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सामान्य अध्ययन-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन।
संदर्भ: हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने संकटग्रस्त प्रजाति ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की सुरक्षा की दृष्टि से उनके संरक्षण क्षेत्रों का विस्तार करने के साथ ही नई बिजली लाइन तथा बड़े सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना पर प्रतिबंध लगा दिया है।
अन्य संबंधित जानकारी

- उच्चतम न्यायालय की पीठ ने कहा कि हाल ही में विलुप्त हो चुके गोल्डन टोड, वेस्टर्न ब्लैक राइनोसेरोस, पिंटा जायंट टॉर्टोइस, (पोउउली) और ब्रिडल्ड व्हाइट-आई जैसे जीवों के समान ही ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) विलुप्त होने की कगार पर है।
- यह आदेश न्यायालय द्वारा मार्च 2024 में गठित नौ-सदस्यीय विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के आधार पर जारी किया गया है। इस समिति में केंद्र सरकार के तकनीकी विशेषज्ञ और भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) जैसी एजेंसियों के प्रतिनिधि शामिल थे।
आदेश के मुख्य बिंदु
- कानूनी संघर्ष का अंत: इस आदेश के जारी होने के साथ ही चार साल से चल रहा कानूनी संघर्ष समाप्त हो गया है। दरअसल, कानूनी संघर्ष बार-बार ‘ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर’ (GEC) की योजना और क्रियान्वयन में बाधा उत्पन्न कर रहे थे।
- अप्रैल 2021 में, न्यायालय ने आदेश दिया था कि ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) के आवास क्षेत्र में लगभग 99,000 वर्ग किलोमीटर में बिखरी हुई ओवरहेड बिजली लाइनों को एक वर्ष के भीतर भूमिगत (Underground) किया जाए।
- मार्च 2024 में, न्यायालय ने तकनीकी अव्यावहारिकता, ग्रिड सुरक्षा संबंधी चिंताओं और जलवायु लागतों का हवाला देते हुए अपने पिछले आदेश में आंशिक संशोधन किया, और अधिक संतुलित दृष्टिकोण सुझाने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया।
- दिसंबर 2025 के इस आदेश से अब उस रूपरेखा को स्थायी कानूनी मान्यता मिल गई है, जो ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर के मूल ढांचे को बचाते हुए उसके लिए अनुमत भौगोलिक सीमाओं को नए सिरे से परिभाषित करती है।
- ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संरक्षण से “समझौता न करना”: संशोधित प्राथमिकता वाले संरक्षण क्षेत्रों को अंतिम रूप दिया गया जैसे-राजस्थान में 14,013 वर्ग किलोमीटर और गुजरात में 740 वर्ग किलोमीटर।
- इन क्षेत्रों (संरक्षण क्षेत्रों) के भीतर, कोई भी नया पवन टरबाइन, 2 मेगावाट (MW) से अधिक का कोई भी सौर पार्क, और मौजूदा नवीकरणीय परियोजनाओं के विस्तार की अनुमति नहीं दी जाएगी। इससे प्रभावी रूप से भविष्य में बिजली उत्पादन वह क्षमता सीमित हो जाएगी जिसे ‘ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर (GEC) फेज-II’ के माध्यम से बाहर भेजने की योजना बनाई गई थी।
- कॉरिडोर-आधारित दृष्टिकोण: गुजरात में, जहाँ कच्छ और तटीय सौर परियोजनाओं से पवन ऊर्जा बनाने के लिए ‘ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर बुनियादी ढांचा अत्यंत महत्वपूर्ण है, वहाँ न्यायालय ने भचुंडाऔर तटीय सबस्टेशनों से जुड़े कॉरिडोर को मंजूरी दे दी है।
- ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर के निष्पादन को पूर्णतः अप्रभावी न होने देना: न्यायालय ने सभी बिजली लाइनों को अनिवार्य रूप से भूमिगत करने के पूर्व आदेश को खारिज कर दिया। साथ ही, मानवीय बस्तियों के पास 11 kV और उससे कम की ‘वितरण लाइनों’ (Distribution Lines) को बर्ड डायवर्टर की अनिवार्यता से छूट देकर सीमित राहत प्रदान की है।”
महत्त्व
- बस्टर्ड के आवास का संरक्षण: ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के मुख्य आवास को सुरक्षित रखने हेतु, भविष्य में बिजली की सभी निकासी को डेजर्ट नेशनल पार्क के दक्षिण में स्थित 5 किमी चौड़े एक विशेष पावर कॉरिडोर में केंद्रित किया जाएगा। यह कदम अनियंत्रित पारेषण लाइनों के विस्तार को रोककर पक्षियों के सुरक्षित उड़ान क्षेत्र को सुनिश्चित करता है।
- पर्यावरणीय शासन की दिशा में निर्णायक कदम: यह दर्शाता है कि नवीकरणीय ऊर्जा के लिए भारत के मुख्य पारेषण ढांचे की योजना अब केवल संसाधनों की उपलब्धता और मांग केंद्रों के आधार पर नहीं, बल्कि अपरिवर्तनीय संरक्षण सीमाओं को ध्यान में रखकर बनानी होगी।
- नीतिगत स्पष्टता: यह ऊर्जा की जरूरतों और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
