथ, ये बूंदें भारी हो जाती हैं और वापस पृथ्वी पर गिरती हैं।
- लेकिन लगातार विस्फोटों से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसें भी निकल सकती हैं जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाती हैं।
- इससे एक दुष्चक्र बन सकता है – बढ़ते तापमान से और अधिक बर्फ पिघलती है, जिससे और अधिक उद्गार हो सकते हैं तथा जलवायु परिवर्तन का खतरा और बढ़ सकता है।
मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न चर्चा कीजिए कि ज्वालामुखी गतिविधि वैश्विक जलवायु को कैसे प्रभावित करती है? ज्वालामुखी विस्फोटों के शीतलन और तापन, दोनों प्रभावों की व्याख्या कीजिए तथा भविष्य की ज्वालामुखी गतिविधि पर जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभाव का आकलन कीजिए। (10अंक, 150शब्द)